देशहित पर भारी है वोटों की राजनीति

दिल्ली में फिर एक बार बम विस्फोट हुए। इन बम विस्फोटों की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन नामक आतंकवादी संगठन ने ली है। हमेशा की तरह जब भी देश के किसी भी भाग में आतंकवादियों द्वारा विस्फोट किया जाता है, इसके पूर्व ही उनके द्वारा बाकायदा चेतावनी दी जाती है, फिर विस्फोट होता है और बेकसूर नागरिकों का खून सड़कों पर बह जाता है। इन मरने वालों में अबोध बालक भी शामिल होते हैं जिनकी रूह पूछ सकती है कि उनका कसूर क्या था? आतंकवादी घटनाओं के बाद मृतकों के परिवारजनों को आर्थिक मदद घोषित कर दी जाती है, पुलिस अपराधियों तक पहुँचने के सूत्र मिलने का दावा करती है और उनके स्केच बनाकर प्रकाशित करा देती है। कुछ नेतागण आरोप लगा देते हैं कि हमने पहले ही सचेत किया था कि आतंकवादी हमला होने वाला है, फिर भी सचेत नहीं हुए और फिर शुरू हो जाती है राजनीति। यह सब हवा में फायर करने वाली बातों से अधिक महत्व नहीं रखती और वारदात करने वाले साफ बचकर आगे की जाने वाली वारदातों को अंजाम देने की योजना बनाने लगते हैं। अब यह चेताया जाना कोई महत्व नहीं रखता कि अमुक जगह आतंकवादी वारदात कर सकते हैं, क्योंकि भारत के लगभग सभी भागों में आतंकवादी अपने नाखून गड़ा चुके हैं। ऐसी स्थिति में बिना चेताए ही हमेशा सतर्क रहने की ़जरूरत है। सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहने के लिए चेताया नहीं जाना चाहिए, वरन् उन्हें हमेशा ही सतर्क रहना चाहिए। वर्तमान स्थिति में भारत आतंकवादियों के लिए एक पर्यटन स्थल बन गया है। वे यहॉं टहलते हुए आते हैं और विस्फोट कर टहलते हुए वापस लौट जाते हैं।

विदेशी आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है, परन्तु जब घर में ही आतंकवादी और उनके समर्थक पैदा हो जाएं तो स्थिति विकराल रूप धारण कर लेती है। पाक प्रायोजित आतंकवादी अपने मकसद में सफल नहीं हो सके, तो भारत में ही घरेलू आतंकवाद को पोषित कर दिया गया। इस आतंकवाद को पोषित करने के लिए घरेलू मुद्दे भी बनाए गए। एक सीमा तक इन मुद्दों को दोहराया जाता है, फिर मुद्दे गौण हो जाते हैं और मात्र खून-खराबा रह जाता है। यदि इन विस्फोट करने वालों से ही पूछा जाए कि वे यह खून-खराबा क्यों कर रहे हैं, तो शायद वे कोई कारगर उत्तर भी नहीं दे सकेंगे। सिमी का ही नाम इंडियन मुजाहिदीन बताया जाता है। सिमी की स्थापना अलीगढ़ में हुई थी। जब संदिग्ध गतिविधियों के कारण सिमी पर पाबंदी लगाई गई और इसमें कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, तो देश के कई राजनेताओं ने इन्हें क्लीन चिट दी और इनके पक्ष में मैदान में उतर आए। इसके परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश में गिरफ्तार सौ से अधिक सिमी कार्यकर्ताओं को छोड़ा गया। मामला देश में अमन-शांति को दरकिनार कर राजनीतिक बनाया गया। मुस्लिम मतों को आकर्षित करने के लिए कई नेता उनके हिमायती बने, लेकिन मुस्लिम नेताओं ने ही घोषित किया कि इस्लाम में आतंकवाद का कोई स्थान नहीं है। आतंक फैलाने वाले मुस्लिम नहीं हो सकते, फिर जिन लोगों की इन राजनेताओं द्वारा हिमायत की गई है, वे कौन से मतदाताओं को रिझाने का प्रयास कर रहे हैं? आतंकवाद से निपटने के लिए पूरे देश को एकजुट होना पड़ेगा, परन्तु सिमी जैसे प्रतिबंधित संगठनों के हिमायती तो संसद में ही पहुँच गए हैं तो फिर आतंकवाद के विरुद्घ कठोर कानून बनाने की मात्र कल्पना ही की जा सकती है।

