पाकिस्तान की उत्तर पश्र्चिम सीमा प्रान्त की राजधानी पेशावर तथा उसके आसपास के खैबर क्षेत्र में पाक सेना द्वारा गत् दिनों तालिबानी लड़ाकुओं के विरुद्घ एक बड़ा सैन्य अभियान छेड़ा गया। अफगानिस्तान सीमा के समीप बारा कस्बे में चलाए गए इस अभियान में पाकिस्तानी सेना द्वारा भारी हथियारों, टैंकों तथा हवाई हमलों का भी प्रयोग किया गया। अमेरिका का मानना है कि पाकिस्तान का यह उत्तरी कबायली क्षेत्र तालिबानी चरमपंथियों के लिए अत्यन्त गुप्त व सुरक्षित पनाहगाह है। यही वह क्षेत्र है जहां बैतुल्लाह महसूद नामक चरमपंथी कबायली नेता की मजबूत पकड़ है। माना जाता है कि इस इलाके में आतंकवादियों के पक्ष में उपयुक्त वातावरण मिल जाता है।
बैतुल्लाह महसूद की इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुछ समय पूर्व यही महसूद तालिबानी लड़ाकों के भारी-भरकम लाव-लश्कर के साथ सैकड़ों हथियारबंद पाकिस्तानी सैनिकों को उनके वाहनों समेत बंधक बना चुका है। अपहरण व हत्याओं के अनेकों मामलों में वांछित महसूद वही आतंकवादी है, जिसपर पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या की साजिश में शामिल होने का भी संदेह है। गत् दिनों मीडिया द्वारा तालिबानी आतंक का एक और भयानक चेहरा बेनकाब किया गया। इन्हीं तालिबानों द्वारा पाक-अफगान सीमा क्षेत्र में हजारों नागरिकों को चरमपंथियों द्वारा इकट्ठा किया गया। फिर दिन-दहाड़े जनता के मध्य दो व्यक्तियों को उनके हाथ-पैर बांधकर व उनका मुंह ढककर पेश किया गया। उपस्थित भीड़ को आतंकवादियों द्वारा यह बताया गया कि “यह दोनों व्यक्ति अफगानी नागरिक हैं तथा इन्होंने अमेरिका के लिए जासूसी करने तथा इस कबायली क्षेत्र की गुप्त सूचनाएं अमेरिकी सेना तक पहुंचाए जाने का दुस्साहस किया है।’ उसके पश्र्चात दर्जनों हथियारबंद तालिबानों ने उस भरी भीड़ में दहशत फैलाते हुए सबके सामने उन दोनों व्यक्तियों को गोलियों से भून डाला। चंद लोगों द्वारा इस प्रकार आतंकी कार्रवाई को अंजाम देना तथा हजारों लोगों का तमाशाई व मूकदर्शक बने रहना, यह समझ पाने के लिए काफी है कि तालिबानों व चरमपंथियों की ताकत किस हद तक बढ़ती जा रही है। अफगानिस्तान में राष्टपति हामिद करजई को निशाना बनाया जा चुका है परन्तु वे सौभाग्यवश बाल-बाल बच गए। अफगानिस्तान के एक मंत्री की भी हत्या हो चुकी है और अफगानिस्तान की राजधानी काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर आत्मघाती हमला अभी-अभी किया गया है। बेनजीर भुट्टो आतंकवादियों की भेंट चढ़ चुकी हैं। परवेज मुशर्रफ व नवाज शरीफ दोनों पर बड़े जानलेवा हमले हो चुके हैं। यह घटनाएं आतंकवादियों के हौसलों की स्वयं तर्जुमानी करती हैं।
जाहिर है, जब चरमपंथियों के हौसले इस हद तक बढ़ जाएं कि वे बड़े से बड़े सुरक्षा घेरे को धता बताने लगें, जब गत् दिनों पाकिस्तान में हुए ऑपरेशन लाल मस्जिद से यह बात स्पष्ट हो जाए कि यह आतंकवादी अब मात्र गुफाओं या पहाड़ियों में लुके-छिपे होने तक ही सीमित नहीं बल्कि आधुनिकतम एवं अत्यन्त खतरनाक हथियारों के साथ लाल मस्जिद जैसी पवित्र शरणस्थली का सहारा लेते हुए शहरों के मध्य में भी प्रवेश कर जाएं, ऐसे में दुनिया का यह सोचना स्वाभाविक है कि आखिर पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने भी आतंकवादियों की पहुंच से दूर हैं अथवा नहीं। आतंकवादियों के बुलंद हौसले तथा उनकी दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई ताकत कहीं उन्हें इस योग्य तो नहीं बना देगी कि वे पाकिस्तान के परमाणु संयंत्रों पर अपना नियंत्रण जमा बैठें। और यदि खुदा न ़ख्वास्ता ऐसा हो गया तो इस शांतिप्रिय संसार का आखिर होगा क्या?
