अर्थव्यवस्था का तेज रफ्तार से विकास, भू-मंडलीकरण के चलते भारत में तेजी से बढ़ा विदेशी निवेश और मध्यवर्ग की आय में हुई बढ़ोत्तरी ने देश में शिक्षा के प्रति गंभीर रूझान पैदा किया है। इसकी स्वाभाविक वजह भी है, देश के लगभग सभी क्षेत्रों में पेशेवरों की मांग में नाटकीय बढ़ोत्तरी हुई है।
इस सबके चलते चाहे देश के बड़े-बड़े महानगर हों या मझोले शहर अथवा कस्बे, हर जगह बरसाती कुकुरमुत्तों की तरह कोचिंग सेंटर खुल गए हैं। पैदा हुए अनन्त अवसरों को हासिल करने के लिए ये कोचिंग सेंटर एक किस्म की गारंटी के रूप में भी देखे जा रहे हैं। यह अलग बात है कि इसमें थोड़ी सच्चाई है तो बड़ा हिस्सा महज खूबसूरत अफसाने का है। बहरहाल, इससे कोचिंग के कारोबार को कोई खास फर्क नहीं पड़ता। सफलता की दर चाहे जो भी हो, लेकिन यह हकीकत है कि पिछले दो दशकों के भीतर कोचिंग का कारोबार धीरे-धीरे एक व्यवस्थित कारोबार का रूप ले लिया है। हाल ही में एसोसिएटेड चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्टी़ज (एसोचैम) द्वारा कराये गये एक अध्ययन सर्वे के मुताबिक कोचिंग का सिर्फ बड़े शहरों में ही व्यवस्थित कारोबार 10 हजार करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर से ऊपर पहुंच गया है। महज महानगरों में आईआईटी में प्रवेश हेतु कोचिंग कराने वाले संस्थान ही हजारों करोड़ रुपये की आय का जरिया बन गये हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में अब कई कार्पोरेट हस्तियां भी कूदने का मन बना रही हैं।
सिर्फ ज्यादातर मध्यवर्गीय भारतीयों के शिक्षा के प्रति बढ़े रूझान और अवसरों को हासिल करने की ललक का ही परिणाम नहीं है कोचिंग का भारी-भरकम कारोबार, बल्कि इसके पीछे कुछ आधारभूत अधिसंरचनात्मक कमियां भी हैं जैसा कि एसोचैम के अध्यक्ष सज्जन जिंदल कहते हैं, “”भारत में तकरीबन 1 करोड़ 20 लाख छात्र उच्चतर शिक्षा के लिए नामांकन कराते हैं। लेकिन देश में पर्याप्त शिक्षकों का अभाव है। शिक्षक महज 3.5 लाख ही हैं। यही नहीं, पिछले कुछ सालों से बोर्ड की परीक्षाओं में पास होने के लिए भी मां-बाप के साथ-साथ बच्चे भी गंभीर हो रहे हैं। इन सब वजहों से देश में बड़ी तादाद में शिक्षकों की जरूरत बढ़ी है, जिसकी भरपाई ये कोचिंग सेंटर कर रहे हैं।
…और भी कई वजहें हैं कोचिंग केन्द्रों के तेजी से एक व्यवस्थित कारोबार में तब्दील होने की। दरअसल संचार सुविधाओं और प्रौद्योगिकी के बेहतर होने की वजह से अब पढ़ने-लिखने के तमाम गैर-पारंपरिक माध्यम भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, जैसे- डिस्टेंस लर्निंग तथा ऑनलाइन एजुकेशन। इस कारण भी कोचिंग सेंटर्स की मांग बढ़ी है, क्योंकि बिना फिजिकली क्लास अटेंड किए पढ़ाई के दौरान जो कमियां महसूस होती हैं, उनकी भरपाई ये कोचिंग केन्द्र कराने का दावा करते हैं। वैसे कोचिंग सेंटर्स के इस तरह शहर-दर-शहर, कस्बे-दर-कस्बे फैलने के पीछे हमारी शिक्षा व्यवस्था में कुछ नीतिगत खामियां हैं। “70 के दशक तक देश में कोचिंग सेंटर नहीं हुआ करते थे या यूं कहें कि इस तरह कोचिंग सेंटर्स का देश में जाल नहीं फैला था। व्यक्तिगत रूप से ही ट्यूशन पढ़ाने वाले कुछ अध्यापक या अपनी पढ़ाई का खर्चा निकालने के लिए कमजोर आय वर्ग के छात्रों का ही यह पेशा हुआ करता था।
