बा़की सिद्दी़की की एक ग़ज़ल

ख़बर कुछ ऐसी उड़ाई किसी ने गॉंव में

उदास फिरते हैं हम बेरियों की छॉंव में

 

नज़र-नज़र से निकलती हैं दर्द की टीसें

कदम-कदम पे वो कॉंटे चुभे हैं पॉंव में

 

हर एक सम्त से उड़-उड़ रेत आती है

अभी है जोर वही दश्त की हवाओं में

 

चले तो हैं किसी आहट का आसरा लेकर

भटक न जायें कहीं अजनबी फिज़ाओं में

 

धुआँ-धुआँ-सी है खेतों की चॉंदनी बा़की

कि आग शहर की अब आ गई है गॉंव में

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