दी – दीपों की लडियां है
पा- पावन फुल झडियां है
व – वन्दना लक्ष्मी की
ली – लीला लीलाधर की।
कार्तिक वदी अमावश्या के दिन दीपावली का त्यौहार होता है।
दीपावली भारती राष्ट्र जीवन का प्रमुख त्यौहार है, यह धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, यह सौभाग्यप्रजा का प्रकाश पर्व है, दीप पर्व है, यह दीप पर्व अंधकार पर विजय का पर्व है और अंधेरे से प्रकाश की और यात्रा हमारा सांस्कृतिक जीवन दर्शन है, तमसो मा ज्योतिर्गमय असतो मा सद्गमय का सन्देश हमारा शाश्वत जीवन मूल्य है, दीपावली की स्निग्ध बतियों से निकली किरणें कार्तिक की अमावस्या की गहनतम अंधकार को छिन्न-भिन्न कर सम्पूर्ण समाज जीवन को नई उमंग एवं नये उन्मेष भावों से भरती है।
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपक ज्ञान का, प्रकाश का, आनन्द का, उल्लास सा और स्नेह का प्रतीक होता है, ये दीप यह भी बतलाते है कि बिना जले प्रकाश नहीं खिलेगा, समाज का जीवन पथ आलौकि करने के लिए हम स्वयं पहले प्रकाशित हो, अपने अर्न्तमन में भी दीप जलाये और राष्ट्र सजल बन के पथ को आलोकित करने का व्रत ले। आओ अन्धेरा मिटाये, आओ दीप जलाये।
दीप जले दिपावली आई, अपने संग खुशियां ले आई,
इतने दीप जलाए है, दिल में इन्हें जलाए ही रखना,
दिपों की श्रृंखला भले ही कम हो लौ को हमेंशा बनाए ही रखना।
मिट जाए अंधेरे दिलों के प्रेम के दीप जलाए रखना,
मतभेदों को भूलाकर, प्रेम के दीप प्रगटाये रखना।
आज के दिन सभी के मन में एक अनोखा ही हर्षोल्लास होता है। सुबह न्हा धोकर मन्दिर दर्शन करके आते है, दोपहर केबाद अच्छी रसोई बनती है। 3-4 साग, पूडिया, मीठा, नमकीन, खिचिया, पापड, फली तलते है। तवा नहीं चढता है। रसोई बनाने के बाद पूरा घर धोते है, फिर चार जगह माडना मांडते है, मुख्य दरवाजे केपास पगल्याबनाते है।
शाम को लक्ष्मीजी की तसवीर को धो पूंछ कर साफ करते है पंचामृत बनाते है, गाय कादूध, के पेडे लक्ष्मी जी के प्रसाद में बनाते हैं। चार पाटो पर रु. मांडते है, पाटा रखकर उसके उपर कांसीकाथाल रखते है, थाल में 21 या 25 दिये रखते है, बीच के दीये के नीचे चावल रखते है, वो दिया बडा लेते है, उसमें चार बाट डालकर चंद्रुमुखी जलाते है। चांदी के 21 या 11 सिक्के लेते है। आरती के समय अच्छे कपडे पहन कर लक्ष्मीजी की पूजा करते है, पानी, पंचामृत, गंगाजल, कुंमकुंम, चावल, मोली, पान, सुपारी,लोंग, इलायची, पतासा तथा जो रसोी बनी है वो सारी लेकर लक्ष्मीजी की पूजा करते है, आरती करते है, दीपक जलाते है, एक दिपक पितरजी के नाम का, एक भगवान केपास, 1 तुलसी माता केपास, 1 दिपक सभी कमरो में बाकी के दिपक घर में रोशनी करते है। दीपावली के त्यौहार में हम मेहन्दी नहीं लगाते है, घर में आरती करके सभी को प्रणाम करते है, सासुजी को पगे लागनी देते है, ओफिस में विधिसर पूजा होती है, चोपरा पूजन होता है, घर में आरती करके आफिस जाते हैं, वहाँ आरती होती है, आतिशबाजी करते है, घर आकर सभी भोजन करते है, ओरते एक समय भोजन करती है। शाम को दीपक देखने के बाद, इस प्रकार दीपावली का त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
लक्ष्मीजी की कहानी
