नियम और ईश्वर

धर्म (नियम) के मुताबिक संसार में जो कुछ सार्थक हो रहा है, उसका नाम ही ईश्र्वर है। और जो कुछ नियम के खिलाफ हो रहा है वह संसार के विकास में बाधक है। वेद में कहा गया है, इस ब्रह्माण्ड में सारे ग्रह, नक्षत्र और जीवन नियम के मुताबिक चल रहे हैं। अनंत समय से ऐसा चला आ रहा है, जैसा आज है। वेद में ईश्र्वर के बारे में कहा गया है- वह परम चेतन्य और अगोचर है। उस पर ही यह सारी सृष्टि आधारित है और वह किसी पर आधारित नहीं है। यही बात संसार के नियम पर भी लागू होती है। जैसे वेद के मुताबिक ईश्र्वर कभी जन्म नहीं लेता यानी वह जन्म और मौत के परे है, उसी तरह नियमों का भी न कभी जन्म होता है और न कभी वे समाप्त ही होते हैं। ब्रह्माण्ड में जितनी आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक गतिविधियां हैं, वे सारी की सारी नियमों के मुताबिक ही चलती हैं। मसलन, जैसे हम जलती आग पर अपनी हथेली रखेंगे, तो हर हाल में जलेंगे ही। वह चाहे कोई बड़ा पैसे वाला रखे और चाहे निर्धन। पाश्र्चात्य दार्शनिक कांट ने भी नियमों को सब का आधार माना है।

महर्षि दयानंद के मुताबिक जो मनुष्य नियमों का पालन करते हुए, विचार करके कर्म करता है, वह ही ईश्र्वर के विधान का पालन करता है। आचार्य पातंजलि ने अष्टांग योग में सफलता हासिल करने के लिए नियमों का पालन करना जरूरी बताया है। कुरान, बाइबिल और गुरुग्रंथ साहब में भी नियम और परमात्मा पर यकीन करने पर बिशेष जोर दिया गया है। इस तरह देखें तो नियम पालन ही जिंदगी का वह बेहतरीन फार्मूला है, जिसके पालन करने से सारी दुनिया में अमन-चैन आ सकता है। दरअसल, नियम ही जीवन चा है। जो नियम को न समझता और पालन करता है, वह जिंदगी को ही न समझता और जीता है। समय और तत्व सब कुछ नियम से ही व्यवस्थित हैं। यदि सृष्टि के चा में सेकंड का अंतर आ जाये तो पलभर में सब कुछ तहस-नहस हो सकता है। जो लोग यह मानते हैं कि ईश्र्वर सब कुछ कर सकता है, गलत है। यह चिंतन का विषय है कि जब ईश्र्वर भी नियम के खिलाफ कुछ नहीं कर सकता तो इंसान अहंकार और अज्ञानता के कारण नियम के विरुद्घ कार्य क्यों करता है?

आज ज्ञान-विज्ञान और धर्म का जो इतना विकास हुआ है, वह सारा का सारा नियम के मुताबिक है। वैज्ञानिक जो खोज कर रहा है, नियम के अनुसार तत्व को जोड़, घटाना, गुणा और भाग कर देता है। आगे भी सृष्टि में जो विकास होगा, वह सब कुछ पहले से निर्धारित नियम के मुताबिक ही होगा। दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं, सब ने नियमों का पालन करके सृष्टि विकास को आगे बढ़ाया। जिन्दगी को यदि एक लाइन में कहना हो तो कहेंगे- नियम के मुताबिक पुरुषार्थ करते हुए लगातार संकल्प पूर्वक आगे बढ़ते जाने का नाम ही जिन्दगी है। इसलिए योग दर्शन में मुनि पतंजलि ने नियम पालन करने पर विशेष जोर दिया है। नियम के पालन करने से कमजोर बुद्घि और शक्ति वाला भी सफल हो जाता है और पालन न करने से बुद्घिमान और शक्तिशाली भी असफल हो जाता है। विज्ञान और धर्म दोनों का मूलाधार नियम ही हैं। इसलिए नियम का पालन हर हाल में करना चाहिए।

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