प्रभास : जहॉं श्रीकृष्ण ने प्राण त्यागे थे

प्रभास को प्रभासगिरि और प्रभोसा भी कहा जाता है। यह इलाहाबाद शहर से उत्तर में लगभग पचास किलोमीटर पर मंझनपुर तहसील (जिला कौशाम्बी के अंतर्गत) में यमुना नदी के किनारे धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल के रूप में विख्यात है। कौशाम्बी से इसकी दूरी दस किलोमीटर है। प्रभास क्षेत्र कभी वत्स साम्राज्य की राजधानी कौशाम्बी का बाह्य अंग था। अभिधान चिंतामणि में कौशाम्बी को वत्स देश की राजधानी बताया गया है। पुण्य-स्थलों के रूप में देवी भागवत (6/12) में कहा गया है –

प्रभासं च प्रयागं च नैमिषारण्यभेव च।

विश्रुतं चार्बुदारण्यं शैलाश्र्वपावनास्तथा।।

ऐसी किंवदंती भी है कि मृग के भ्रम में जरत्कुमार के बाण लगने से श्रीकृष्ण ने अपने प्राण यहीं पर विसर्जित किये थे।

पहले प्रभास में एक विशाल पहाड़ी पर विशाल जैन मंदिर था, जिसके नष्ट होने पर इस पहाड़ी के उत्तर में दस सीढ़ियों वाले जैन-मंदिर का निर्माण सन् 1824 ईस्वी में हुआ। यहॉं पर एक गुफा भी है, जो कि नौ फीट लंबी व सात फीट चौड़ी है। इस गुफा से ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी के ब्राह्मी लिपि के अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं, जिसके अनुसार इस गुफा का निर्माण गौपाली के पुत्र राजा बहसत्ति के मित्र के मामा वैहोदसी के पुत्र राजा आसाढ़ सेन ने कश्यप अर्हतों के निवास हेतु करवाया था। इस लेख की भाषा संस्कृत प्रभावित प्राकृत है। यह जैन-तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभा की साधना स्थली रही है। आज भी यह श्र्वेताम्बर व दिगम्बर जैन साधुओं की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। भगवान पद्मप्रभ ने यहां तप कर चैत्र पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्त किया था।

ठेनसांग (644 ईस्वी) के अनुसार पहले यहां दो सौ फीट ऊंचा स्तूप था। जहॉं भगवान बुद्घ के केश व नाखून गड़े हुए थे। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पहले यहां एक भयंकर नाग रहता था, जिसकी पूंछ यमुना नदी तक थी। आज भी नाग पंचमी व महाशिवरात्रि के दिन लोग यहां नाग-देवता की पूजा करते हैं। पहाड़ी की तलहटी में तीन शिखर का भव्य मंदिर है। ललितागम ज्ञानपद में वर्णित शिवजी के एक सौ आठ दिव्य देशों में प्रभास क्षेत्र में शशिभूषण शिवजी की मूर्ति भी थी। पहाड़ी पर कांच का सुन्दर मंदिर भी है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी व चैत्र पूर्णिमा को यहॉं हजारों जैनी कल्याण महोत्सव मनाते हैं।

यहां पर भगवान नेमिनाथ की भूरे पाषाण की दो फुट सात इंच की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख के अनुसार यह प्रतिमा संवत् 1508 की है। इसके दायीं ओर प्रभु कार्तिक की संगमरमर की प्रतिमा है।

शास्त्रों में प्रभास को सिद्घ-पुरुषों का आवास बताया गया है। कूर्मपुराण में प्रभास का वर्णन है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार कुश नाम के ऋषि के चार पुत्रों में से कुशाम्ब नाम के पुत्र को कौशाम्बी का संस्थापक कहा जाता है – कुशाम्बस्तु महातेजाः कौशाम्बीम करोत् पुरीम्। महाभारत के अनुसार चेदिराज वसु स्वामी के पुत्र कुशाम्ब ने कौशाम्बी को बसाया था।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने पूरे प्रभास क्षेत्र को पुरातात्विक अवशेष घोषित कर रखा है।

– निर्विकल्प विश्र्वहृदय

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