नागपंचमी

श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी मनायी जाती है। भविष्योत्तर पुराण में एक उल्लेख मिलता है कि एक समय राजा शतानीक ने श्री सुमन्तु मुनि से पूछा, “”यदि सर्प किसी को डस ले और उस वेदना से उसका प्राणान्त हो जाए, तो मृत-जीव की कौन-सी गति होगी?” श्री सुमन्तु मुनि ने कहा, “”हे राजन, सर्प के डंक लगने से या डसने से जो मर जाता है, वह नारकी गति को प्राप्त होता है। नारकी गति का मतलब नरक में जाने से है। उत्तम गति को वह व्यक्ति प्राप्त नहीं होता। सर्पदंश से मृत-प्राणी सर्वप्रथम नरक में जाता है, उसके बाद सर्प-योनि में जन्म लेता है।” राजा शतानीक ने पूछा, “”उस व्यक्ति के परिजन उसकी मुक्ति के लिए क्या करें?” सुमन्तु ने कहा, “”नागपंचमी का व्रत करें।”

यह व्रत केवल दिन में किया जाता है। इसमें रात्रि में भोजन करने का विधान मिलता है। सोने, चांदी, काष्ठ या मिट्टी की नाग की प्रतिमा बनायें। चन्दन इत्यादि से पांच फन बनायें। एक चौकी या पाटा पर शुद्घ वस्त्र फैलाकर किसी नवीन पात्र में नागराज की स्थापना करें। गणपत्यादि देवताओं का पूजन करके नागराज का पूजन विभिन्न प्रकार के पुष्पों से करें। नागराज के बारह नामों से (अनन्त, वासुकि, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्र्वतर, धृतराष्ट, शंखपाल, कालिय, तक्षक, पिंगल) पूजन कर यथाशक्ति दान भी देना करें। अन्त में प्रार्थना करें कि जो कोई मेरे कुल में सांप से काटे जाने के कारण अद्योगति को प्राप्त हुए हैं, उनका इस व्रत के प्रभाव से उद्घार हो जाये। साथ ही साथ हमारे कुल या खानदान में कोई व्यक्ति सर्पदंश के दोष से ग्रस्त न हो। 12 वर्ष तक यह व्रत करके उद्यापन करें। उद्यापन में सर्वतोभद्रमंडल का निर्माण करके उसके ऊपर कलश स्थापित कर नागराज की मूर्ति को संस्थापित करें। रात्रि जागरण कर षष्ठी तिथि को हवनादि संपन्न करके यथाशक्ति समस्त दान देकर आशीर्वाद ग्रहण करें।

इस अवसर पर भारतीय संस्कृति यह संदेश देना चाहती है कि जो तुमको विष दे, उसको भी तुम दुग्ध दो। प्रेम-रस के व्यवहार से विष देने वाला जीव भी मुग्ध हो जाता है तो मानव क्यों नहीं प्रसन्न होगा। नागपंचमी के दिन नागों को दूध एवं लावा खिलाने एवं पिलाने का अत्यन्त महत्व बतलाया गया है। यह त्योहार कई प्रकार के दोषों का शमन करते हुए मानव-जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

– कीर्ति

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