सवाल ये है कि आतंकवाद से किस प्रकार निपटा जाएगा? सभी देशों में आतंकवाद से निपटने के लिए कठोर कानून बनाए गए हैं। चीन में तो मादक पदार्थों की तस्करी जैसे जुर्म में ही मौत की सजा का प्रावधान है। अमेरिका में वर्ल्ड सेन्टर पर हमले के बाद आतंकवाद से सख्ती से निपटा गया, कठोर कानून बनाए गए, फिर दोबारा वहां आतंकवादी घटना की पुनरावृत्ति नहीं हुई। भारत ही एक ऐसा देश है, जहॉं आतंकवादी वारदातें होना सहज है क्योंकि आतंकवाद से निपटने के लिए कोई कठोर कानून नहीं है। राजग सरकार के कार्यकाल में आतंकवाद से निपटने के लिए पोटा कानून बनाया गया था, परन्तु संप्रग सरकार ने उसे प्रभावहीन कर दिया। यदि पोटा के िायान्वयन में कोई दोष था तो पोटा के स्थान पर कोई दूसरा सख्त कानून बनाया जाना चाहिए था। केन्द्रीय नेताओं ने तो यहॉं तक कह दिया कि राज्यों में सुरक्षा-व्यवस्था का दायित्व राज्य सरकारों का है।

सख्त कानून के अभाव में राज्य सरकारें भी आतंकवाद से निपटने में असमर्थ हैं। राजस्थान, गुजरात आदि कई प्रांतों के कई सख्त कानून स्वीकृति के लिए केन्द्र सरकार के पास लंबित हैं। राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तावित इन कानूनों को केन्द्र सरकार न तो स्वीकृति दे रही है और न ही कोई सख्त कानून बना रही है। केन्द्र सरकार मात्र तमाशबीन-सी नजर आती है, जो न तो कुछ कर रही है और न ही राज्य सरकारों को कुछ करने देने के लिए उनके द्वारा प्रस्तावित कानूनों की स्वीकृति दे रही है। यह प्रश्र्न्न भी उठना स्वाभाविक है कि जब आतंकवाद से निपटने के लिए महाराष्ट में सख्त कानून है, तो अन्य राज्यों को इन कानूनों की स्वीकृति क्यों नहीं दी जा सकती। यह कहना कोई गलत नहीं होगा कि आतंकवाद से निपटने में केन्द्र सरकार लापरवाह बनी हुई है। केन्द्र सरकार इस मामले में न तो कुछ कर पा रही है और न ही राज्य सरकारों को कुछ करने दे रही है।

आतंकवाद से निपटने के लिए सूचना तंत्र को भी सख्त किया जाना चाहिए, लेकिन इंटेलिजेंस भी राजनीति का शिकार है। जो अधिकारी अपने कार्य में अक्षम साबित होता है, उसकी इंटेलिजेंस में पदस्थापना कर दी जाती है। राजनीतिक उद्देश्य से या फिर प्रताड़ित करने की दृष्टि से इस विभाग में भेज दिया जाता है। जब अधिकारी अपने मूल पद पर ही नाकामयाब हो तब ऐसे अयोग्य अधिकारी से उत्तम कार्य की आशा कैसे की जा सकती है। सजा के तौर पर या राजनीतिक द्वेष से जिन अधिकारियों को इंटेलिजेन्स में पदस्थ किया जाता है, वे पूर्व से ही कुंठा भरे होते हैं। फिर कैसे इनसे असरदार कार्य की आशा की जा सकती है। सूचना तंत्र को प्रभावी और गतिशील बनाने के लिए यह ़जरूरी है कि इंटेलिजेंस में पदस्थापना की वर्तमान परम्परा को समाप्त कर देना चाहिए। देशहित पर राजनैतिक स्वार्थ हित भारी हो गया है।

यही कारण है कि नियुक्ति हो या किसी समस्या के समाधान की पहल, सभी को राजनेता वोटों की तराजू में तौलने लगे हैं।

 

– सुरेश समाधिया

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