जो जीवन में केवल सम्पत्ति को ही सब कुछ मानते हैं, विशेष तौर पर उनके लिए। जीवन में धन ही सब कुछ नहीं है। इससे बढ़ कर भी दुनिया में ऐसा बहुत-कुछ है, जिसे पाकर हम खुश हो सकते हैं, गर्व का अनुभव कर सकते हैं। निश्र्चिय ही आप सोच रहे होंगे कि यह तो उचित नहीं है। लेकिन सच तो यही है कि आज जितना महत्व धन का है, उससे अधिक महत्व सुख का है। अब यह बात अलग है कि हम ही इन सुखों को दो भागों में विभाजित कर एक मायावती सुख की लालसा में रहते हैं। आज लोग जिस सुख के पीछे भाग रहे हैं, वह क्षणिक है। इसे सम़झना हो, तो उक्त दम्पत्ति की व्यथा से समझा जा सकता है- वे गरीबी के बीच अपना जीवन गुजार रहे थे, अचानक उन्हें जैकपॉट में बेतहाशा धन मिला। इस धन से उन्होंने तमाम भौतिक सुख की प्राप्ति कर ली, पर जो म़जा फाके-मस्ती वाले जीवन में था, वह बेशुमार धन के ढेर पर बैठ कर नहीं मिला।
आज हमने सुख को विभाजित कर दिया है। एक भौतिक सुख दूसरा आत्मिक सुख। इसे हम ऐ. सी. की ठंडी हवा और नीम के पेड़ के नीचे बैठ कर ठंडी हवा के झोंके की संज्ञा दे सकते हैं। जिन्होंने इन दोनों ही तरह की हवा के म़जे लिए हैं, वे अच्छी तरह से जानते हैं कि किस तरह की हवा अच्छी लगती है? देखा जाए, तो आत्मिक सुख ही जीवन जीने का मूलमंत्र है। कोई दौलतमंद है और सुखी है, इस बात में अब सच्चाई नहीं रही। इसके बाद भी भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए अधिक से अधिक धन संग्रह करना याने मुसीबतों को आमंत्रित करना है। जो लोग कहते हैं कि पैसा तो हाथ का मैल है, ऐसे लोगों को आज की पीढ़ी माफ करने वाली नहीं है, परंतु समय पर कमाया हुआ धन और समय पर खर्च किया गया धन भी सुखमय सांसारिक जीवन नहीं दे सकता, यह सच है। बेशुमार धन के बीच भी लोग एक अच्छी गहरी नींद के लिए तरसते रहते हैं, शायद इस सच को वे ही समझते हैं, जो सालों से गहरी स्वाभाविक नींद नहीं ले पाए हैं।
अब बात उस दम्पत्ति की, जिनकी शादी को अधिक समय नहीं हुआ था। पति कूग पोप 23 वर्ष का था और उसकी पत्नी कलेर आवन 25 वर्ष की थी। उन्हें रहने और खाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। जीवन फाके मस्ती में कट रहा था, फिर भी वे खुश थे। कुछ नहीं था, पर प्यार और अपनापे की बेशुमार दौलत उनके पास थी। वे दुःखी रहकर भी सुख के क्षणों को पा ही लेते थे। ऐसे में उनकी पुत्री सेरेन के जन्म के बाद उन्हें 50 लाख पाउंड का जैकपॉट लग गया। इसके पहले दस ह़जार पाउंड का कर्ज था, जिसे देने के लिए वे जद्दोजहद कर रहे थे। वे अपनी पुत्री सेरेने को िासमस गिफ्ट भी देने की स्थिति में नहीं थे। लेकिन जैकपॉट लगते ही उनका जीवन ही बदल गया। अब वे अपना दो कमरों वाला फ्लैट छोड़ कर स्वीमिंग पूल वाले विशाल बंगले में रहने लगे। विश्र्व के तमाम भौतिक सुख उनके कदमों पर थे। वे अपने आपको सबसे सुखी परिवार मान रहे थे। लेकिन यह भौतिक सुख वास्तव में सुख नहीं था। दौलत के आते ही