सूक्ष्म देवलोक के भी पार एक अन्य लोक है। उस लोक को परमधाम, ब्रह्मलोक अथवा परलोक भी कहा जाता है। यहॉं न स्थूल शरीर होता है, न सूक्ष्म, न संकल्प होता है, न वचन और न कर्म। इसलिए, वहॉं न सुख होता है न दुःख, न जन्म और न मरण। बल्कि वहॉं शान्ति ही शान्ति है। इसलिए इसे शान्तिधाम, मुक्तिधाम या निर्वाणधाम भी कहा गया है। यहां पर एक ज्योति तत्व व्यापक है, जिसे “ब्रह्म’ कहते हैं। यह ब्रह्म तत्व चेतन नहीं है बल्कि प्रकृति का छठा तत्व है, जो सत्, रज और तम से न्यारा है।
आवागमन के चक्कर को जानने वाले, अजन्मा एवं त्रिकालदर्शी परमपिता परमात्मा शिव ने अब हमें यह अति गुह्य रहस्य समझाया है कि वास्तव में सूर्य और तारागण के भी पार, इस अखण्ड ज्योति ब्रह्म तत्व में ही आत्माएँ अशरीरी अर्थात् देह रहित अवस्था में, संकल्प-विकल्प रहित, दुःख-सुख तथा जन्म-मरण से न्यारी अवस्था, जिसे “मुक्ति की अवस्था’ कहा जाता है, में रहती हैं। वहां से ही आत्मा इस सृष्टि रूपी रंगशाला में, अपना-अपना पार्ट निभाने आती है और पार्ट के अनुसार देह रूपी वेश-भूषा धारण करती है। जैसे आकाश से कोई तारा टूटकर पृथ्वी पर आ गिरता है, वैसे ही आत्मा को जब इस सृष्टि के सुख-भोग के लिए आना होता है तो वह मुक्तिधाम को छोड़कर इस लोक में प्रवेश करती है और माता के गर्भ में स्थूल देह को अपना बसेरा बनाती है। फिर वह जैसे कर्म करती है तदानुसार ही उसका फल भोगती है।
इस रहस्य को जानकर अब आप अपने वास्तविक स्वरूप और धाम को पहचानो।
– ब्रह्म कुमारी
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