ब्रिटेन की राजनीति गंभीर मोड़ पर

आने वाले कुछ दिन ब्रिटेन की राजनीति के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होने वाले हैं। विशेषकर प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन के भविष्य के लिए तो कुछ खास ही हैं। सत्ताधारी लेबर पार्टी की लीडरशिप के सवाल को लेकर पिछले कुछ महीनों से पार्टी के अन्दर असंतोष की जो चिंगारियां सुलग रही थीं वे अब भड़क कर धधकती आग का रूप धारण करती ऩजर आ रही हैं। यह देश आजकल वैसे भी चाकूबा़जी के आतंक से डरा हुआ है। यहॉं के युवा चाकू का इस्तेमाल इस निडरता और बेरहमी से कर रहे हैं कि इस वर्ष अब तक अपनी ही उम्र के 22 लड़के-लड़कियों को मौत के घाट उतार चुके हैं। आए दिन चाकू द्वारा कत्ल की वारदातें हो रही हैं। बहरहाल, लेबर पार्टी के अन्दर भी गोर्डन ब्राउन के समर्थक और उनके विरोधी इस वक्त चाकू-छुरियां ते़ज करने में लगे हुए हैं। ऐसा लग रहा है कि बस अब अगला वार होने ही वाला है। देखना यह है कि पहला वार कौन करता है।

ब्राउन के विरोधी अब तक दबी-घुटी जुबान में उन्हें हटाने की बातें कर रहे थे। लेकिन अब या तो वे खुल कर सामने आ जायेंगे और ललकार कर ब्राउन से कहेंगे कि गद्दी छोड़ो या फिर इस विषय पर अब तक चुप्पी साधे हुए ब्राउन बर्दाश्त की सारी सीमायें तोड़ कर उन्हें चुनौती देंगे कि “बन्दे दे पूत बन जाओ, नहीं तां…

अब तक तो ब्राउन ने अपने विरोधियों से ऐसी भाषा में कोई बात की नहीं लेकिन अब उनके साथी उन्हें उकसा रहे हैं कि जो लोग उन्हें नीचा दिखाने की कोशिशें कर रहे हैं उनकी छुट्टी करो। ऐसे लोगों में स्वयं ब्राउन के अपने मंत्रिमंडल के कुछ प्रमुख सदस्य हैं जिनमें से ज्यादा सरगर्म हैं विदेशमंत्री डेविड मिल्लीबैंड। इस सप्ताह एक समाचारपत्र में उन्होंने एक लेख में ब्राउन की लीडरशिप की कड़ी नुक्ताचीनी की है और अपने आपको प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया है। कई अन्य मंत्री और संसद सदस्यों की कुछ संख्या भी मिल्लीबैंड के विचारों से सहमत है। क्योंकि लेबर पार्टी के अन्दर और आम जनता में यह धारणा ़जोर पकड़ती जा रही है कि अगर देश की आर्थिक स्थिति को शीघ्र ही संभाला न गया तो लेबर पार्टी अगला चुनाव नहीं जीत सकेगी। यह भी कहा जा रहा है कि ब्राउन अभी तक लीडरशिप का ऐसा कोई करिश्मा नहीं दिखा सके कि जिससे आम लोगों में यह धारणा कायम हो पाई हो कि वह पार्टी की गिरती साख और देश की बिगड़ती माली हालत को बचा सकने की सामर्थ्य रखते हैं।

ब्रिटेन में किसी नेता की लोकप्रियता को परखने के लिए एक साधन बड़ा ही प्रचलित है। वह है ओपिनियन पोल। जनमत को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक पार्टियां इस साधन का प्रयोग खूब अच्छी तरह से करती हैं। आजकल ऐसे ओपिनियन पोलों का रुख ब्राउन के खिलाफ चल रहा है। विरोधी दल, टोरी पार्टी के नेता डेविड कैमरॉन लोकप्रियता में उनसे काफी आगे हैं। लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व जब ब्राउन ने प्रधानमंत्री का पद संभाला था तब उनकी लोकप्रियता का ग्राफ डेविड कैमरोन के मुकाबले में बहुत ऊँचा था। लेकिन कुछ ऐसा चा चला कि सर मुंडवाते ही ओले पड़ गए। अंतर्राष्टीय और ब्रिटेन के अपने अंदरूनी हालात ने कुछ ऐसा पल्टा खाया कि बेचारे ब्राउन तूफानी थपेड़ों की लपेट में आ गए। दस वर्ष तक वित्तमंत्री के रूप में देश की आर्थिक नैया को बड़े ही सफल और सुचारू ढंग से चलाने वाले ब्राउन स्थिति को काबू में लाने में अभी तक सफल नहीं हो पा रहे हैं। देश में मंदी की हालत है। महंगाई और बेकारी बढ़ रही है। व्यापार की दशा बुरी है। बड़े-बड़े स्टोरों में मायूसी का वातावरण छाया है। बिाी है नहीं; दफ्तरों और कारखानों में कामधंधे मंदे हैं। राजनैतिक क्षेत्र में लेबर पार्टी को मार पर मार पड़ रही है। पहले लन्दन के मेयर के चुनाव में टोरी पार्टी से शिकस्त खाई, फिर स्थानीय नगरपालिकाओं के चुनाव हारे, पार्लियामेन्ट के तीन उप-चुनावों में ऐसी सीटें खो दीं जो सदा से लेबर पार्टी का गढ़ थीं और जहॉं से उसके उम्मीदवार हमेशा भारी बहुमत से जीता करते थे।

