धूम्रपान का इतिहास कोई नया नहीं है। धूम्रपान वर्षों से चली आ रही (कु) परम्परा का हिस्सा है। एक जमाने में सिर्फ साधु-संन्यासी ही धूम्रपान किया करते थे, गांजे या हुक्का-चिलम के रूप में, मगर उनमें वह आत्मशक्ति थी, जिसके जरिए धूम्रपान के नकारात्मक असर का ह्रास हो जाता था, मगर दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि आज के जमाने में धूम्रपान सिर चढ़कर बोलने वाली सबसे बड़ी बुराई है। आज प्राइमरी स्कूल के बच्चे को भी लुक-छुपकर सिगरेट सुलगाते देखा जा सकता है। अति तो यह हो गई कि हमारे देश में प्रतिदिन कितने करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं, इसका अंदाजा लगाया नहीं जा सकता। धूम्रपान अर्थात धुएं का पान। गांजा, हुक्का, चिलम व नारकोटिक्स को धुएं के रूप में लेने वालों की संख्या भी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती चली जा रही है। धूम्रपान को लेकर कुछ इस तरह की गलत धारणाएं व्याप्त हैं-
- धूम्रपान मस्तिष्क की सोचने-समझने की शक्ति को बढ़ाता है।
- धूम्रपान दिमाग को तरोताजा कर देता है।
- धूम्रपान पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
- धूम्रपान यौन शक्ति को बढ़ाता है।
- धूम्रपान मौज-मस्ती के लिए जरूरी है।
मगर धूम्रपान को लेकर गढ़ी गई उपरोक्त धारणाएं कहीं सही साबित नहीं होतीं।
- धूम्रपान एक तरह का नशीला पदार्थ होता है, जो मस्तिष्क को सुन्न कर देता है। सोचने की क्षमता पर नकारात्मक असर डालता है।
- यह दिमाग को तरोताजा नहीं करता वरन् मस्तिष्क के अन्दर ट्यूमर, कैंसर जैसी बीमारियों को न्यौता देता है।
- धूम्रपान दिन पर दिन पाचन शक्ति को कमजोर करता चला जाता है, भ्रम में पड़कर लोग धूम्रपान की खुराक बढ़ाते चले जाते हैं। यही नहीं फेफड़े की टी.बी., कैंसर व पित्ताशय संबंधी बीमारियां भी धूम्रपान से बढ़ती हैं।
- धूम्रपान यौन शक्ति को तत्क्षण बढ़ा देता है मगर उत्तरोत्तर कम कर देता है। जननांगों की क्षमता कमजोर हो जाती है।
- मौज-मस्ती के लिए खाने-पीने की तमाम परम्परागत सामग्रियां मौजूद हैं। पौष्टिक आहार का उपयोग किया जा सकता है। यह आवश्यक नहीं कि सिगरेट या हुक्का-चिलम, नारकोटिक्स का धुआं लिया जाए। धूम्रपान न केवल शरीर व मस्तिष्क के लिए हानिप्रद है वरन् स्वस्थ परिवार व समाज के लिए भी हानिप्रद है। धूम्रपान करने वाले महीने भर में हजारों रुपये नशे के पीछे फूंक देते हैं। गरीब परिवारों में वे खाने-पीने व भरण-पोषण की व्यवस्था नहीं कर पाते। उल्टे घर के दूसरे कमाऊ सदस्यों के ऊपर हावी होकर रुपये हड़प लेते हैं। इस तरह के धूम्रपान करने वाले रुग्ण समाज की नींव डालते हैं व एक तरह से नशे का संामण बढ़ाते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि क्षणिक आनन्द का शिकार होने से बचा जाए व दीर्घजीवी हुआ जाए।
– आर. सूर्यकुमारी
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