एक साहुकाल की बेटी थी, जिकी रोजिना पीपल सींच न जाया करती। पीपल मस लक्ष्मीजी निकलती, आभा की सी बिजली, होली की सीझल, तीजाँ की तीजनी, गुलाब क स रंग। निकल कर साहूकार की बेटीन बोलती कि तू मेरी भायली बनजा। एक दिन बा बोली कि मेर बाप न पूछ क काल बन जाऊँगी। धराँ आकर आप क बाप न सारी बात बताई। बाप बोल्यो कि बा तो लक्ष्मीजी ह, आपाँ न ओर के चाहिये, भायली बनजा।दूसर दिन बा फेर गई, लक्ष्मीजी ओज्यूं बोल्या कि भायली बनजा। जद बा बोली कि बन जाऊँगी। दोनू जणो भायली बनगी। लक्ष्मीजी मायली न जीण को नूता ेदियो। धराँ आकर बेटी, बाप न क्यो कि लक्ष्मीजी म न जीमम को नुतो दिओ ह। बाप कयो कि चली तो जा, पर घर म सामो कर क जाये। बा भायली क जीमण गई। लक्ष्मीजी, साल-दुसाला ओढण दिया, मोहर-रुपिया परखण दिया, सोना की चोकी पर, सोना की थाली म, छत्तिस प्रकार का भोजन कराया। जद वा पाछी आ न लागी, तो लक्ष्मीजी ऊँको पल्लो पकड लियो और बोली कि भायली म भी तेरे जीमण आऊँगी। बा बोली कि अच्छा आईये। घराँ आ क उनमणी हो क बैठगी। बाप पुछयो कि बाद है लक्ष्मीजी बोली ह कि म भी तेरे जीमण आऊँगी। ब तो मन इतनी चीजाँ स जिमाई, आप न घर म तो कुछ भी कोनी, आपाँ कैयाँ जिमावागाँ। बाप कयो कि आपण क न ह जिसो ही जिमा देवागाँ, पण तू गोबर-माटी सचोको देकर, एक चौमुखो ीदयो चास कर,एक लाड्डु क न रख कर,लक्ष्मीजी को नाम लेकर गद्दी पर बैठजा।बा आरसी आपण क न हुसी जिसो ही जिमा देवागाँ, बा अईयाँ ही करी। एक चील, रानी को नोलखो हार उठा कर लियाई, लाड्डू तो लेगी और हार गेरगी। साहूकार की बेटी मोदी कन गई औक्षर बोली कि ई हार क बदल मन सोना कीचोकी, सोना को थाल, सोना की झारी, मोहर-रुपिया, साल-दुसाला और छत्तिस प्रकार का भोजन बन जाव उतनी सामग्र दे। धराँ ल्याकर खूब सारी रसोई बनाई। गणेशजी-लक्ष्मीजी आया। साहूकार कीबेटी भायली न पीडो घाल दियो और बोली कि बैठजा। लक्ष्मीजी बोल्या कि पींडा पर तो म राजा रानी क ही कोनी बैठूँ। जद बा क्यो कि मेर तो बैठनो ही पडसी, नही तो मेरा माँ-बाप, भाई-भतिजा, बेट-पोटा-बहुवाँ, जवाईदूयता, पडोसना के जा न गी कि लक्ष्मीजी सी भायली बनी ह। लक्ष्मीजी पीढा पर बैठगा। बा ऊँना की मोत खातिर करी, जैयां लक्ष्मीजी करी थी। लक्ष्मीजी ऊँ प भोत राजी होगी। घर म अरबाँ-खरबाँ की सम्पत्ति होगी। साहूकार की बेटी बोली कि वार न जाकर आँ हूँ, इत थे जायो मतना। बा आई कोनी, लक्ष्मीजी गया कोनी। हे लक्ष्मी माता, बी साहूकार की बेटी क पीडा पर बैठ्या, धन दियो, जिसो सब न दियो। कहताँ न सुणताँ न, हुकारा क भरता न, आपना सारा परिवा न देईयो। इ क बाद बिन्दायकजी की कहानी कब। किताब म कई जगाँ लिखेडी ह।
लक्ष्मी जी की आरती
जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता,
तुमको निशनिद सेवत हर विष्णु धाता
ब्रह्माणी, रुद्राणी कमला तुं ही है जगमाता,
सूर्य चन्द्रमां ध्यावत नारद ऋषि गाता
दुर्गा रूप निरंजनि सुख सम्पति दाता,
जो कोई तुमको ध्यावत रिद्धि-सिद्धि धन पाता
तु ही है पाताल बसन्ती, तू ही है शुभदाता
कर्म प्रभाव प्रकाश क जगनिधि से त्राता
जिस घर थारो वासो वाहि में गुण आता
कर न सके सोई करले मन नहीं धडकाता
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न होय राता,
खान पान को वैभव तुम बिन कुण दाता
शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीरनिधि जाता,
रत्न चर्तुदश तो कूं कोई भी नहीं पाता
या आरती लक्ष्मीजी की जो कोई नर गाता
उर आनन्द अति उमंगे पाप उतर जाता
स्थिर चर जगत बचावें, कर्म प्रेम ल्याता
राम प्रताप मेया की शुभ दृष्टि चाहता
ओम जय…
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