तेल के आतंक ने दुनिया में खलबली मचा दी है। हर तरफ आग लगी हुई है। सिर्फ हिन्दुस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग तेल में लगी आग से झुलस रहे हैं। यहां तक कि तेल पैदा करने वाले देश भी। सवाल है, क्या यह महामंदी का आसन्न संकेत है? क्या यह एक संगठित आतंक का नया रूप है? आखिर तेल ने इस कदर आतंक क्यों मचा रखा है?
पिछले एक साल के दौरान जिस तरह से कच्चे तेल की कीमतों ने आसमानी छलांग लगाई है, उससे लगता है कि शायद तेल की खपत बहुत ज्यादा बढ़ गई है या फिर तेल के उत्पादन में भारी कमी आई है। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। न तो तेल के उत्पादन में पिछले एक साल के दौरान ऐसी कमी हुई है कि 72-75 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से सीधे 135-140 डॉलर प्रति बैरल के बीच हो चुकी कीमतों में कोई तर्क तलाशा जाए और न ही इस दौरान तेल की खपत में कोई ऐसी ऐतिहासिक उछाल आई है कि कीमतों की इस बढ़ोत्तरी को जायज ठहराया जाए। 10 साल पहले तेल की प्रतिदिन खपत 7 करोड़ 40 लाख बैरल थी जो कि इस समय बढ़कर 8 करोड़ 60 लाख बैरल हो चुकी है यानी 1 करोड़ 20 लाख बैरल रोजाना की खपत में बढ़ोत्तरी हुई है। मगर इसी दौरान रोजाना तेल के उत्पादन में भी तकरीबन इतनी ही बल्कि इससे भी कुछ ही ज्यादा बढ़ोत्तरी हो चुकी है। सवाल है, फिर भी तेल की कीमतों में इस कदर बेतहाशा वृद्धि क्यों हो रही है? 10 साल पहले प्रति बैरल तेल की कीमत 14 से 15 अमेरिकी डॉलर थी। जो आज बढ़कर तकरीबन 140 डॉलर प्रति बैरल हो चुकी है यानी लगभग 10 गुने की वृद्धि।
सवाल है, कच्चे तेल की कीमतें कौन बढ़ा रहा है-तेल उद्योग, तेजी से विकास कर रहे एशिया के विकासशील देश जैसे भारत और चीन या फिर कमोडिटी के सटोरिए? गौरतलब है कि पिछले 10 सालों में भारत और चीन जैसे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने विकास के राजमार्ग में तेज रफ्तार पकड़ी है। इस कारण इन देशों में तेल की खपत में भारी इजाफा हुआ है। भारत में पिछले 10 सालों में तेल की खपत लगभग दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। यही हाल चीन का भी है। लेकिन अगर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के पीछे कारण विकासशील देशों की तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्थाएं थीं तो फिर यह बढ़ोत्तरी इनकी विकास दर के आसपास ही होती या थोड़े ही ज्यादा। जबकि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के पिछले 10 सालों में 1000 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। जो कि निश्र्चित रूप से अर्थव्यवस्थाओं के तेज विकास के तर्क से मेल नहीं खाता। अगर मान लिया जाए कि तेल उद्योग कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी करके मुनाफा कमाने की कोशिश में लगा है तो यह बात भी पूरी तरह से गले नहीं उतरती। क्योंकि अगर ऐसा होता तो खुद तेल उद्योग तेल की बढ़ती कीमतों से चिंतित न होता। गौरतलब है कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से तेल उद्योग का बहुत मुनाफा नहीं बढ़ा, उल्टे उसके सिर आशंका की यह तलवार लटक गई है कि अगर कीमतों में हो रही यह बढ़ोत्तरी नहीं रुकी तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो जाएगी। …और फिर किसी भी कीमत में उस मंदी का मुकाबला आसान नहीं होगा। दुनिया चौपट भी हो सकती है। कुल मिलाकर मुनाफे के लालच में तेल उद्योग इतना बड़ा खतरा मोल नहीं लेगा। सवाल