ज्ञातव्य है कि पाकिस्तान में इस समय चार परमाणु रियेक्टर संयंत्र अपना कार्य कर रहे हैं। इनमें चश्मा परमाणु ऊर्जा संयंत्र (1) तथा चश्मा परमाणु ऊर्जा संयंत्र (2) तीन सौ मेगावाट के संयंत्र हैं। यह संयंत्र कुन्डियां नामक स्थान पर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित हैं। जबकि कनूप परमाणु रियेक्टर; कराची, सिंध में स्थित है। कनूप रियेक्टर की क्षमता 125 मेगावाट की है। इनके अतिरिक्त एक और परमाणु संयंत्र खुशाब संयंत्र भी है। 50 से 70 मेगावाट तक का खुशाब संयंत्र पाकिस्तानी सेना की जरूरतों को पूरा करने वाला प्लूटोनियम संयंत्र है तथा यह अन्तर्राष्टीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी के दायरे में नहीं आता। खुशाब परमाणु संयंत्र वही संयंत्र है जिसमें इसी वर्ष अप्रैल के प्रथम सप्ताह में एक जोरदार विस्फोट हुआ था जिसके परिणामस्वरूप दो व्यक्तियों की मौत हो गई थी। परमाणु हथियार तैयार करने की क्षमता रखने वाला, पंजाब प्रांत में स्थित यह संयंत्र पाकिस्तान के गुप्त परमाणु हथियार कार्याम से संबंधित है। भारी जल संयंत्र चलाने वाले खुशाब परमाणु संयंत्र के बारे में माना जाता है कि इसमें परमाणु बम बनाने हेतु आवश्यक प्लूटोनियम बनाने की क्षमता है।
खुशाब परमाणु रियेक्टर पर अमेरिका भी अपनी नजरें गड़ाए हुए है। एक अमेरिकी संस्था “इंस्टीट्यूट फॉर साइंस एण्ड इंटरनेशनल सिक्योरिटी’ का मानना है कि खुशाब रियेक्टर प्लूटोनियम बनाए जा सकने की क्षमता रखने वाला अति संवेदनशील रियेक्टर है। इस संस्था के अनुसार खुशाब संयंत्र प्रत्येक वर्ष इतना प्लूटोनियम बना सकता है जिससे कि प्रत्येक वर्ष 30 से लेकर 50 की संख्या तक परमाणु हथियार बनाए जा सकते हैं। यह अमेरिकी संस्थान दुनिया के अनेक देशों के परमाणु कार्यामों पर नजरें रखता है। इस संस्थान द्वारा ईरान, उत्तर कोरिया व भारत सहित पाकिस्तान की परमाणु गतिविधियों के संबंध में रिपोर्ट प्रकाशित की जा चुकी है। “इंस्टीट्यूट फॉर साइंस एण्ड इंटरनेशनल सिक्योरिटी’ द्वारा जारी की गई खुशाब संयंत्र परमाणु संबंधी इस रिपोर्ट को पाकिस्तान खारिज तो नहीं करता परन्तु उसका यह जरूर कहना है कि इस अमेरिकी संस्थान ने अपने विश्लेषण में तथ्यों को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया है।
चिंता का विषय है कि पाकिस्तान जोकि इस समय आतंकवादियों व चरमपंथियों का मात्र गढ़ ही नहीं बनता जा रहा है बल्कि पाकिस्तान के राजनैतिक हालात भी चरमपंथी शक्तियों को बल प्रदान कर रहे हैं। कट्टरपंथियों व आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देने की क्षमता व हौसला रखने वाले परवेज मुशर्रफ इस समय असहाय होकर अपने राष्टपति पद को बचाए रखने की ही उधेड़-बुन में लगे हैं। जबकि दूसरी ओर मुशर्रफ विरोधी चरमपंथी शक्तियां लोकतांत्रिक संस्थान के कंधों पर सवार होकर मुशर्रफ के गले तक अपना हाथ पहुंचाना चाह रही हैं। सोचने का विषय है कि जब परवेज मुशर्रफ जैसे स़ख्त जनरल की चरमपंथियों द्वारा कोई परवाह नहीं की गई तथा प्रत्येक स्तर पर उनकी हर आतंकवाद विरोधी कार्रवाई का जवाब देने का प्रयास किया गया, फिर आखिर पाकिस्तान में नजर आ रहे लोकतंत्र के वर्तमान हिमायती पाकिस्तान में बढ़ती हुई तालिबानी विचारधारा व आतंकवादियों की बढ़ती घुसपैठ को आखिर किस तरह लगाम लगा सकेंगे।
ऐसे में पाकिस्तान में स्थित परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा को लेकर दुनिया का चिंतित होना अत्यन्त स्वाभाविक है। बावजूद इसके कि पाकिस्तानी सेना पाकिस्तान के सभी परमाणु संयंत्रों को सुरक्षित तथा अपने नियंत्रण में बता रही है। परन्तु दुनिया उस घटना की अनदेखी भी नहीं कर सकती जिसमें कि चरमपंथी लड़ाकों द्वारा सैकड़ों पाक सैनिकों का या तो एक साथ बड़े ही रहस्यमयी ढंग से अपहरण कर लिया जाता है या उन्हें बंधक बना लिया जाता है। अब ऐसी घटनाओं को चाहे चरमपंथियों के बढ़ते हौसले का नाम दें या पाकिस्तानी सेना के पस्त इरादे कहकर इसे संबोधित करें, परन्तु यह दोनों ही परिस्थितियां ऐसी हैं जिनके मद्देनजर पाक स्थित परमाणु संयंत्र सुरक्षित नहीं समझे जा सकते।
– तनवीर जाफ़री
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