सरकार की कार्यकुशलता से आजिज आ चुकी न्यायपालिका की यह टिप्पणी कि “इस देश को भगवान भी नहीं बचा सकता’ ने एक बार फिर भगवान की पोल खोल दी है। हम तो पहले भी कहते थे कि यह काम भगवान के बस का नहीं है। भगवान दुनिया को संभाल सकता है, भारत को नहीं। दुनिया चलाना और बात है, देश चलाना दूसरी। देश चलाना भगवान के कार्यक्षेत्र से बाहर है। देश को केवल और केवल नेता ही चला सकते हैं। देश चलाने के मामले में नेता भगवान पर सब तरह से भारी पड़ते हैं।
इस दो-टूक टिप्पणी से उन आस्थावादियों को गहरी चोट पहुँची होगी जो हर बात के लिये भगवान की ओर ताकते हैं। ये लोग अब तक दावा करते थे कि यह देश भगवान के भरोसे चल रहा है। इसका साफ-साफ मतलब यही था कि इस देश को चलते देख कर ही उन लोगों को पक्का यकीन हो गया था कि ़जरूर भगवान नाम की कोई चीज है। तभी तो यह देश इतने भ्रष्टाचार और घोटालों का रिकॉर्ड तोड़ने के बावजूद तरक्की कर रहा है। साथ ही इतनी विसंगतियों और विषमताओं को झेल कर भी मुस्कुरा रहा है।
ऐसे लोगों का नेता जाति से बहुत पहले ही भरोसा उठ चुका है। उनकी आशा का एकमात्र केंद्रबिंदु भगवान था। उनकी सोच थी कि नेता इस देश को चाहे कितना डुबोने का प्रयत्न करें, भगवान उसे ़जरूर बचा लेगा। लेकिन उन्हें क्या पता था कि नेता के आगे भगवान भी हथियार डाल देंगे। तो क्या अब किसी नये भगवान की तलाश करनी होगी जो इस देश को बचाने की चुनौती स्वीकार कर ले।
मगर मुझे तो ऐसे लोगों पर सिर्फ तरस ही आ रहा है। जब देश चलाने का बीड़ा नेता लोगों ने उठा रखा है तो फिर भगवान को इस मामले में टांग अड़ाने की ़जरूरत ही क्या है। अरे भाई, माना कि तुम भगवान हो, तो शौक से अपनी भगवानगिरी करो। नेताओं के पेट पर काहे लात मारते हो। अगर तुम ऊपर बैठे देश चलाने लगोगे तो नेता के घर का चूल्हा कैसे जलेगा? तुम्हें दुनिया चलाने का ठेका मिला है, तुम दुनिया चलाओ मगर देश चलाना तुम्हारे बूते का नहीं। यह काम नेता के अलावा कोई दूसरा कर ही नहीं सकता।
जब हमारे पास एक से एक विकट चरित्र वाले नेताओं की पूरी फौज मौजूद है तब हम क्यों किसी भगवान की तरफ ताकें! जितनी सुलभता और सुगमता से हमें नेता मिल जायेगा, क्या भगवान मिलेगा? माना हमारी गली में कीचड़ है, बदबू है। अब अगर हम भगवान से सुबह-शाम गुहार लगायें कि हे भगवान, इस गली में सी.सी. रोड बना दे तो क्या सी.सी. रोड बन जाएगा जबकि हम अपने क्षेत्र के नेता से यही प्रार्थना करें तो वह रोड भले न बनवा पाये, बनवाने का आश्र्वासन अवश्य दे देगा। अब यह आश्र्वासन ही तो हमारी एकमात्र पूंजी है जिसमें हम मालामाल रहते हैं। भगवान की तरफ से तो आश्र्वासन भी नहीं मिलता।
वैसे भी देश चलाने के लिये अपेक्षित योग्यता भगवान में दूर-दूर तक नजर नहीं आती। देश चलाने की प्रथम शर्त यह होती है कि देश के जितने भी नागरिक हैं या नहीं भी हैं, उन सबको एक लकड़ी से हांका जाए। भगवान का रिकॉर्ड इस मामले में काफी खराब रहा है। ईश्र्वर ने उन्हें ही गले लगाया है जिन्होंने उस पर श्रद्घा रखी या उसकी भक्ति की। जिसने सत्य और ईमानदारी से कर्त्तव्य पालन किया, जिसने सदैव दूसरों की सहायता की, जिसने सादगी से जीवन बिताया, जिसने नैतिकता को अपनाया आदि-आदि यानी भगवान की कृपा सशर्त होती है। उसका स्नेह अपने बच्चों तक सीमित होता है।
अब जो समाज में दूसरी श्रेणी के लोग होते हैं, जैसे- ठग, चोर, उचक्के, डाकू, हत्यारे, स्मगलर, माफिया या रिश्र्वतखोर, घोटालेबाज, गबनकर्ता आदि टाइप के लोग, उनके लिये भगवान ने उनके कर्मों के हिसाब से दंड की व्यवस्था की हुई है। अब आप खुद बताइये कि ऐसी भेदभावपूर्ण नीति-रीति से कहीं देश चला करता है? देश तो सभी का है। जितना चोर का, उतना ही साहूकार का। नेता लोगों का रिकॉर्ड इस मामले में एकदम साफ-सुथरा एवं काबिले तारीफ है।
नेता की नजर में न कोई संत है न आतंकवादी। उसकी कृपा जितनी एक सज्जन पर होती है उतनी ही दुराचारी पर होती है। वह प्रकाण्ड समदर्शी होता है। उसे आदमी सिर्फ वोटर नजर आता है। वह जितना सम्मान अच्छाई को देता है उतना ही बुराई को भी देता है बल्कि नंबर दो के लोगों को तो हमेशा अपनी वरीयता सूची में सबसे ऊपर रखता है। उसकी नजर में कानून का पालन करने वाले से ज्यादा अहमियत कानून-तोड़क की होती है। इन्हीं समतावादी गुणों के कारण नेता देश चलाने में सक्षम हैं। भगवान और शैतान का आपस में छत्तीस का आंकड़ा रहता है जबकि नेता को सारी प्रेरणा, समस्त ऊर्जा शैतान के हेडक्वार्टर से सप्लाई होती है। ऐसे में नेता और भगवान का क्या मुकाबला?
फिर अगर भगवान इस देश को संभालने में बिजी हो गये तो दुनिया कौन चलायेगा? लोगों के अच्छे-बुरे कर्मों की लिस्ट कौन बतायेगा? देश का क्या है। उसे चलाने के लिये नेता ही पर्याप्त हैं। भगवान को दुनिया चलाने दें, वह सिर्फ दुनिया ही चला सकता है। अगर देश चलाने का ठेका भी भगवान को दे दिया तो बेचारे नेता फिर क्या करेंगे और अगर नेता नहीं होंगे तो सुबह-सवेरे हम अखबार में क्या पढ़ेंगे और चाय की दुकान पर किस चीज पर चर्चा करेंगे?
– प्रेमस्वरूप गंगवार
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