अब से साठ साल बाद कोलकाता और उसके बाद मुंबई शहर पानी में डुबने वाले हैं। यह सब आज से पच्चीस साल बाद भी हो सकता है। ऐसी कई भविष्यवाणियॉं की जा रही हैं। पिछले कुछ सालों से दुनिया का तापमान बढ़ रहा है, ऐसे भी कई संकेत मिल रहे हैं। उत्तरी ध्रुव और हिमालय के इलाकों में ज्यादा मात्रा में बर्फ पिघलने लगी है।
कुल मिलाकर प्रलय होने वाला है, यह निश्र्चित है, लेकिन कब होगा, यह तय नहीं है। मान लीजिए, कोलकाता और मुंबई साठ साल बाद प्रलय की चपेट में आने वाले हैं तो क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें? प्रलय का सामना करने के लिए कुछ तैयारी भी तो होनी चाहिए न।
पुराण बताते हैं कि काफी पहले, कभी प्रलय हुआ था। प्रलय के बाद जो भी पहला जीव उत्पन्न हुआ होगा, उसने क्या खाया होगा? किसे पता?
करीब 6 करोड़ साल पहले भूकंप आये, ज्वालामुखी दहके, सूनामी उठे, जोरदार तूफान आये, बाढ़ें आईर्ं, जो जीव मौजूद थे, वे विलुप्त हो गये। डायनासोर भी विलुप्त हो गये। वैज्ञानिक विश्लेषण बताते हैं कि सिर्फ 25 प्रतिशत वनस्पतियां ही बच पायीं थीं।
लेकिन आने वाले समय में कभी प्रलय हुआ, तो इस बात की क्या गारंटी है कि 25 प्रतिशत सजीव सृष्टि बची रहेगी? इसलिए प्रलय के बाद बचे हुए जीवों के लिए या नये सिरे से उत्पन्न होने वाले जीवों को अनाज मिल सके, इसकी व्यवस्था हम अभी से कर रहे हैं। पूरी इंसानी बिरादरी की ओर से नॉर्वे सरकार यह कदम उठा रही है। उत्तरी दिशा में मौजूद पहाड़ों में से एक में विशाल पेटी या संदूक का निर्माण किया जा रहा है। इस संदूक का तापमान शून्य से 18 डिग्री सेल्सियस कम रहेगा। इस संदूक के निर्माण में करीब चार करोड़ रुपये खर्च होंगे। इस पेटी में अंततः अनाज के कई सारे नमूने रखे जाएँगे।
नॉर्वे से लगभग एक हजार किलोमीटर की दूरी पर स्वालबार्ड द्वीप समूह के स्पीटबर्गेन द्वीप में इस संदूक का निर्माण करवाया जा रहा है। पहाड़ में यह पेटी 120 मीटर गहरी है। इसकी दीवारें एक मीटर मोटी हैं। इस पेटी के निर्माण और रख-रखाव का जिम्मा नॉर्वे के ग्लोबल ाॉप डायवर्सिटी टस्ट ने लिया है। इस साल मार्च महीने में यह काम पूरा हो जाएगा, ऐसी संभावना है।
इस काम को शुरू करने से पहले इस पहाड़ द्वारा उत्सर्जित विकिरण एवं पहाड़ की भू-वैज्ञानिक संरचना का गहराई से अध्ययन कर लिया गया था।
ग्लोबल वार्मिंग यानी दुनिया का तापमान काफी बढ़ने वाला है। यदि ग्रीनलैंड की काफी बर्फ पिघल भी जाये तब भी यह पेटी सुरक्षित रहेगी, इस बात का भी ध्यान रखा गया है। यानी बर्फ पिघलने पर बढ़े हुए जल-स्तर से भी ऊपर यह पेटी रहेगी। इस बात को सुनिश्र्चित करने के लिए साल में एक बार जांच-पड़ताल की जाएगी।
बीज बैंक
सूरजमुखी, गेहूँ जैसे बीज ठंडी पेटी में एक हजार साल तक सही-सलामत रह सकते हैं। चना तीस साल तक बना रह सकता है। और वैसे देखें तो करीब ढाई लाख वनस्पति प्रजातियों में से करीब दो सौ प्रजातियों की पैदावार के लिए गंभीर प्रयास करने पड़ रहेे हैं। संग्रहित बीजों से आगे का काम चल जाएगा, ऐसा अंदाज है। इस समय दुनिया में 1400 बीज बैंक मौजूद हैं। की-गार्डेंस द्वारा शुरू किये गये बीज बैंक में दुनिया की वनस्पतियों में से 10 प्रतिशत प्रजातियों का संग्रह किया गया है। इन संग्रहित प्रजातियों में से कई का बीच-बीच में बोवाई के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। अन्यथा बीज नष्ट होने का खतरा बना रहता है।
