एक तकला़फ से तुमको मैंने बचाया है।
अब आओ,
दूसरी तकलीफ़ की तरफ़ चलें।
एक रात बीती है
अब चल पड़ें
एक-दूसरी रात की तरफ़।
एक अध्याय छूट गया है जहां
उसे रहने दें वहीं
जलती लकड़ी और टूटे कलश की तरफ़
मुड़कर देखना
उचित नहीं
चलो,
दूसरा एक अध्याय हमें बुला रहा है।
– नीरेन्द्र नाथ चावर्ती
You must be logged in to post a comment Login