लेकिन जब देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में दाखिला पाने वालों की तादाद वहां उपलब्ध सीटों के मुकाबले कई गुना ज्यादा बढ़ गयी, तो दाखिला नीति में एक व्यापक परिवर्तन हुआ और परीक्षाओं के जरिए दाखिला मिलने लगे, जबकि इसके पहले तक महज मेरिट के आधार पर छात्रों को मेडिकल तथा इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन मिल जाते थे। “90 के दशक में जब भारतीय अर्थव्यवस्था का उदारीकरण शुरू हुआ और विकास की रफ्तार भी तेज हुई, तो कई क्षेत्रों में पेशेवरों की मांग अचानक बढ़ने लगी। यही नहीं, पिछले दो दशकों में विभिन्न क्षेत्रों में हुए व्यापक तकनीकी विकास के चलते दर्जनों किस्म के नये कॅरिअर उभर कर सामने आये हैं जिसमें सबसे बड़ा क्षेत्र है कंप्यूटर और इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का। “80 के दशक तक जहां इस क्षेत्र में महज कुछ हजार लोगों को रोजगार हासिल था, वहीं आज प्रत्यक्ष तौर पर 40 लाख से भी ऊपर और अप्रत्यक्ष तौर पर लगभग 1 करोड़ लोगों को आईटी क्षेत्र में रोजगार हासिल है और इसका सालाना का टर्नओवर बढ़कर 40 अरब डॉलर के आसपास पहुंच गया है।
अर्थव्यवस्था में 8 फीसदी से ऊपर की तेजरफ्तार विकास दर ने सभी क्षेत्रों के लिए बड़े पैमाने पर पेशेवरों की मांग पैदा कर दी है। दूसरी तरफ लगभग 25 करोड़ की आबादी वाला भारतीय मध्यवर्ग आज अपनी शिक्षा और कॅरिअर के लिए किसी भी हद तक खर्च करने को तैयार है। इस सबका नतीजा यह निकला है कि पिछले तीन दशकों में तमाम नये तकनीकी और प्रबंधन संस्थानों के खुलने के बावजूद इन संस्थानों में प्रवेश चाहने और पाने वालों की संख्या में भारी अंतर बढ़ता जा रहा है। दो दशक पहले तक जहां देश भर की तकरीबन 8 हजार इंजीनियरिंग सीटों के लिए मुश्किल से 45 से 50 हजार के बीच में छात्र जोर-आजमाइश करते थे, वहीं आज 16 से 20 हजार सरकारी या उच्च प्रतिष्ठा वाले इंजीनियरिंग संस्थानों के लिए 7.5 से 8 लाख के बीच छात्र जोर-आजमाइश करते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक-एक सीट के लिए कितने-कितने उम्मीदवार होते हैं। दरअसल अवसरों की भरमार और इन अवसरों के लिए तैयार कराने वाले संस्थानों के सीमित होने की वजह से ही कोचिंग कारोबार में बेतहाशा उछाल आया है।
देश के कई शहरों की आज पहचान ही कोचिंग केन्द्र के रूप में होने लगी है, जैसे कोटा। कोटा संभवतः देश का अकेला वह शहर है जिसने अपने कोचिंग सेंटर्स की बदौलत न सिर्फ पूरे देश में भौगोलिक पहचान बनायी है बल्कि नये युग के नालंदा के रूप में प्रतिष्ठा हासिल की है। शायद कोटा के अलावा देश में कोई दूसरा ऐसा छोटा शहर नहीं होगा जहां उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्र्चिम यानी देश के हर हिस्से के छात्र महज कोचिंग लेने के लिए यहां आते हों। सुदूर दक्षिण से केरल, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, पूरब में उड़ीसा, बिहार, पश्र्चिम बंगाल, उत्तर पूर्व में मणिपुर, मेघालय, पश्र्चिम से मुंबई, गुजरात, उत्तर से जम्मू, मध्य से जबलपुर, भोपाल यानी देश का कोई ऐसा कोना