थोडी म्हारी अर्ज सुनोनी इन्द्र राजा आप सुनीया
सुम्हारो कारण सरे रे
बरस बसस म्हारा मोहन मेवा
पीरजी जेठ महीना री बेरेन वाजे
सुखा सखर भाण तपे रे
नदी रे नियालारा नीर सुखगा
लख चौरासी जीवा चुन मेरे रे
आयोरे आशाड अलक थारी आशा
करसारे करसन करे रे मते रे
लगी जोत जमी लक बुटी
सभीरे जगह हरियाल हूवे रे
सावन मास सनचेला बरसे
इन्द्र राजा रे धन घोर करे रे
दादूर मोर पपण्या बोले
कोयिला रे किलोड करे रें
भर जो बन भाँदवों भर से
नव सौ नदीया धन घोर करे रे
गाव गिवारे जोर साड़
धड़के हरियारे धामन धनू छ रे रे
आसोज महिने अमोलक बरसे
सिपीरे समुद्रा में बुन्द पड़े रे
सिपी रे समुद्रा में मोतीड़ा निपणे
नहीं जीवा में जीव पड़े रे
कार्तिक महीना में लोय लावणी
सिरे रे हीटा पर हाथ धरे रे
गाँव धणी रे आसल आवे
सारी दुनिया किलाड़े करे रे
मन साही बरसे मनसाही तरसे
मनू सा रपी काज सरे रे
हरि रा शरण में भाटी हरणी बोलें
जनम जनम रामा पीर मिले रे
You must be logged in to post a comment Login