थारे हिरदाँ में बसे दीनानाथ, मंदिर में काँई ढूँढ तो फिरे।
मुरत बनाई मंदिर में मेली, आ काँई मुँह से बोले राम।
दरवाजे दरबान खडो रे, बिना रे हुक्म नहीं खोले॥ 1 ॥
गगन मण्डल से गँगा उतरी, पाँचों कपडा धो ले राम।
बिन साबुन थारो मैल कटे लो, नहाय धोय कर होवे॥ 2 ॥
सौदागर से दौरा करले, जग को मोल करा ले राम।
जो थारे मन में भरम होय तो, घाल तराजू में तोले॥ 3 ॥
ये दुनियाँ मतलब की झूठी, झूठी बाणी बोले राम।
राम नाम निज माण क मोती, होनी होय सो हो ले॥ 4 ॥
नाथ गुलाब मिलोया गुरु पुरा, मन कीा परदा खोले राम।
भवानीनाथ शरणे सत्गुरु के, होनी हो सो हो ले॥ 5 ॥
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