प्रणाम शहीदों को इन्कलाब जिन्दाबाद के मायने

‘मार्डन रिव्यू’ के सम्पादक श्री रामानन्द चट्टोपाध्याय ने ‘इन्कलाब-जिन्दाबाद’ के शीर्षक से एक टिप्पणी लिखी। इसमें इस नारे को अराजकता और खून-खराबे का प्रतीक बताया और निरर्थक भी। भगत सिंह ने 23 दिसम्बर, 1929 को श्री रामानन्दजी को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ के मायने स्पष्ट किये। भगतसिंह ने लिखा, ‘‘आपने अपने सम्मानित पत्र के दिसम्बर, 1929 के अंक में एक टिप्पणी ‘इन्कलाब-जिन्दाबाद’ शीर्षक से लिखी है और इस नारे को निरर्थक ठहराने की चेष्टा की है। आप जैसे अनुभवी एवं यशस्वी संपादक, जिसे प्रत्येक भारतीय सम्मान की दृष्टि से देखता है, की रचना से दोष निकालना एवं उसका प्रतिवाद करना हमारे लिए एक धृष्टता होगी, तो भी इस प्रश्‍न्न का उत्तर देना हम अपना कर्त्तव्य समझते हैं कि इस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है।

यह आवश्यक है, क्योंकि इस देश में इस समय इन नारों को सब लोगों तक पहुंचाने का कार्य हमारे हिस्से आया है। इस नारे की रचना हमने नहीं की है। यह नारा रूस के ाान्तिकारी आंदोलन में प्रयुक्त किया गया है।’’ हिंसा और विप्लव को ाान्ति का पर्याय मानने से इन्कार करते हुए भगतसिंह ने आगे लिखा, हम यतीन्द्रदास नाथ जिन्दाबाद का नारा लगाते हैं। इससे हमारा अभिप्राय यह होता है कि हम उनके जीवन के उन महान आदर्शों को सदा-सदा के लिए बनाये रखें, जिसने इस महानतम बलिदानी को अकथनीय कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी है। यह नारा लगाते हुए हमारी यही भावना प्रकट होती है कि हम भी अपने जीवन में ऐसे आदर्श अपनाएं। इसी प्रकार हमें ‘इन्कलाब’ शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए।

इसके बाद इन्कलाब-ाान्ति की व्याख्या करते हुए लिखा है – ाान्ति शब्द का अर्थ प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांक्षा है। लोग साधारणतया जीवन की उन परम्परागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं, जो मनाव-समाज की उन्नति में गतिरोध का कारण होते हैं। हम लोग परिवर्तन के विचारमात्र से ही घबराते हैं और यही वह अकर्मण्यता की भावना है जिसके स्थान पर ाान्तिकारी भावना जाग्रत करने की आवश्यकता है। ाान्ति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी तौर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए। जिससे रु़ढिवादी शक्तियाँ मानव-समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने को संगठित ना हों। यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव बदलती रहे और नई व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि यह आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके। यह है हमारा वह अभिप्राय, जिसको हृदय में रखकर हम ‘इन्कलाब जिन्दाबाद’ का नारा ऊँचा करते हैं।

 

You must be logged in to post a comment Login