उठता है, फिर कच्चे तेल की कीमतों में हो रही इस अंधाधुंध बढ़ोत्तरी के पीछे कौन है? कच्चे तेल की कीमतों में हो रही इस खतरनाक बढ़ोत्तरी के पीछे है तेल का सट्टा बाजार। वो सटोरिए जो भारी मुनाफा कमाने के व्यक्तिगत फायदे के आगे कुछ भी नहीं देख पा रहे। जिन्हें न तो दुनिया की चिंता है और न ही दुनिया की अर्थव्यवस्था की। तेल पर सटोरियों के इस शिकंजे ने पूरी दुनिया को दहशत से भर दिया है। यही वजह है कि आज भारत, चीन जैसे देशों से लेकर दुनिया के हर देश और दुनिया के हर कोने से कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को लेकर भारी चिंता और दहशत का माहौल व्याप्त हो गया है। वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने इसीलिए पिछले दिनों सउदी अरब की यात्रा की और वहां इकट्ठा दुनिया के तमाम देशों के ऊर्जा मंत्रियों के समक्ष चिंता जताई कि अगर तेल के इस आतंकी खेल पर तुरंत काबू न पाया गया तो दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमराकर ढह जाएगी और दुनिया मंदी की गिरफ्त में आ फंसेगी। वित्तमंत्री ने कच्चे तेल की इन कीमतों को काबू करने के लिए स्पष्ट शब्दों में न सिर्फ तेल का उत्पादन करने वाले बल्कि तेल का ज्यादा से ज्यादा उपभोग करने वाले देशों से कहा कि अगर तेल उत्पादन और वितरण को लेकर प्राइस बैंड प्राणाली लागू न की गई तो सट्टेबाज दुनिया को मंदी के भंवर में डुबो देंगे।
वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने साफ-साफ शब्दों में कहा, “अगर तेल उत्पादक देश अपने तात्कालिक फायदों के चलते सट्टेबाजी के खेल के मूकदर्शक बने तो उन्हें भी इस आशंकित आपदा की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।’ वैश्र्विक हाइड्रोकार्बन समुदाय को संबोधित करते हुए वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने कहा, “तेल उद्योग को कीमतें तय करने में अपनी हुकूमत पुख्ता करनी होगी, नहीं तो तेल उद्योग बुनियादी संकट में फंस जाएगा। तेल की सट्टेबाजी और पेपर ट्रेेडिंग पूरी दुनिया को एक ऐसे दलदल में ले जाकर छोड़ेगी जहां सिर्फ भुखमरी, अविकास और विपन्नता का ही साम्राज्य होगा।’ लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस आसन्न संकट को देखते हुए भी तेल की कीमतों पर नियंत्रण रखने वाले तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने इस चेतावनी और गुजारिश को हवा में उड़ा दिया है। ऊर्जा मंत्रियों की बैठक के तुरंत बाद ओपेक के अध्यक्ष चाकिब खलील ने कहा कि अतिरिक्ति मांग के बिना न तो तेल के उत्पादन को बढ़ाया जाएगा और न ही मौजूदा कीमतों के नियंत्रण व्यवस्था पर किसी तरह का हस्तक्षेप किया जाएगा। कहने की जरूरत नहीं है कि इससे सटोरियों के हौसले बुलंद हुए और इस वक्तव्य के 5 मिनट बाद ही कच्चे तेल की कीमतों में 1 से 2.5 डॉलर प्रति बैरल तक की बढ़ोत्तरी हो गई। अगर तेल की फ्यूचर ट्रेडिंग पर नजर रखने वाली एजेंसियों की मानें तो कच्चे तेल की कीमतों में आने वाले दिनों में भारी इजाफा होने जा रहा है। यह बढ़ोत्तरी 250 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है और ऐसा हुआ तो इसका निश्र्चित मतलब होगा दुनिया का महामंदी के भंवर जाल में फंस जाना, जिसके चिन्ह अभी से दिखने लगे हैं।
