दोस्तों, यह दो बूंद जिंदगी के विज्ञापन तो हम सबको अच्छे लगते हैं, लेकिन अधिकांशतः आम लोगों को समझ में यह नहीं आता कि यह पोलियो है क्या?
तो चलिए, आज इसे ही जानते हैं-पोलियो, नफेंटाइल पैरालिसिस या एक्यूट एंटीरियर पोलियोमाइलिटिस का दूसरा नाम है। यह महामारी में होता है लेकिन हर समय मौजूद रहता है। हालांकि यह अकसर बच्चों को अपना शिकार बनाता है, लेकिन यह किसी को भी हो सकता है। पोलियो बड़ी संख्या में लोगों को होता है मगर कम लोग ही इससे गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं।
वास्तव में जो सबसे आम किस्म का पोलियो है, उससे एक-दो दिन की बीमारी, सिरदर्द, बुखार, गला खराब व पेट खराब होता है, लेकिन पैरालिसिस या अपाहिजपन नहीं होता। गंभीर पोलियो के एक मामले की तुलना में ऐसे 100 मामले होते हैं। जिन पोलियो मामलों की शिनाख्त हो जाती है उनमें आधे पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, 30 प्रतिशत पर बाद में भी हल्का प्रभाव रहता है, 14 प्रतिशत को गंभीर पैरालिसिस हो जाता है और छः प्रतिशत की मौत भी हो सकती है। 156 में से सिर्फ एक बच्चे को ही अपने जीवन के पहले 20 बरस में पोलियो होने का खतरा होता है।
सवाल ये है कि यह पोलियो होता क्यों है?
पोलियो तीन अलग-अलग किस्म के वायरसों से होता है। वायरस उस फिल्टर को भी पार कर जाता है जो बैक्टीरिया को भी रोक लेता है। वायरस जीवित कोशिका में ही जीवित रहता है। जब पोलियो वायरस किसी के जिस्म में प्रवेश कर जाता है, तो वह नर्व व ब्लड के जरिए स्पाइनल कोर्ड और ब्रेन तक पहुंच जाता है। इस तरह स्पाइनल कोर्ड के ग्रे मैटर की कोशिकाओं में उसका विकास होने लगता है। जब इन नर्व कोशिकाओं पर सूजन आ जाती है और वह बीमार हो जाती हैं, तो जिन मांसपेशियों को यह नियंत्रित करती हैं वह काम करना बंद कर देती हैं। इस तरह उन पर फालिज गिर जाता है। अगर नर्व ठीक हो जाएँ, तो मांसपेशियॉं फिर काम कर सकती हैं। लेकिन अगर वायरस नर्व कोशिकाओं को मार देता है तो इन नर्व से जुड़ी मांसपेशियॉं हमेशा के लिए अपंग हो जाती हैं।
पोलियो कई प्रकार का होता है। स्पाइनल पोलियो स्पाइनल कोर्ड की नर्व को प्रभावित करता है। बुलवर पोलियो दिमाग के एक हिस्से को प्रभावित करता है और सांस लेने वाली मांसपेशियों को अपंग बना सकता है। जिसको यह हो जाये, तो उसकी जान “आयन लंग’ के जरिए ही बचायी जा सकती है जो मैकेनिकली पीड़ित को सांस दिलाता है।
पोलियो से बचाव के लिए डॉ. जोनास साल्क ने एंटी पोलियो वैक्सीन विकसित की है। इसकी वजह से पोलियो इंफेक्शन नहीं होता। मेडिसिन के क्षेत्र में यह जबरदस्त प्रगति है। इससे विश्र्व स्वास्थ्य व सुरक्षा की नई उम्मीद जागी है। इसलिए हर पोलियो दिवस पर हर बच्चे को “दो बूंद जिंदगी की’ अवश्य दे देनी चाहिए ताकि पोलियो का नामोनिशान मिटाया जा सके।
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