गणेश जी का एक नाम है द्वैमातुर। द्वयोर्मात्रोरपत्यं पुमान् द्वैमातुरः। अर्थात दो माताओं का संतानत्व प्राप्त होने के कारण गणेश का यह नाम पड़ा। गणेश जी की एक माता पार्वती हुईं और दूसरी माता हथिनी। रंभा तथा इंद्र के क्रीड़ारत रहते समय दुर्वासा ने जो पारिजात पुष्प इंद्र को दिया था, उसे इन्द्र ने स्वयं अपने मस्तक पर न धरकर ऐरावत के मस्तक पर रख दिया, जिससे तुरंत उसकी श्री-शोभा चली गयी। ऐरावत इंद्र को छोड़कर कानन में पहुँचा और हथिनी के साथ विहार करने लगा। तभी विष्णु ने उस हथिनी का मस्तक काटकर शनि की कुदृष्टि से सिर कटे गणपति के धड़ से संयोजित किया। अतः हथिनी उनकी माता बनी।
एक-दूसरी कथा यह भी है कि गणेश वरेण्य नामक राजा द्वारा पुष्पका देवी के गर्भ से जन्मे थे। उनकी सूरत से त्रस्त राजा ने उन्हें पर्श्र्व मुनि के आश्रम के पास एक जलाशय में छोड़ दिया। मुनि-पत्नी दीपवत्सला ने वहॉं से उठाकर उनका पालन-पोषण किया। इस प्रकार दो माताओं द्वारा पालित होने से गणेश जी द्वैमातुर हुए।
– डॉ. एन.पी. कुट्टन पिल्लै
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