प्लास्टिक मनी का चलन इस उद्देश्य से हुआ था कि लोग जेबों में नोट भरकर चलने में परेशानी महसूस करने लगे थे। फिर उपभोग का दायरा भी बढ़ रहा था और मात्रा भी। कब और क्या खरीदने का मन आ जाए, किसी चीज की क्या कीमत चुकानी पड़े, इस तरह के तमाम तात्कालिक डरों से निजात पाने के लिए प्लास्टिक मनी का चलन शुरू हुआ।
लेकिन जिन सहूलियतों के लिए इसका चलन शुरू हुआ था, उन सहूलियतों को तो भले ही लोग भरपूर इंज्वाय न कर पा रहे हों, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्लास्टिक मनी ने नयी तरह की समस्याओं को जन्म दिया है। ये समस्याएं सिहरन पैदा करने वाली हैं। अपराध के साथ आमतौर पर यह होता है कि जिस रफ्तार से तकनीक का विकास होता है, लगभग उसके एक कदम आगे अपराधी रहते हैं। यही वजह है कि आजकल दुनिया भर में हैकरों के लिए क्रेडिट कार्ड की सीनिंग और क्लोनिंग करना बहुत आसान और मामूली काम बन गया है। यही नहीं इसके लिए वे तमाम फर्जी वेबसाइट भी बना लेते हैं और नये ऑनलाइन ट्रेडिंग मॉडल में जमकर गोलमाल कर रहे हैं। आपकी जेब पर तो वह घात लगाये बैठे ही हैं, बैंक-खातों को भी अब वह नहीं बख्श रहे हैं।
सवाल है, आप फंदे में कहां फंसते हैं? इनके फंदे में फंसना न सिर्फ आसान है, बल्कि कहा जाए, बच ही नहीं सकते तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। पेट्रोल पम्प, रेस्तरांओं और शॉपिंग का बिल चुकाते समय, हवाई जहाज का टिकट खरीदते समय जब आप अपना क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करते हैं तो समझिए आपके लिए खतरे की घंटी बज गयी। अब अगर इन तमाम कामों के लिए क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल न किया जाए तो फिर वह किस काम के लिए रखा जाए? और अगर इस्तेमाल करते हैं तो फंदे में फंस जाते हैं। इस तकनीकी दौर की सबसे बड़ी समस्या ही यही है।
हैकर कोई भी हो सकता है- किसी बार का वेटर, पेट्रोल पम्प का पैसा लेने वाला अटेंडेंट या कि किसी एयरलाइंस में टिकट काउंटर पर बैठा क्लर्क या और भी कोई। आपका क्रेडिट कार्ड एक बार इन लोगों के हाथ में गया तो आपके असुरक्षित हो जाने के खतरे बढ़ जाते हैं। सुरक्षा विशेषज्ञ इस सम्बन्ध में बार-बार चेता रहे हैं। लेकिन सवाल है, इन चेतावनियों का क्या मतलब है? क्या इन सबके चलते क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल न किया जाए या फिर कोई ऐसी तकनीक है, जिसे अभी तक विशेषज्ञ ढूंढ़ नहीं पाये, उसे हासिल किया जाए। दरअसल, अपराधियों के पास आपके कार्ड को क्लोन करने के लिए आपके डाटा को डिकोड करने के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध हो गयी हैं। ऐसे अपराधी कार्ड के मैग्नेटिक स्ट्रिप रीडर और एनकोडर का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो बाजार में 12,000 से लेकर 25,000 रुपये में उपलब्ध हैं। ऐसे कार्ड रीडर आपके क्रेडिट या डेबिट कार्ड के मैग्नेटिक बैंड का डाटा पढ़ लेते हैं, साथ ही एनकोडर मैग्नेटिक बैंड के साथ उसे किसी अन्य प्लास्टिक कार्ड पर चस्पा कर देता है या कहें एनकोड कर देता है।
