काला लंबा सांप बिल से बाहर निकला और रेंगने लगा। अब उसमें पहले वाली शक्ति नहीं थी। उम्र के साथ-साथ शरीर भी ढल चुका था। छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े, कछुए आदि को भी मारना उसके बस की बात नहीं रही थी। तब उसने बड़े-बुजुर्गों का पाठ याद किया कि समय के साथ बदल जाना ही बुद्घिमत्ता होती है।
आज जब काला नाग बिल से निकला, तो सामने बैठे मेंढकों और कछुओं को प्रणाम करने लगा।
अरे नागराज, आप तो हमसे बड़े हैं। हमारा फर्ज है कि आपके पॉंव छुएँ।
बेटे, जब बच्चे जवान हो जाते हैं तो उनसे रिश्ता मित्रों वाला हो जाता है।
नागराज, यह क्या कह रहे हैं। हम तो आपकी सेवा के लिए हाजिर हैं। बोलिए, हम आपके किस काम आ सकते हैं?
बेटे, यदि तुमने दुःख ही पूछा है तो बताता हूँ। पिछले जन्म में मुझे एक ब्राह्मण ने श्राप देकर कहा था कि जब तुम अगले जन्म में बूढ़े होकर मेंढकों और कछुओं को अपनी पीठ पर बिठा कर घुमाओगे, तभी बुढ़ापे में भोजन नसीब होगा।
नागराज, हम आपके काम आ सकें तो बड़ी खुशी होगी। लोग तो हमें दुश्मन समझते हैं, पर सच्चाई ये है कि हम भी आपसे दोस्ती चाहते हैं।
सांप मन ही मन खुश था कि उसकी चाल सफल हो गई। अब वह भूखा नहीं मरेगा। दूसरी ओर मेंढकों और कछुओं ने अपने साथियों को यह खुशखबरी सुनाई, वाह, क्या आनंद आएगा, जब हम दुश्मन की पीठ पर बैठकर सैर करेंगे।
सुबह हुई तो कछुए और मेंढकों के सरदारों ने नागराज को आवा़ज लगाई, नागराज, हम आ गए हैं। नागराज बिल से बाहर निकला, आओ मित्रों, तुम्हें नमस्कार करता हूं।
नागराज, आपको अपना कल वाला वचन तो याद होगा।
भैया मैं नाग हूँ, नाग वचन नहीं भूलते। आओ, आज तुम दोनों सरदार मेरी पीठ पर आ जाओ, कल से तुम्हारी जनता का नंबर लगेगा।
हां नागराज, समय आने पर आप हमारी परीक्षा लेकर देख लेना। हम आप जैसे मित्र पर अपनी जान भी कुरबान कर देंगे।
बस मित्रों, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। मेरी पीठ पर बैठ जाओ और घूमने का आनंद लो।
अब मेंढक और कछुओं के सरदार नाग की पीठ पर बैठ गए। सारा दिन सांप उन्हें घुमाता रहा। शाम को उसने मेंढक और कछुए को उसी जगह उतार दिया, मित्र अब कल मिलेंगे। पर मित्रों, एक बात से मुझे बहुत तकलीफ हुई। आप सारा दिन घूमते रहे, पर किसी ने मुझसे यह भी नहीं पूछा कि मैंने खाना खाया है कि नहीं।
ओह नागराज, क्षमा करना। हम शर्मिंदा हैं। कल से आपके भोजन का प्रबंध हो जाएगा। नाग बड़ा खुश था। तीर निशाने पर लगा था। दूसरे दिन सांप के लिए भोजन आ गया। सांप ने भोजन किया और दोनों सरदारों को पीठ पर लादकर चल दिया। उसके भोजन के लिए रोज मेंढक और कछुए आने लगे। इधर कछुआ और मेंढक सरदार सांप से दोस्ती करके खुश थे। अब उन्हें पूरी बिरादरी का सम्मान मिलने लगा। फिर नाग की सवारी का अपना ही आनंद था। जो कोई भी उन्हें देखता, हैरान हो उठता, वाह बड़े भाग्यशाली हो, जो सांप पर सवारी करते हो।
अपने-अपने नसीब हैं भैया। ़जरूर पिछले जन्म में कोई पुण्य किए होंगे, जो अब आनंद ले रहे हैं।
समय बीतता गया। सांप का बुढ़ापा म़जे में कट रहा था। धीरे-धीरे उसने तालाब के सभी कछुए और मेंढक खा लिए। अब सरदार ही बाकी थे। नागराज, हमारी सारी प्रजा खत्म हो गई, बड़े दुःख के साथ कह रहा हूँ।
प्रजा ही समाप्त हुई है न, आप तो जीवित हैं।
यह कहते हुए उसने कछुआ और मेंढक सरदारों को भी खा लिया।
शिक्षा – दुश्मन और दोस्त को पहचानो।
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