नलरे सरीसा राजवी दयंवती जैसी रानी रे
बिको पड़ीया बन बन फिरे बीना अन्न जल पानी रे
टेर सुख दुःख मन मती लावना सुख दुःख साथे रे घडीया
विधनारा लिखीयोड़ा नाटले
हरिचंद जैसा रे राजवी तारा जैसी रानी रे
भगी घर बासो लियो भरीयो नीच घर पानी रे
सीता रे जैसी भार्या रघुवर जैसा स्वामी रे
लखा रो राजा रावण ले गयो वन में विपत पडानी रे
पाँच पाँडव भगत रामका वन में फिरे रे बिलोडारे
बैठन ने जगह नहीं सुख भर कदेन ही सूतारे
विपत पडी महादेव में सिमेर अतरयामी रे
दूखडा रो भजन रामजी गावे नरसीला स्वामी रे
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