हैरान मत होइये, यह बिल्कुल वैसी ही तकनीक है जैसी एक जमाने में होटल के कमरे की डुप्लीकेट चाबी बनाने के लिए इस्तेमाल में लायी जाती थी। यही नहीं किसी एक कार्ड को कोड करके दर्जनों कार्डों में तब्दील किया जा सकता है और कुछ ही पलों में आपके क्रेडिट बैलेंस को सफाचट किया जा सकता है। आज की तारीख में बाजार में कई बैंकों के बड़े पैमाने पर कार्ड उपलब्ध हैं। सबसे ज्यादा कार्ड आईसीआईसीआई बैंक के हैं। 85 लाख से ज्यादा क्रेडिट कार्ड के साथ आईसीआईसीआई बैंक की बाजार में मौजूद क्रेडिट कार्डों में हिस्सेदारी 45 फीसदी के ऊपर है। आईसीआईसीआई ने हालांकि एक नया तरीका अपनाया है, जैसे ही किसी कार्ड से 2000 से ज्यादा की कोई ट्रांजेक्शन होती है, बैंक ग्राहक को एसएमएस भेजकर अलर्ट कर देता है। इससे कई ग्राहकों को समय रहते ही अपने लुटने का पता चल गया और उन्होंने अपना बचाव कर लिया।
लेकिन यूं ही नहीं कहा गया कि पुलिस डाल-डाल तो चोर पात-पात। पिछले दिनों से हैकर जबरदस्त योजना को अमली जामा पहना रहे हैं। वे किसी कार्ड का क्लोन बनाकर सीधे उससे खरीदारी या कोई ऐसा ट्रांजेक्शन नहीं करते, जो उन्हें किसी तरह के खतरे में डाल दे। इसके लिए वह आजकल एक नया फंडा अपना रहे हैं। वे किसी के क्रेडिट कार्ड को हैक करके नया कार्ड बनाते हैं और उससे शॉपिंग करते हैं, लेकिन डिलीवरी देने के लिए हफ्ता या दस दिन का टाइम देते हैं। वे कहते हैं, वह अभी बाहर जा रहे हैं या कोई और बहाना बनाते हैं, इसलिए उन्हें डिलीवरी 8-10 दिन बाद दे दी जाए। आप सोच रहे होंगे कि इस बीच वह क्या करते हैं? इस बीच वह एक नया खेल खेलते हैं। फर्जी कार्ड से खरीदी गयी 30-35 हजार की चीज को वह ऑनलाइन नीलामी के लिए ऐसी वेबसाइटों में इनका विवरण रखते हैं और आधे या कई बार एक-तिहाई कीमत पर चीज को बेचने के लिए प्रस्ताव देते हैं। जैसे ही उन्हें कोई सस्ता-मद्दा ग्राहक मिल जाता है, उन्हें वह बेच देते हैं और जहां से सौदा खरीदा होता है, उसे सीधे बेचे गये ग्राहक के पते पर डिलीवरी देने का ऑर्डर दे दिया जाता है। इस तरह अपराधी हर तरह से पकड़ में आने से बच जाता है। न तो वह सीधे शॉपिंग करने के दौरान पकड़ा जाता है और न ही डिलीवरी लेते समय। यहां तक कि वह ऑनलाइन पैसा भी एक ऐसे एकाउंट में मंगवाता है जिसे ढूंढ़ पाना या उस तक पहुंचना काफी मुश्किल होता है।
आजकल कार्ड हैकर एक और नया तरीका अपनाते हैं। वे हैक करने के लिए किसी बड़ी रकम पर दांव नहीं लगाते बल्कि छोटी-छोटी रकम चुराते हैं ताकि कार्ड इस्तेमाल करने वाले को एकाएक पता न चल पाये कि उसके साथ कोई जबरदस्त गड़बड़ हो गयी है। कम रकम चुराने के दो फायदे मिलते हैं। एक तो कार्डधारक को पता नहीं चल पाता और दूसरा बैंक भी इस बात को नहीं समझ पाते कि यह असली ट्रांजेक्शन है या नकली। जबकि किसी बड़ी रकम के ट्रांजेक्शन के समय बैंक अपने ग्राहकों को दूसरे माध्यम से इत्तिला देते हैं। जिस कारण वह चौंकन्ने हो जाते हैं।
सवाल है, इससे बचा कैसे जाए? नेट सिक्योरिटी के विशेषज्ञों के मुताबिक-
- केवल उन साइटों पर क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल किया जाए, जो हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकोल ओवर सिक्योर सॉकेट लेयर यानी एचटीटीपीएस होती हैं।
- इसके अलावा ट्रांजेक्शन के बाद टेक्स्ट पर्ची को डिलीट करना, हिस्ट्री को ब्रोंज करना भी कार्ड नंबर चुराने की साइबर चोर की कोशिश को नाकाम करने में मददगार हो सकता है। इसलिए इन सावधानियों का भी ख्याल रखें।
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