यूरोप में गैस सप्लाई करने वाली रूसी कंपनी गैजप्रोम के मुताबिक 2009 के अंत तक कच्चे तेल की कीमत 250 डॉलर प्रति बैरल होगी, वहीं गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि 2009 के अंत तक कीमतें 200 डॉलर प्रति बैरल होंगी। मॉर्गेन स्टेनली का तो अनुमान है कि जुलाई, 2008 के अंत तक ही पेट्रोल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल पहुंच जाएंगी। भारत की सबसे बड़ी तेल व गैस कंपनी ओएनजीसी का भी यही मानना है कि अगर तेल की कीमतों को काबू करने के लिए किसी व्यवस्थित मैकेनिजम को न लागू किया गया तो कोई भी इसे 200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने से नहीं रोक सकता है।
सवाल है, ऐसा होगा तो क्या होगा? इस सवाल का एकमात्र यही जवाब है कि अगर कच्चे तेल की कीमतों में हो रही बढ़ोत्तरी काबू में न की जा सकी तो दुनियाभर की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो जाएगी। विकास की रफ्तार धीमी हो जाएगी और बाजार से खरीदार गायब हो जाएंगे। इसके भारतीय अर्थव्यवस्था में चिन्ह दिखने भी लगे हैं। महंगाई और मंदी की दोहरी मार के चलते भारत के बाजारों में ठंडापन दिखने लगा है। सालाना एक करोड़ से ज्यादा कारोबार करने वाली 1074 कंपनियों के एकत्र किए गए आंकड़ों के मुताबिक इनके यहां पिछले एक वित्त वर्ष के दौरान लगभग 19,000 करोड़ रूपये का माल डंप हो चुका है जो कि इससे पिछले साल यानी 2006-07 के मुकाबले 70 फीसदी ज्यादा है। यहां तक कि उद्योग जगत की तेज रफ्तार मुनाफा कमाने वाली कंपनियों के गोदामों में भी 2006-07 में जितना माल था उसके मुकाबले 2007-08 में 40 से 45 फीसदी बढ़ चुका है और इस सबके चलते हमेशा मुनाफा कमाने वाली कंपनियों के मुनाफे में भी भारी कमी देखी जा रही है। निर्माण के क्षेत्र में जहां 2006-07 में लाभ 61 फीसदी था, वहीं 2007-08 में यह घटकर 35 फीसदी से भी नीचे पहुंच जाएगा।
सवाल है, आखिर ये कौन लोग हैं जो कच्चे तेल के बाजार को शेयर बाजार में तब्दील कर चुके हैं? वास्तव में ये वो मुट्ठीभर मुनाफाखोर हैं जिन्हें सटोरिया कहा जाता है या कहें कि जो भविष्य के अनुमानों के आधार पर विभिन्न जिंसों की कीमतें तय करते हैं और उन कीमतों के आधार पर हवा में ही खरीद-फरोख्त करते हैं। इसका नतीजा यह निकलता है कि इस खरीद-फरोख्त में इनकी पूंजी लगती नहीं लेकिन घाटा या मुनाफा होता रहता है। बिना अदा की गई डिलीवरी और कीमत के हर दिन अरबों-खरबों डॉलर कच्चे तेल की खरीद-फरोख्त होती है। जिस कारण कच्चे तेल की मौजूदा कीमतें आसमान छू रही हैं। इस बात के पर्याप्त सबूत मिले हैं कि तमाम वित्तीय संस्थाएं, पेंशन फंड, हेज फंड जैसे पूंजी के बड़े-बड़े दानवों ने कमोडिटी, निवेश और कमोडिटी डेरीवेटिव के चलते इस बाजार में खरबों डॉलर लगा दिया है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सारा लेनदेन अनियमित और अस्पष्ट है। जिसका सिर्फ और सिर्फ फायदा सट्टेबाजों को हो रहा है। यहां तक कि तेल उत्पादन करने वाले ओपेक देशों को भी उतना फायदा नहीं मिल रहा। यही कारण है कि वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने जोर देकर तेल उत्पादक देशों से भी कहा है कि अगर उन्होंने मामूली फायदों के लिए इस खतरनाक नेटवर्क पर लगाम नहीं लगाया तो दुनिया तो डूबेगी ही, उनके भी इस डूब में बचने की कोई उम्मीद नहीं है। वित्तमंत्री चिदंबरम ने जिस प्राइस बैंड यानी एक निश्र्चित कीमत से ऊपर या नीचे न जाने की बात कही है, उससे उपभोक्ता देशों के मुकाबले उत्पादक देशों का ही बड़ा फायदा है। लेकिन इस पर भी ओपेक देशों ने किसी भी तरह गंभीरता से सोचने का कोई आश्र्वासन नहीं दिया। जिससे यह अदांजा लगाया