गृहमंत्री चिदम्बरम का एक बयान आया है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान की ओर से भारत को यह पक्की गारंटी मिलनी चाहिए कि 26/11 को हुए मुंबई के आतंकी हमले जैसा कोई हमला पाकिस्तान की ़जमीन से फिर कभी नहीं होगा। उनका यह भी कहना है कि अगर ऐसा हुआ तो उसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। उनका यह ताजा बयान अलग-अलग कोणों पर अलग-अलग सवाल उठता है। उनके इस बयान में इस्तमाल किये गये फिर कभी शब्द से क्या यह ध्वनि नहीं निकलती है कि जाओ इस बार हमने तुम्हें माफ कर दिया, लेकिन आगे ऐसा हरगिज मत करना? यह भी कि अगर फिर किया तो अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना? सवाल यह भी उठता है कि चिदम्बरम साहेब की इस चेतावनी के साथ ही क्या देश यह मान ले कि भारत सरकार की ओर से 26/11 की घटना को अब ऐसी ही किसी घटना के होने के इंत़जार में नेपथ्य के हवाले कर दिया गया है। अगर चिदम्बरम साहेब यह मानते-स्वीकारते हैं कि यह घटना पाकिस्तानी एजेंसियों की सिाय भूमिका के साथ अथवा आतंकवादी संगठनों की स्वतंत्र रूप से की गई कार्यवाही के तौर पर भारत के खिलाफ अंजाम दी गई है, तो भारत कथित तौर पर बड़ी कीमत वसूलने की कार्यवाही फिर कभी क्यों करे, अभी क्यों नहीं करे? अभी तक तो भारत सरकार की ओर से अधिकारिक तौर पर यही कहा जा रहा था कि पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ उसने अपने सारे विकल्प खुले रखे हैं। आ़िखर उन विकल्पों का क्या हुआ? क्या अब वे सारे विकल्प आजमाने का फैसला किसी अगली आतंकी घटना के लिए सुरक्षित रख दिया गया है?
चिदम्बरम साहेब से यह सवाल ़जरूर पूछा जाना चाहिए कि पिछले कई दशकों से पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद के चलते भारत ने सिर्फ बड़ी कीमत ही नहीं बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। यह ़कीमत जाय़ज तौर पर पाकिस्तान से मूल धन और ब्याज सहित वसूल की जानी चाहिए। वास्तविकता यह भी है कि भारत यह कीमत वसूल करने में समर्थ भी है और सक्षम भी है। लेकिन भारत के सत्ताधारी राजनीतिज्ञ इस मसले पर आतंकवाद के शुरुआती दौर से लगातार या तो गुमराहियत के शिकार रहे हैं अथवा भयग्रस्त रहे हैं। तथ्य यह भी है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए आतंकवाद का मुद्दा भी अब तक अपने-अपने खेमे में ज्यादा से ज्यादा वोट जुटाने का एक कारगर हथियार भर रहा है। यूँ आतंकवादी घटनाओं का सिलसिला पिछले कई दशकों से लगातार जारी है, लेकिन हर चोट जो निश्र्चित रूप से देश की संप्रभुता और स्वाभिमान को अब तक आहत करती रही है, सहने के बावजूद कभी यह प्रदर्शित नहीं किया गया कि भारत अपनी ताकत के भरोसे इस दानव का वध करने के लिए प्रतिबद्घ है। हम हमेशा दुनिया के सामने रोते-गिड़गिड़ाते रहे। दुनिया भी बतौर फर्ज कुछ सांत्वना-सहानुभूति के बोल बोल कर और पाकिस्तान को कुछ छिपी फटकार जैसी हिदायतें देकर अन्ततः चुप लगा जाती रही। हमारी समझ में यह कभी नहीं आया कि यह कथित कीमत हमें पाकिस्तान से हासिल करनी है, कि दुनिया को हासिल करनी है? अगर दुनिया को हासिल करनी है तो हमें यह बहुत पहले समझ लेना चाहिये था कि समर्थन और सहयोग में भारी अन्तर होता है। यह ़जरूर है कि मुंबई के आतंकी हमले के बाद हमें समर्थन व्यापक रूप से मिला लेकिन सहयोग के लिए कोई राजी नहीं हुआ। वह अमेरिका भी नहीं जो सबसे अधिक बढ़-चढ़ कर भारतीय समर्थन का राग अलाप रहा है।
चिदम्बरम साहेब ने अपने इस वक्तव्य में एक और बात कही है, उनका कहना है कि पाकिस्तान की ओर से हमें यह पक्की गारंटी चाहिये कि आगे चल कर मुंबई जैसी कोई दूसरी आतंकी घटना नहीं घटेगी। जहॉं तक पाकिस्तान का ताल्लुक है वह पक्की तो क्या कोई कच्ची गारंटी देने की भी स्थिति में नहीं है। गारंटी मांगने और देने का सवाल तो तब उठता जब वह इस बात को तस्लीम करता कि इस आतंकी घटना में उसकी सरकार, सेना, आईएसआई, वहां के तथाकथित आतंकी संगठनों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कोई भूमिका है। हम उससे पक्की गारंटी मांग रहे हैं तो वह हमसे पक्के सबूत मांग रहा है। जब वह सिरे से हमारे आरोपों को नकार रहा है तो वह हमें गारंटी किस बात की देगा? दुनिया के इस सबसे कुटिल, चालाक और मक्कार मुल्क की फितरत को चिदम्बरम साहेब शायद अब तक समझ नहीं पाये हैं।
हमें यानी कि भारत की जनता को और सरकार को भी यह ब़खूबी समझ लेना होगा कि पाकिस्तान न कोई गारंटी देने वाला है और न ही अपने अब तक के व्यवहार में कोई तब्दीली लाने वाला है। हमें सोचना यह भी है कि वह गारंटी देगा भी किस तरह, कोई इस बाबत संधि-पत्र तो वह लिखेगा नहीं। रह गई बात जबानी जमा खर्च की, तो अगर उसे भारत हासिल भी कर ले तो क्या फायदा होने वाला है। हम अब भी पूर्व में किये गये उसके वायदों की याद उसे दिलाते रहते हैं। अगर उसने एक वायदा और कर भी लिया तो क्या बन-बिगड़ जाएगा? उसने भारत की असलियत पहचान ली है। वह असलियत यही है कि हम लाख बहाने खोज कर समस्या का हल शुतुरमुर्गी अंदाज में निकालने के पक्षधर हैं। हाल की घटना के संदर्भ में उसने युद्घ का हौवा खड़ा कर पिछले पांव पर हमें आने को मजबूर किया तो उसके पीछे एक मात्र कारण यह है कि पाकिस्तान भारत से प्रत्यक्ष युद्घ नहीं लड़ना चाहता और वह जानता है कि छद्म युद्घ में वह भारत को हमेशा इसी तरह नाकों चने चबवाता रहेगा।
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