भारत-अमेरिका परमाणु करार पर सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन और बाहर रह कर उसे समर्थन देने के नाम पर उसे कठपुतली बनाने की कोशिश में लगे वाम दलों की खींचतान का नाटक समाप्त होने के बाद इस करार के बाद की संभावनाएं देखना उचित होगा। तय है कि 1974 तथा 1998 में भारत की परमाणु विस्फोट क्षमता के परीक्षणों के बाद देश पर लगी पाबंदियां खत्म होने के बाद भारत के लिए अपनी ऊर्जा ़जरूरतें पूरी करने को परमाणु बिजलीघर लगाना आसान हो जायेगा। अगले दो दशक में भारत में परमाणु बिजली उत्पादन की क्षमता का ते़जी से विस्तार देश-विदेश के परमाणु बिजली उद्योग से जुड़े या जुड़ने को उत्सुक उद्योगों के लिए निश्र्चय ही बहुत आकर्षक है। एक अमेरिकी अनुमान के अनुसार अगले 20 वर्ष में भारत में परमाणु बिजली उत्पादन क्षमता के विस्तार पर लगभग 100 अरब डॉलर (4200 अरब रुपये) का निवेश होगा। परमाणु अनुसंधान तथा परमाणु टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत की अब तक की उपलब्धियों को देखें तो स्पष्ट है कि इस नये दौर में भारत सिर्फ परमाणु सामग्रियों तथा टेक्नोलॉजी का आयात ही नहीं करेगा। देश की ़जरूरतें पूरी करने में अपने देश की सरकारी और गैर-सरकारी कंपनियों की भूमिका में ते़जी से वृद्घि की भविष्ययवाणी किसी तरह गलत नहीं होगी।
राष्टीय ताप बिजली निगम, भारत हैवी इलेक्टिकल्स, तेल तथा प्राकृतिक गैस निगम जैसे सरकारी उपाम बिजली उत्पादन तथा भारी ऊर्जा उत्पादन मशीनरी के निर्माण के अपने अनुभव तथा देश के परमाणु ऊर्जा कार्याम से नये-पुराने रिश्तों को ज्यादा म़जबूत बनाने की गंभीर तैयारियों में लगे हैं। भारत हैवी इलेक्टिकल्स द्वारा भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम से साझेदारी में एक नये विशेष उपाम की स्थापना की तैयारी पूरी हो चुकी है। अगले माह अपनी टेक्नोलॉजी क्षमता के विस्तार के लिए विदेशी भागीदारों की तलाश की विधिवत शुरुआत करके यह सरकारी कंपनी अमेरिका तथा यूरोप की कंपनियों से सहयोग की दिशा में आगे बढ़ने जा रही है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भारत की क्षमताओं का हाल के वर्षों में ते़जी से विकास हुआ है और परमाणु टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कार्यरत अमेरिका तथा यूरोप की कंपनियों का अपनी लागत कम करने तथा कारोबार और मुनाफा बढ़ाने के उद्देश्य से भारत की सक्षम कंपनियों से सहयोग को लेकर उत्सुक होना पूरी तरह स्वाभाविक है। अमेरिका-भारत व्यापार परिषद द्वारा अमेरिका-भारत में असैनिक परमाणु सहयोग संबंधी कानून को संसदीय मंजूरी दिलाने की रफ्तार बढ़ाने की ता़जातरीन पेशकश को इसके सबूत के रूप में देखना गलत नहीं हो सकता।
अमेरिकी मदद से पचास के दशक में “देश की आ़जादी के शीघ्र बाद’ शुरू हुईं भारत के परमाणु अनुसंधान कार्याम के बूते पर आज भारत परमाणु अनुसंधान के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल हो चुका है। यूरेनियम खनिज से रिएक्टर ईंधन तक, रिएक्टर में जले ईंधन से प्लुटोनियम हासिल करके परमाणु बम तथा हाइडोजन बम बनाने तक, परमाणु भट्ठियों में तोरियम के संवर्धन द्वारा यूरेनियम बनाने और परमाणु बिजली के उत्पादन के लिए उसके इस्तेमाल का जैसा अनुभव भारत के पास है वैसा दुनिया के बहुत ही कम देशों में सुलभ है। उच्च आंतरिक दबाव वाली भारी जल पर आधारित परमाणु भट्ठियों तथा ईंधन की खपत से बिजली उत्पादन के साथ-साथ अधिक मात्रा में परमाणु ईंधन बनाने वाली (फास्ट ब्रीडर) परमाणु भट्ठियों का अनुभव और ाांस में अंतर्राष्टीय फ्यूजन ऊर्जा भट्ठी निर्माण की परियोजना में भारत की भागीदारी इसकी तकनीकी क्षमताओं तथा परमाणु टेक्नोलॉजी की समझ के सबूतों में शामिल है। इन्हीं क्षमताओं के चलते अमेरिका तथा ाांस की परमाणु ऊर्जा टेक्नोलॉजी कंपनियां भारत से सहयोग की बातचीत कर रही हैं।
