बाल विहीन छाती का बढ़ता फैशन

इस टेंड की शुरूआत सितारों ने की और अब यह आम-युवाओं में भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। सैलूनों में ऐसे युवा बड़े पैमाने पर आ रहे हैं, जो अपने छाती के बालों को बिल्कुल सफाचट करवाने की ख्वाहिश रखते हैं। हॉलीवुड सितारों के चाहने वालों को पता है कि सबसे पहले छाती के बालों को सफाचट करवाने का काम ब्रॉड पिट ने किया और उसकी नकल की शाहरूख खान ने। लेकिन फिर यह सिलसिला चल निकला। आज हर हीरो चाहे वह सैफ अली खान हो, जॉन अब्राहम हो या सदाबहार चिकने का खिताब हासिल करने वाले शाहिद कपूर, सब अपनी सफाचट छाती के लिए युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं।

सवाल है, क्या सचमुच छाती के बाल निकलवा देने से मर्द स्मार्ट दिखने लगता है या उल्टे उसकी मर्दानगी ही गायब हो जाती है? इन दोनों ही निष्कर्षों को मानने वालों की अच्छी-खासी तादाद है। इसमें कोई दो राय नहीं कि फिलहाल यह मानने वालों का पलड़ा थोड़ा भारी है कि छाती से बाल निकलवा देने से मर्द ज्यादा स्मार्ट दिखता है। लेकिन यह मानने वालों की भी कमी नहीं है कि छाती के बाल सफाचट कराने के बाद मर्द, मर्द ही नहीं रहता। दरअसल, हॉलीवुड हो या बॉलीवुड, मैटोसेक्सुअल हीरो ने जब से अपनी धाक यहां जमाई है और रफ-टफ हीरो का पत्ता साफ हुआ है, तब से मर्द और औरत में काफी कुछ समान दिखने वाली चीजों की लोकप्रियता बढ़ी है। ब्रॉड पिट हों या शाहरूख खान या फिर जॉन और सैफ अली, हाल के दिनों में इनके इस लुक को काफी पसंद किया गया है। इन्हें इस लुक में पसंद करने वाली सबसे ज्यादा लड़कियां हैं। शायद यही कारण है कि वो तमाम युवक भी ऐसा ही सोचने को मजबूर हो गये हैं, जिनकी छाती में बाल हैं।

एक असंगठित सर्वे के मुताबिक हेयर सैलूनों में तकरीबन 30 फीसदी युवक अपनी छाती के बालों को अस्थायी या स्थायी तौर पर हटवाने की ख्वाहिश लेकर आ रहे हैं। इनकी संख्या दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। क्योंकि बॉलीवुड के जितने भी कमीज उतारु नायक हैं, वे सब के सब अब छाती को सफाचट रखने लगे हैं। नई दिल्ली स्थित काया स्किन क्लिनिक की त्वचा विशेषज्ञ (डर्मेटोलॉजिस्ट) डॉ. हेमा पंत कहती हैं, “”पुरुषों के व्यवहार में अचानक काफी परिवर्तन आ गए हैं। वो अब नर्म हो गए हैं, जिद्दी नहीं रहे और धीरे-धीरे इस अहसास को भी स्वीकार करने लगे हैं कि घर के वो अकेले पालक नहीं हैं। गृहस्थी की जिम्मेदारी का बोझ वह बिना किसी अपराधबोध के पत्नियों पर डालने को तैयार हैं या उनका सहयोग लेने में उन्हें कोई हर्ज नहीं है। इस सबके कारण उनकी लुक और उनकी सोच में भी महिलाओं का नजरिया हावी होने लगा है। यही कारण है कि मर्दानगी के पारंपरिक चिन्ह और तेवर भी बदल रहे हैं।”

बहरहाल, ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो इस टेंड को एक अस्थायी रोमांच तलाशने का जरिया भर मानते हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि मर्दानगी के पारंपरिक चिन्ह आज भी खरे हैं। लेकिन सदियों से उनकी मौजूदगी शायद अब रोमांचित नहीं करती। इसलिए यह एक तरह से रोमांच के लिए तलाशे जाने वाला बदलाव है। लेकिन मनोचिकित्सकों का मानना है कि असली कारण यह है कि पुरुषों को अब अपनी पुरुष छवि को लेकर कोई हैंगओवर नहीं रह गया है। वह ज्यादा आ़जादी पसंद हो गए हैं और महिलाओं को भी अपने जैसा बनता देख खुद भी कुछ उन्हीं के जैसे बनने की कोशिश करने लगे हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं, जो इसे निरानिर बेवकूफी मानते हैं और कुछ के लिए यह पर्सनैलिटी ग्रूमिंग का नया और प्रभावी तरीका है।

