परस्पर विरोधी ग्रह हैं सूर्य एवं शुा

श्रवण नक्षत्र : 27 नक्षत्रों के क्रम में 22वें स्थान पर आने वाला यह नक्षत्र, राशि चा की कुल 360 डिग्री के 280.00 से लेकर 293.20 डिग्री के मध्य समाता है। (यदि नक्षत्रों में अभिजीत को भी शामिल किया जाये तो श्रवण का विस्तार केवल 280.54.13 डिग्री से 293.20 डिग्री का होगा)। यह मकर राशि के 10.00 से लेकर 23.20 डिग्री के मध्य समाता है। इसे अंग्रेजी में “अल्फा-एक्वेरी’, “अरबी भाषा में “सद्-बुला’ तथा चीनी भाषा में “न्’ के नाम से जाना जाता है। इस नक्षत्र में तीन तारे होते हैं , जो कि सीधी लकीर के रूप में दिखाई देते हैं। यह नक्षत्र अक्तूबर माह में रात के 8 से 9 बजे के बीच मध्याकाश में दिखाई देता है। “श्रवण’ का अर्थ “सुनना’ होता है। इसके अधिष्ठाता देवता “हरि’ हैं, जिन्हें “विष्णु’ नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग इसे “देवी सरस्वती’ का नक्षत्र भी मानते हैं। इसकी पूजा शुक्ल पक्ष की पंचमी को की जाती है। कूर्मचा के अनुसार यह नक्षत्र वायव्य कोण का निर्देशक है अतः राजकीय ज्योतिष में देश के वायव्य भाग की भविष्यवाणी हेतु इस नक्षत्र को ध्यान में रखा जाता है। “श्रवण’ नक्षत्र की ज्योतिषीय दशा-महादशा का स्वामी ग्रह “चन्द्रमा’ है, अर्थात् इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक की प्रारम्भिक विशोंतरी महादशा चन्द्रमा की होगी।

शारीरिक गठन : जातक का आकर्षक शरीर होगा। प्रायः कद छोटा, चेहरे पर कोई विलक्षण चिह्न, तिल अथवा कोई अन्य निशान होगा, जो कुछ कुरुपता लिये होगा। कुछ मामलों में कन्धों के नीचे के भाग में काला तिल भी पाया जाता है।

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