हर घूमने-फिरने वाले पशु को अपना रास्ता ढूँढने की जरूरत होती है, और इसलिए उसे इस तरह के कौशल दरकार होते हैं। घोंसले में असहाय बच्चे को छोड़, खाने की तलाश में गए पक्षी के लिए सफलतापूर्वक अपना रास्ता खोज पाना कितना जरूरी है, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। जरा-सी भी गलती की कीमत बहुत अधिक हो सकती है।
मधुमक्खी की नृत्य भाषा- गोल नृत्य में मक्खी छत्ते के पास गोले में नाचती है। यह छत्ते से 80 मीटर के घेरे में भोजन होने की सूचना है। कम्पन नृत्य में मधुमक्खियॉं 8 के आकार में नाचती हैं। 8 के बीच के हिस्से में कम्पन नृत्य होता है। इस दौरान वह अपने पिछले हिस्से को कंपाती हैं। इसकी आवृत्ति भोजन के स्रोत की दूरी का सूचक है।
ततैयों की कुछ प्रजातियॉं अंडे देने के लिए छोटे, छिपे हुए-से छत्ते बनाती हैं और अपने लार्वा को भोजन की पर्याप्त आपूर्ति हेतु कई एक बार आना-जाना करती हैं। हरेक प्राणी आसपास के पत्थरों, रेत के टिब्बों और अन्य भ्रामक परिवेश के बीच अपने छत्ते की सटीक पहचान करना सीखता है। इस क्षमता को गृहबोध (होमिंग इंस्टिंक्ट) कहते हैं। इस क्षमता को सबसे पहले डच कीट वैज्ञानिक निकोलस टिनबर्जेन ने खोदक ततैयों में पहचाना था।
प्राणी व्यवहार के क्षेत्र में ततैयों, मधुमक्खियों, मछलियों और पक्षियों पर अपने उल्लेखनीय अध्ययन के लिए कॉनराड लॉरेंज और कॉर्ल वॉन क्रिसच के साथ टिनबर्जेन को 1973 का नोबल पुरस्कार संयुक्त रूप से प्राप्त हुआ था। चींटियों और मधुमक्खियों जैसे सामाजिक कीट अपने घर बनाते हैं। हजारों की संख्या में वयस्क और नवजात इसमें बसते हैं, फलते-फूलते हैं और इनका संवर्धन होता है। यह सब कई महीनों की अवधि में होता है। हर दिन वयस्क खाने की तलाश में निकलते हैं और जो कुछ भी मिलता है, उसे अपने छत्ते के साथियों के साथ साझा करते हैं।
अधिकांश चींटियॉं और कुछ मक्खियॉं अपनी राह में कोई गंध छोड़ती जाती हैं ताकि घर ढूंढने में कोई समस्या न हो और अन्य चींटियों/ मक्खियों को भी भोजन प्राप्ति स्थल का पता चलता रहे। लेकिन चींटियों की कुछ खास प्रजातियां और मधुमक्खियॉं राह-पहचान हेतु गंध का कोई सुराग नहीं छोड़तीं। इसकी बजाय वे पर्यावरण में बिखरे संकेतों की मदद से यह जानती हैं कि वे कहॉं जा रही हैं और घर वापसी कैसे होगी। सही दिक्चालन के लिए उस प्राणी में अपने छत्ते से भोजन के स्रोत की दिशा व दूरी नापने की क्षमता होनी चाहिए।
मधुमक्खियों समेत कई अन्य प्राणियों में आंतरिक कुतुबनुमा (कम्पास) होते हैं। मधुमक्खियॉं अक्सर एक कम्पास इस्तेमाल करती हैं, जिसमें सूर्य को संदर्भ माना जाता है। पहली एक-दो बार की उड़ानों से मधुमक्खियों को आकाश में सूर्य की स्थिति पता चल जाती है। इसकी जानकारी के आधार पर मधुमक्खियॉं पूरे दिन की अवधि में सूर्य की दिशा की गणना करती रहती हैं।
हॉं, मक्खी से इनकी दूरी इस आकलन को जरूर प्रभावित करती है। इसलिए दूरी के आकलन पर इस बात का प्रभाव पड़ता है कि सुरंग संकरी थी या चौड़ी। इसमें यह भी बताया है कि कैसे ओडोमीटर में संशोधन कर, उसे इमेज की गति को नृत्य की भाषा में बदलने के काम में लाया जाता है। चिह्नित मक्खियों को ज्ञात चौड़ाई और लंबाई वाली सुरंगों से गुजारा गया और उनके द्वारा छत्ते पर पहुँचकर किए गए नृत्य का विश्र्लेषण करने पर पाया गया कि बेतरतीब पैटर्न वाली सॅंकरी सुरंगों से गुजरने वाली मक्खियॉं दूरी का गलत अंदाज लगाती हैं। वे वास्तव में 6 मीटर उड़ी थीं लेकिन उनका आकलन 186 मीटर का था।
हो सकता है कि तय की गई दूरी को वे सीधे-सीधे दूरी के रूप में न लेते हुए, आँखों द्वारा अनुभव की गई इमेज गति की मात्रा के रूप में ग्रहण करती हों। अर्थात् इमेज गति आसपास के फूलों और जमीन की औसत दूरी पर बहुत ज्यादा निर्भर करेगी (और इसलिए यह पर्यावरण आधारित भी है)। इसके बावजूद लगता है कि यह तरीका काफी कारगर होगा, क्योंकि नई कामगार मक्खियॉं उन्हीं रास्तों को अपनाती हैं जिन्हें अनुभवी मक्खियॉं ढूंढती हैं।
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