तमाम बुराइयॉं भी आने लगीं। पति कूगपोप को पत्नी बुरी लगने लगी। इसलिए उसने अपने लिए एक गर्लोंड ढूँढ ली। इसका नाम एलाइस था। दोनों साथ-साथ घूमने लगे, कुछ समय बाद कूगपोप अपने घर से 100 मील दूर अपनी गर्लोंड के साथ रहने चला गया। कुछ समय बाद दोनों में तलाक हो गया। लाखों पाउंड के मालिक बनने के बाद उनके जीवन से असली सुख दूर चला गया। दोनों ने स्वीकार किया कि जब वे कड़के थे, तब अधिक सुखी थे।
आज भीतर के सुख को प्राप्त करने की सीख देने वाले देश भर के तमाम साधु-संतों की सम्पत्ति पर एक नजर डालें, तो स्पष्ट हो जाएगा कि वे स्वयं भी कतई सुखी नहीं हैं। क्या ये दौलत उन्हें खुशी दे सकती है? लेकिन आज उनकी सम्पत्ति को देख कर यही लगता है कि वे न जाने किस सुख की बात करते हैं? वास्तव में देखा जाए, तो जिस सुख को हम बाजार में खरीदने जाते हैं, वह हमारे भीतर ही है। घर तमाम सुख-सुविधाओं से सुसज्जित हो जाए, तब भी हमें ऐसा लगेगा कि कुछ बाकी रह गया है। साल भर पिज्जा या फास्ड फूड खाने वाला यदि एक दिन मॉं के हाथ की जली रोटी ही खा ले, तो वह सारे स्वाद भूल जाएगा। पर वह जली रोटी मिले कहॉं से? उसने तो पिज्जा में ही जीवन का असली सुख ढूँढने की कोशिश की है, वह भला कैसे मिलेगा?
सुखी होने वाली किताब बेचने वाले उक्त किताब से लाखों कमा लेते हैं, पर सुख नहीं कमा पाते। सुख के संबंध में कई पोथियॉं लिखी गई हैं, पर असली सुख की चाबी कहॉं है, यह कोई नहीं बता पाया है। लोगों के हाथ में जो नहीं है, वे उसे पाने की जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। लेकिन जो उनके पास है, उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। हर हाल में खुश रहने वाले संभवतः असली सुख प्राप्त कर सकते हैं। कोई सुख के लिए घर बसाता है, तो कोई सुख के लिए घर छोड़ता है। जीवन के एक-एक क्षण को जीने की कोशिश करो, यही सुख की सही व्याख्या है।
आज हम सभी एक दूष्टिभ्रम में जी रहे हैं। जो वास्तव में सुख है, उसकी तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता। दूसरा कितना सुखी है, हम यही देख रहे हैं। हम कितने दुःखी हैं, यही हमें दिखाई दे रहा है। सुख और दुःख के बीच एक महीन रेखा है, बहुत ही कम अंतर है इसमें। सुख खुशी देने में है, पाने में नहीं। इसलिए खुशी का जो भी क्षण मिले, उसे पकड़ लो और फिर उसे बॉंट दो, आप देखेंगे कि वही खुशी दोगुनी होकर आपके पास आ जाएगी। आप इसे फिर बॉंट दीजिए, फिर देखो कमाल, आपसे बड़ा सुखी कोई नहीं होगा। बड़े-बड़े साधू-महात्मा और रइसजादे भी आपसे जलने लगेंगे, क्योंकि आपके पास कुछ भी न होकर खुशियों की दौलत है। बेशुमार दौलत होने के बाद भी आत्मिक सुख नहीं पाने वाले निर्धन की सूची में आते हैं, दूसरी ओर जेकपाट जीतने वाले युगल आखिर में सुख का जेकपाट जीत तो गए, पर उन्हें तलाक रूपी दुख का सामना करना पड़ा।
– डॉ. महेश परिमल
You must be logged in to post a comment Login