नेताओं की चाल सियासी और नहीं चलने देंगे
छल-फ़रेब की बारहमासी और नहीं चलने देंगे।
पहने हुए भक्त का चोला बगुले बैठे हैं साहिल पर
इनकी यारों जीभ टका-सी और नहीं चलने देंगे।
देना है तो तू दे हमको भाव कोई ता़जा-ता़जा
तेरी बातें बासी-बासी और नहीं चलने देंगे।
कल देखे थे जिन आँखों के मीठे-मीठे कुछ सपने
उन आँखों के बीच उदासी और नहीं चलने देंगे।
नाम धर्म का लेकर लाशें “राजकुमार’ न और बिछें
सद्भावों पर छुरी-गड़ासी और नहीं चलने देंगे।
– राजकुमार मिश्र
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