बीज बैंकों को अन्य खतरों का सामना भी करना पड़ता है। पिछले साल फिलीपीन्स में आये जबर्दस्त तूफान के साथ आई बाढ़ में वहां का एक बीज बैंक नष्ट हो गया। इसलिए एक सुरक्षित पेटी बनाना बेहद जरूरी है। आर्क्टिक प्रदेश में पहाड़ में यह पेटी बनाई जाने की वजह से बीजों के नष्ट होने का खतरा कम हो जाएगा।
एक ही तरह की खेती
फिलहाल विकसित देशों में नयी तकनीकों से खेती होने की वजह से कुछ खास किस्म की प्रजातियों की ही खेती होती है। कई जगहों पर छोटे पैमाने पर की जाने वाली खेती को अनदेखा किया जाता है। एक ही किस्म के अनाज का उत्पादन करने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। फिलहाल खेती लगभग 20 किस्मों और 8 वनस्पति वंशों पर निर्भर है।
संयुक्त राष्ट की पर्यावरण समिति ने इस बात का खुलासा किया है कि आने वाले 50 सालों में दुनिया के फूलधारी पौधों की 25 प्रतिशत प्रजातियां विलुप्त हो जाएँगी। आीका महाद्वीप के कुछ देशों में तो खाद्यान्न और जैव-ईंधन निर्यात के लिए कुछ खास वनस्पतियों की ही खेती की जा रही है।
किसानों को दुर्लभ प्रजातियों की खेती करनी चाहिए और यदि वे ऐसा करने के लिए तैयार हों, तो उन्हें वे वनस्पतियां उपलब्ध भी होनी चाहिए। इस सब लिहा़ज से नॉर्वे द्वारा बनाई जा रही पेटी काफी उपयोगी साबित होगी। जिस तरह पौराणिक कथा में बताया गया है कि प्रलय के बाद नोआ या मनु और उनकी नाव को सहारा देने वाली मछली की वजह से सृष्टि की शुरूआत हुई थी, उसी तरह भविष्य में आने वाले प्रलय के बाद संभव है, उत्तरी ध्रुव का भालू और वहॉं का मनु भी यही भूमिका निभाएँगे।
कयामत के बीज
फरवरी के अंतिम सप्ताह में बीजों के संरक्षण के एक महत्वपूर्ण प्रयास की शुरूआत हुई। दुनिया भर की फसलों, सब्जियों, फलों के बीज एक तिजोरी में रख दिये गये हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि ये बीज सदियों तक सुरक्षित रहेंगे। कयामत होने पर इनका उपयोग किया जा सकेगा।
स्वालबर्ड ग्लोबल सीड वॉल्ट नामक यह तिजोरी दरअसल 100 मीटर की एक भूमिगत सुरंग है। इसे नॉर्वे की राजधानी ओस्लो के उत्तर में स्थित एक द्वीप पर बनाया गया है। यह क्षेत्र आर्क्टिक के बर्फीले इलाके में है।
इसे कयामत की तिजोरी कहा जा रहा है। अभी बीजों का पहला डिब्बा इसमें रखा गया है जिसमें करीब 11 टन बीज हैं। इसमें 92 प्रमुख अनाजों, सब्जियों व फलियों के बीज रखे गये हैं।
सुरंग का तापमान शून्य से 18 डिग्री सेल्सियस नीचे रखा जाएगा, जो आर्क्टिक में मुश्किल नहीं होगा। कह रहे हैं कि यह हमारी खाद्यान्न सुरक्षा का बीमा है। राष्ट संघ के खाद्य व कृषि संगठन के अध्यक्ष जेकेस डिओफ के अनुसार- यह मानवता को बचाने का सबसे महत्वपूर्ण प्रयास है।
वैसे तो इस तिजोरी की मालिक नॉर्वे सरकार है, मगर इसके संचालन का काम ग्लोबल ाॉप डाइवर्सिटी टस्ट द्वारा किया जाएगा। इसके संचालन की लागत करीब 15 लाख डॉलर सालाना है। इसके अलावा दुनिया भर से बीज इकट्ठा करने पर भी सालाना 5 लाख डॉलर खर्च होंगे। वैसे काम आगे बढ़ने के साथ इसका खर्च भी बढ़ता जाएगा। मगर नॉर्वे सरकार को उम्मीद है कि इतनी महत्वपूर्ण सुविधा के लिए धन जुटाना मुश्किल नहीं होगा। स्वयं नॉर्वे ने यह वचन दिया है कि वह वहॉं बीजों की बिाी से कुल आमदनी में 0.1 प्रतिशत इस सुविधा के लिए देगा। यदि सारे विकसित देश ऐसा करें, तो धन की कमी आड़े नहीं आएगी।
– जयंत एरंडे
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