नदिया न पीये कभी अपना जल,
वृक्ष न खाये कभी अपने फल,
अपने तन का, मन का, धन का,
दूजे को दे जो दान है,
वह सच्चा इन्सान अरे,
इस धरती का भगवान है।
अगरबत्ती-सा जिसका अंग जले,
और दुनिया को मीठी सुहास दे।
दीपक-सा उसका जीवन है,
जो दूजों को अपना प्रकाश दे।
धर्म है जिसका भगवद्-गीता,
सेवा ही वेद पुराण है।
वो सच्चा इन्सान अरे,
इस धरती का भगवान है।
चाहे कोई गुणगान करे,
या चाहे करे निंदा कोई।
फूलों से कोई सत्कार करे
या कांटे चुभो जाए कोई।
मान और अपमान ही दोनों,
जिसके लिये समान है।
वो सच्चा इन्सान अरे
इस धरती का भगवान है।
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