राजनीति कितनी बेरहम हो सकती है, इसका अंदाजा अगर लगाना हो तो ब्रिटेन की वर्तमान स्थिति से बढ़ कर कोई और प्रमाण नहीं मिल सकेगा। चारों तरफ से तूफान उठ रहा है। ब्राउन घिरे हुए हैं। हमला करने के लिए दुश्मनों को इससे अच्छा मौका और कब मिलेगा? टोरी पार्टी ने तो इसका लाभ उठाना ही था, स्वयं ब्राउन की अपनी कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री भी उन पर तीखे तीरों की बौछार कर रहे हैं। अपने नेता के पक्ष में कैबिनेट के सिर्फ़ तीन मंत्री खुल कर सामने आए हैं, बाकी सभी के सभी तमाशा देख रहे हैं। हालांकि भूतपूर्व उप-प्रधानमंत्री जोन प्रेस्कॉट ने उन्हें चेतावनी दी है कि ब्राउन को गिराने की गलती न करें, वो अब भी लेबर पार्टी और देश के लिए एक बेहतरीन नेता हैं। लेबर पार्टी के अंदर यह एहसास भी पैदा हो रहा है कि ज्यादा दबाव पड़ने पर ब्राउन अगर इस्तीफा दे देते हैं तो मध्यवर्ती चुनाव होने का खतरा है। और इस वक्त जो हालात हैं उनमें लेबर पार्टी के जीतने की कोई सम्भावना नजर नहीं आती। ब्राउन को अगर गद्दी छोड़नी पड़ती है तो 15 महीनों के थोड़े से अन्तराल में ही तीन प्रधानमंत्रियों का बदलना इस देश के लिए एक अनोखी बात होगी। ब्रिटेन के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। एक भूतपूर्व टोरी मंत्री और बड़े ही सम्मानित राजनैतिक विचारक माइकल पोर्तिल्लो ने भी लेबर पार्टी को मशविरा देते हुए कहा है कि समझदारी से काम लो। अगर ब्राउन को मारोगे तो खुद लेबर पार्टी भी मर जायेगी।

माइकल की यह बात ब्राउन की पार्टी के लेबर आलोचकों के दिमाग में तो पड़ती ऩजर नहीं आ रही लेकिन विरोधी टोरी पार्टी ने ़जरूर चालाकी से काम लेना शुरू कर दिया है। उन्होंने ब्राउन की नुक्ताचीनी ़जरा कम कर दी है। क्योंकि वे नहीं चाहते कि ब्राउन अभी अपनी गद्दी छोड़ें। उन्होंने देख लिया है कि प्रधानमंत्री को गिराने का जो काम टोरी पार्टी ने करना था, वह स्वयं ब्राउन के अपने ही साथी कर रहे हैं तो फिर उन्हें खुद यह कष्ट उठाने की क्या ़जरूरत है। दूसरे, टोरी पार्टी यह समझती है कि ब्राउन एक कम़जोर नेता साबित हो रहे हैं। अपनी नीतियों और लीडरशिप की दुर्बलता की वजह से कोई ठोस कदम उठाने का साहस उनमें है नहीं, जिसका नतीजा यह निकल रहा है कि वह बदनाम हो रहे हैं। अपने आप वे जितना ज्यादा बदनाम होंगे, टोरी पार्टी को उतना ही फायदा होगा। ब्राउन अगर इस्तीफा देते हैं तो मुमकिन है उनकी जगह कोई ते़ज लेबर नेता प्रधानमंत्री बन जाए। ऐसे में टोरी पार्टी का सारा खेल ही चौपट हो जाएगा। इसलिए अपनी रणनीति में परिवर्तन लाकर टोरी नेता अब लेबर पार्टी के अन्दर चल रही लड़ाई का म़जा लेने में मस्त हैं।

प्रबल संभावना यही है कि यह लड़ाई भड़केगी ़जरूर। जो हालात पैदा हो चुके हैं उनमें दोनों पक्षों के लिए चुप बैठे रहना सम्भव नहीं। आलोचक लेबर मंत्रीगण यह अनुभव कर रहे हैं कि अगर लीडर बदला नहीं जाता तो सन् 2010 में होने वाले आम चुनाव में पार्टी की शिकस्त निश्र्चित है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री के तौर पर ऐसे लोगों को साथ रखना ब्राउन के लिए सम्भव नहीं जो उनके कट्टर आलोचक बन चुके हैं और उनकी लीडरशिप में अपनी आस्था खो चुके हैं। अब यह आर-पार की लड़ाई साबित होती है या अपने घर की आग घर में ही बुझाने की कोशिश की जाएगी, यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि आने वाले कुछ दिन ब्रिटेन की राजनीति के लिए बड़े महत्वपूर्ण रहने वाले हैं।

 

– कृष्ण भाटिया

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