पर्सनैलिटी ग्रूमिंग विशेषज्ञा तान्या अहलूवालिया कहती हैं, “”मुझे इसमें कोई गड़बड़ी नजर नहीं आ रही है। यह हकीकत है कि जिन मर्दों की छाती पर बाल नहीं होते, वो ज्यादा सेक्सी नजर आते हैं। लेकिन इसका एक हाइजीन पहलू भी है। सबसे बड़ी बात यह है कि छाती से बाल निकलवा देने से आदमी ज्यादा सुसंस्कृत नजर आने लगता है।” लेकिन नकुल जालंधरी इसे सिर्फ बातों का बतंगड़ मानते हैं। वो कहते हैं, “”ऐसा कुछ नहीं है। आदमी, आदमी के रूप में ही अच्छा लगता है। अगर वह औरत बनने की होड़ में फंसेगा तो न आदमी रहेगा और न औरत बन पाएगा। हां, यह सही है कि इसमें कोई नुकसान नहीं है, लेकिन छाती के बाल उखड़वाने की पीड़ा भी सहनी क्यों जरूरी है। खुद को ये दर्द देकर आखिर मर्द हासिल क्या करना चाहते हैं?”

चाहे आदमी हो या पुरुष, कोई भी वर्ग इस टेंड को लेकर न तो इसका विरोधी है और न पक्षधर। कुछ लोगों को एक बात पसंद आती है तो कुछ लोगों को दूसरी। महिलाओं पर भी यह बात लागू होती है। आखिर उन्हें मर्द की छाती पर सिर रखने का एक भावनात्मक एहसास होना चाहिए। यह नहीं कि वह उसे तकिए की जगह इस्तेमाल करे। जहां तक पसंद की बात है तो उसमें चाहत का भावनात्मक विकास मायने रखता है। अलग-अलग महिलाओं की अलग-अलग पसंद होती है। किसी को मर्द ज्यादा बना-संवरा पसंद आता है तो कई महिलाओं को बेफिा मर्द पसंद आते हैं। नयी आर्थिक सोच के व्याख्याकार इसमें एक नया पहलू जोड़ रहे हैं। उनके मुताबिक जो महिलाएं आर्थिक रूप से मर्दों पर निर्भर हैं, उन्हें तो बेफिा और रफ-टफ मर्द पसंद आते हैं। लेकिन जिन्होंने खुद बढ़कर आर्थिक प्रगति की बागडोर अपने हाथों में संभाल रखी है, उन्हें सजा-संवरा और व्यवस्थित मर्द पसंद आता है। ठीक वैसे ही जैसे कमाऊ पुरुषों को सजी-संवरी और अपने को कुछ ज्यादा ही औरत प्रदर्शित करने वाली औरतें पसंद आती हैं। इसलिए अगर कहा जाए कि इस टेंड के पीछे एक बड़ी भूमिका आर्थिक सोच की है तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा।

उम्र का भी इस सोच और पसंद के साथ खासा गहरा रिश्ता है। ज्यादातर कम उम्र की लड़कियां लुक में सॉफ्ट दिखने वाले युवकों को पसंद करती हैं तो व्यस्त औरतों को वही पुरुष ज्यादा पसंद आते हैं जो पुरुषों की तरह हों यानी रफ-टफ हों, कम बोलते हों और उनकी सुनते भी कम हों। जिद्दी हों और जरा-सी गलती पर औरतों को आंख तरेरने की कोशिश करते हों। इसके उलट किशोर लड़कियों और युवतियों को ऐसे पुरुष ज्यादा पसंद आते हैं, जो उन्हीं की तरह बातूनी हों, बचकानी हरकतें करते हों (उत्साही होने के नाम पर) आदि।

बहरहाल, यह एक अंतहीन बहस है कि कौन सी लुक अच्छी है, स्थायी है और ज्यादा सेंसिटिव है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि युवाओं को हमेशा वह चीजें पसंद आती हैं, जो लीक से हटकर हों।

– डी.जे. नंदन

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