संयुक्त राष्ट संघ ने मानव तस्करी की परिभाषा निर्धारित कर रखी है कि जब किसी व्यक्ति को जबर्दस्ती एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जाता है और व्यावसायिक फायदे के लिए उसकी सेवा का इस्तेमाल किया जाता है तो इसे मानव तस्करी कहते हैं। माना जाता है कि दुनिया भर में हथियारों की तस्करी और डग्स के कारोबार के बाद मानव तस्करी का धंधा तीसरे स्थान पर आता है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में मानव तस्करी का सालाना कारोबार 32 अरब डालर का है। भारत में धड़ल्ले से मानव तस्करी होती रही है। पश्र्चिम बंगाल, दिल्ली, महाराष्ट, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, गोवा, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश, झारखंड, असम और मेघालय ऐसे प्रमुख राज्य हैं जहां मानव तस्करी का धंधा हो रहा है। देह व्यापार, मजदूरी, जबरन विवाह और अंगों का व्यापार करने के उद्देश्य से मानव तस्करी होती रही है।
पूर्वोत्तर के राज्य असम और मेघालय में मानव तस्करी की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। पड़ोसी देशों की मुक्त सीमा, जातीय दंगे, उग्रवाद, गरीबी, निरक्षरता, आजीविका के आधार की कमी, प्रवजन के लिए मजबूर करने वाली प्राकृतिक आपदाएँ आदि ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से महिलाओं और बच्चों की तस्करी की घटनाएँ तेज हो गई हैं।
मानव तस्करी के संबंध में राष्टीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि नगालैंड में पांगसा और डिमापुर तथा मणिपुर में मोरे मानव तस्करी के प्रमुख केन्द्र हैं। बंगलादेश और असम से महिलाओं तथा बच्चों को मोरे लाया जाता है, फिर वहां से उन्हें म्यांमार के रास्ते दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में पहुँचाया जाता है। इसी तरह असम, नगालैंड और बंगलादेश से महिलाओं और बच्चों को पांयसा सीमा तक लाया जाता है और फिर उन्हें दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भेज दिया जाता है। दियापुर के रास्ते ऊपरी असम से लाए गए बच्चों और महिलाओं को दूसरे देशों में भेजा जाता है। निचले असम में घुबड़ी और कोकराझाड के रास्ते महिलाओं तथा बच्चों की तस्करी की जाती है।
असम के कोकराझाड, धुबड़ी, नगांव, बरपेटा, म्वालपाढा, बंगाईगांव एवं कामरूप जिलों में सबसे अधिक मानव तस्करी के मामले सामने आते हैं। प्रति वर्ष सैकड़ों महिलाओं और बच्चों के गायब हो जाने की रिपोर्ट पुलिस विभाग दर्ज करता है। इनमें से गिने-चुने लापता लोगों का ही पता लगाना संभव हो पाता है। पिछले एक दशक में असम में 3184 महिलाएँ और 3840 बालिकाएँ लापता हो चुकी हैं।
गैर सरकारी संगठन नंदान फाउंडेशन के प्रमुख दिगंबर नर्जरी का कहना है कि महिलाओं और बच्चों के लापता होने के जितने मामले दर्ज किए जाते हैं, उनमें से 80 फीसदी मामले निश्र्चित रूप से मानव तस्करी से संबंधित होते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों पश्र्चिम बंगाल के शहर सिलीगुड़ी में स्थित वंशपालय में उनके संगठन ने सर्वेक्षण किया और पाया कि कुल 265 यौनकर्मियों में से 86 महिलाएं असम की थीं और उन्हें जबरन इस पेशे में धकेला गया था। नर्जरी का कहना है कि मानव तस्करी करने वाले राहत शिविरों में रहने वाली विस्थापित महिलाओं और बालिकाओं को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। राज्य में जातीय दंगों के बाद बड़ी आबादी राहत शिविरों में रहती आई है, जहां से महिलाओं और बालिकाओं के गायब होने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इसके अलावा गरीबी की मार झेल रही ग्रामीण युवतियों को दूसरे शहरों में नौकरी दिलाने का प्रलोभन देकर फंसाया जाता है। मानव तस्करी करने वाले दलाल गरीब लड़कियों को अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी गुजरात, दिल्ली, मुंबई, हरियाणा आदि जगहों पर दिलाने का प्रलोभन देते हैं। नर्जरी ने कहा कि वर्ष 2005 में उनके संगठन ने कोकराझाड़ रेलवे स्टेशन पर कुल 200 बालिकाओं को दलालों के चंगुल से मुक्त करवाया। उन बालिकाओं से वादा किया गया था कि उन्हें गुजरात में उद्योग में नौकरी दी जाएगी और उन्हें अच्छी तनख्वाह भी मिलेगी। जब नंदान फाउंडेशन ने समूचे मामले की जांच की तो पता चला कि नौकरी की बात झूठी थी और लड़कियों को देह व्यापार के इरादे से राज्य के बाहर ले जाया जा रहा था। अध्यपन से यह तथ्य भी सामने आया है कि कई बार रिश्तेदार या परिचित लोग ही महिला या बालिका की खरीद फरोख्त में सिाय भूमिका निभाते हैं।
नई दिल्ली में कार्यरत एक स्वयं सेवी संगठन का कहना है कि फर्जी विवाह के जरिये असम की लड़कियों को बेच दिया जाता है। हरियाणा में इस तरह के मामले सामने आते रहे हैं। असम में बहला-फुसला कर लाई गई लड़कियों की सौदेबाजी 3 हजार रुपए से लेकर 60 हजार रुपए तक होती है। इन लड़कियों से फर्जी शादी करने वाले लोग दोबारा इन लड़कियों को बेच डालते हैं। इस तरह लड़कियों को लगातार यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है।
– दिनकर कुमार
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