जा सकता है कि तेल के आतंकी खेल से हाल-फिलहाल बचने की कोई उम्मीद नहीं दिखती। सिर्फ तेल ही नहीं, दुनियाभर में जिंसों की कीमतों में जो भारी उछाल आया है, उसके भी पीछे सिर्फ और सिर्फ सटोरिए हैं। दरअसल, भारत जैसे देश में भी जब से कमोडिटी ट्रेडिंग की शुरूआत हुई है, खाद्य पदार्थों की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। क्योंकि सट्टाबाजार में सारा लेनदेन अनुमानों के आधार पर होता है। इस कारण सटोरिए महंगे सौदों से जरा भी नहीं झिझकते क्योंकि उनका यह तमाम खेल सिर्फ हवा-हवाई होता है। लेकिन आम आदमी को उनके इस खतरनाक खेल की भरपूर कीमत चुकानी पड़ती है। इसलिए वक्त आ गया है कि पूरी दुनिया के तेल उपभोक्ता देश एकजुट हों और तेल के इस आतंकी खेल पर अपनी एकता से लगाम लगाएं, नहीं तो सटोरियों का लालच और तेल उत्पादक देशों की मौकापरस्ती दुनिया की अर्थव्यवस्था को ले डूबेगी।
तेल ने दी है महंगाई की ग्लोबल दस्तक
कच्चे तेल के बढ़ते दामों के कारण सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में महंगाई आसमान छूने लगी है। भारत में जहां 13 सालों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए मुद्रास्फीति की दर 11 फीसदी के पार पहुंच गई है, वहीं भारत से भी तेज रफ्तार विकास कर रहे चीन में भी महंगाई पिछले 12 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 7.7 फीसदी की दर पर पहुंच गई है। चीन में भी भारत की तरह पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हाल के दिनों में बढ़ोत्तरी हुई है। भारत में जहां यह बढ़ोत्तरी 10 फीसदी की हुई है वहीं चीन में 18 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि की गई है। इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका और फिलिपींस व वियतनाम जैसे देशों में भी तेल की बढ़ती कीमतों ने महंगाई के विकराल होने की स्थितियां पैदा कर दी हैं। भारत की ही तरह चीन में भी उत्पादन डंप होने लगा है और उत्पादकों के माथे पर चिंता की लकीरें गहराने लगी हैं। इसका मतलब साफ है कि तेल का यह झटका जोर से और पूरी दुनिया को लग रहा है।
आतंक का नया हथियार है सट्टा
अगर आप यह सोचते हों कि सट्टा बाजार पर खेल करने वाले सिर्फ अर्थव्यवस्था के खिलाड़ी ही होते हैं तो आप गलत सोच रहे हैं। सच बात तो यह है कि आतंकवाद ने अपना संवेदनशील विस्तार करते हुए सट्टा बाजार को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। पिछले कुछ सालों में फ्रांस, अमेरिका, भारत सहित कई देशों के शेयर बाजारों में आतंकवादियों की संदिग्ध गतिविधियां उभरकर सामने आई हैं। तेल के बाजार में इस तरह की आग लगाने वालों में भी आतंकवादी हैं। अगर ऐसा न होता तो जैसे ही दुनिया की चिंता से सहमत होते हुए सउदी अरब ने यह घोषणा की कि वह कच्चे तेल के उत्पादन में 2 लाख बैरल रोजाना की वृद्धि करेगा। इसके तुरंत बाद नाइजीरिया में आतंकवादियों के एक संगठन द्वारा धमकी दी गई कि वह तेल पाइपलाइन को उड़ा देगा, अगर कुछ देशों की चिंता करते हुए तेल के उत्पादन में वृद्धि की गई। जाहिर है, आतंकवादी नहीं चाहते कि तेल का उत्पादन बढ़े और बाजार में कीमतें कम होने का दबाव बढ़े। क्योंकि अगर तेल की कीमतें कम हो जाएंगी तो आतंकवादियों के इस क्षेत्र से पैसा कमाने की उम्मीदों पर भी पानी फिर जाएगा। इसलिए वो नहीं चाहते कि कच्चे तेल के बाजार से सट्टेबाजी का नियंत्रण खत्म हो।
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