परमाणु ऊर्जा के इस्तेमाल में विश्र्व के अनेक विकासशील देशों की रुचि स्वाभाविक है। छोटे देशों की ़जरूरत पूरी करने में विकसित देशों की कंपनियों की इसलिए ज्यादा रुचि नहीं है क्योंकि उन्होंने अब बड़ी परमाणु भट्ठियां बनाना शुरू कर दिया है जो इन छोटी मांग वाले देशों की ़जरूरत से बहुत ज्यादा हैं। इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम तथा फिलीपिन्स आदि देशों ने परमाणु ऊर्जा में रुचि दिखायी है और भारत की परमाणु टेक्नोलॉजी क्षमता इनकी ़जरूरतें पूरी कर सकती है। ़जाहिर है, आरंभिक दौर में भारत छोटी परमाणु भट्टियों का उत्पादन तथा आपूर्ति करना चाहेगा। 1974 तथा 1998 के परमाणु विस्फोट क्षमता के मूल्यांकन के लिए किये गये परीक्षणों के बाद परमाणु टेक्नोलॉजी के बा़जार से बाहर रखे जाने के दौर में भारत के वैज्ञानिकों तथा इंजीनियरों ने देश में परमाणु टेक्नोलॉजी आगे बढ़ाने की काफी सफल कोशिशें कीं। निकट भविष्य में परमाणु टेक्नोलॉजी बा़जार के द्वार अपने लिए खुलने के बाद देश उन कोशिशों को इस बा़जार में आपूर्तिकर्ता के रूप में उतर कर भुना सकेगा, यह बात पूरे विश्र्वास से कही जा सकती है। ाांस की परमाणु ऊर्जा उपकरण कंपनी अरेवा की भारत में उपकरण उत्पादन केंद्र की स्थापना में रुचि देश की क्षमताओं का ही सबूत है।
भारत-अमेरिका में असैनिक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग के करार का असली महत्व भारत के लिए परमाणु उपकरण तथा उद्योग से जुड़े विकसित देशों के लिए भारत के बा़जार को खोलना उनके कारोबारी हितों से प्रेरित है। निश्र्चय ही एक बार यह द्वार खुलने के बाद बा़जार की अपनी गति इन्हें फिर से बंद नहीं होने देना चाहेगी। यह भी तय है कि एक बार द्वार खुलने के बाद भारत अपनी क्षमताओं का ते़जी से विकास कर सकेगा और ऐसे में फिर से इस पर प्रतिबंध लगाना बेमानी हो जायेगा। 1998 के प्रतिबंधों के बाद कई जानकारों ने यह बात स्वीकार की है कि भारत पर प्रतिबंध लगाने का फैसला खुद प्रतिबंध लगाने वाले देशों के व्यापारिक हितों के विपरीत रहा। देश में परमाणु टेक्नोलॉजी के विकास अगले दौर में पहुँचने, परमाणु उपकरणों के निर्माण में लगी बहुराष्टीय कंपनियों के भारत में पदार्पण और इस क्षेत्र में भारतीय गैर-सरकारी कंपनियों के प्रवेश के बाद बा़जार बढ़ेगा, तब जहॉं भारत पर पाबंदी लगाना और भी मुश्किल हो जाएगा, वही ऐसी पाबंदियों का असर भी लगातार कमतर होना निश्र्चित है।
परमाणु टेक्नोलॉजी, अंतरिम टेक्नोलॉजी, सूचना टेक्नोलॉजी, औषधि टेक्नोलॉजी आदि के क्षेत्र में भारत की अब तक की उपलब्धियों तथा देश की अर्थव्यवस्था के ते़जी से विकास के चलते विश्र्व मंच पर भारत की स्थिति में ते़जी से बदलाव आया है। जी-8, आसियान, विश्र्व व्यापार संगठन आदि मंचों पर भारत की आवा़ज ज्यादा सुनी जाती है। भारत पर लगे प्रतिबंध हटने के बाद जब बड़ी बहुराष्टीय परमाणु टेक्नोलॉजी कंपनियां यहॉं बैठी होंगी तो किसी भी तरह की पाबंदी लगाने की बात सोचना निश्र्चय ही बेमानी हो जाएगा। पाकिस्तान, चीन जैसी अपेक्षाकृत नयी परमाणु शक्तियों द्वारा चोरी-छिपे परमाणु प्रसार गतिविधियों की पृष्ठभूमि देखें तो यह कहना पूरी तरह सही होगा कि परमाणु टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग को रोकने में भारत की मदद का महत्व बढ़ेगा। अपनी कोशिशों से आगे बढ़ने के नए दौर में पॉंवों में पड़ी पाबंदियों की बेड़ियां तोड़ना इस परिप्रेक्ष्य में एक तकनीकी मजबूरी या औपचारिकता कही जा सकती है। आगे का रास्ता संभावनाओं से भरपूर है।
– अशोक मलिक
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