नहीं है जहां से छात्र कोटा महज कोचिंग लेने के लिए न आते हों। यूं तो देश के बड़े-बड़े विश्र्वविद्यालय जैसे दिल्ली, बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ, मुंबई, चेन्नई और हैदराबाद में भी देश के अलग-अलग हिस्सों से छात्र पढ़ने के लिए आते-जाते हैं, लेकिन कोटा जैसे किसी दूसरे शहर में पूरे देश के छात्र नहीं मिलते। कोटा में मौजूद ये नामचीन कोचिंग सेंटर ही हैं जिन्होंने इसे इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों में दाखिले का गेटवे बना दिया है। कोटा के मशहूर कोचिंग सेंटर्स में कॅरिअर प्वाइंट, इनसाइट दासवानी, चैतन्य कोचिंग संस्थान, एनएन कॅरिअर और बंसल कोचिंग ने पूरे देश में अपना नाम बनाया है।
कोटा के बाद छोटे शहरों में उत्तर प्रदेश के कई शहरों ने अपने आपको कॅरिअर लांचर के रूप में स्थापित किया है। इनमें पायनियर की भूमिका इलाहाबाद की है तो अब इस कतार में वाराणसी, लखनऊ और कानपुर भी पूरी तैयारी के साथ शामिल हो गये हैं। इलाहाबाद में तो यह एक लघु उद्योग ही है। इलाहाबाद में लगभग 250 से ज्यादा देश के विभिन्न हिस्सों के कोचिंग सेंटर्स की शाखाएं और यहां के निजी कोचिंग केन्द्र हैं। इलाहाबाद में बिहार और पूर्वांचल तथा बुंदेलखंड इलाके के 1.25 से 1.50 लाख छात्र विभिन्न स्तरों की पढ़ाई व विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। यहां कोचिंग केन्द्रों के चलते 50 हजार से ज्यादा लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिला हुआ है। अभी एक दशक पहले तक बनारस की गिनती तैयारी कराने वाले प्रमुख शहरों में नहीं होती थी बल्कि बनारस के तमाम छात्र खुद बड़ी परीक्षाओं में सफलता के लिए तैयारी हेतु पड़ोस के इलाहाबाद में ही आते थे।
लेकिन लगभग एक दशक से यह तस्वीर बदल गयी है और बनारस अब गंगा के घाटों के लिए ही नहीं बल्कि पूर्वांचल में खासतौर पर मेडिकल, आईआईटी, एमबीए और एमसीए जैसे शैक्षणिक व व्यावसायिक पाठ्यामों की तैयारी का केन्द्र भी बन गया है। यहां के प्रमुख कोचिंग केन्द्रों में आकाश इंस्टीट्यूट, कॅरिअर लांचर, पीटी एजुकेशन, ग्लोबल और राव आईएएस जैसे संस्थान हैं। इलाहाबाद और बनारस की ही तरह अब बहुत तेजी से कानपुर तथा लखनऊ भी कोचिंग केन्द्रों वाले शहरों के रूप में अपनी पहचान बनाने को बेताब हैं। पिछले कुछ सालों में कानपुर ने इलाहाबाद को भी इस मामले में बड़ी टक्कर दी है और मेडिकल संस्थानों में एडमिशन के लिए उसी तरह एक सफल कोचिंग केन्द्र के रूप में उभर रहा है, जैसे इंजीनियरिंग के लिए कोटा का नाम है। हालांकि कानपुर और इलाहाबाद के ज्यादातर कोचिंग संस्थान वही हैं। ज्यादातर पहले इलाहाबाद में ही थे, जिन्होंने अब कानपुर में अपनी शाखाएं खोल ली हैं। इनमें प्रमुख हैं- आकाश इंस्टीट्यूट, सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज, सचदेवा कोचिंग, कृष्णा कोचिंग, राव आईएएस, विजन, कॅरिअर लांचर, मार्गदर्शन और सिन्हा कोचिंग आदि। लखनऊ कानून की पढ़ाई के लिए पहले से मशहूर रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में यहां सबसे ज्यादा इंस्टीट्यूट खुले हैं एयर होस्टेस और फ्लाइट स्टीबर्ड की तैयारी कराने वाले। अब यहां एमबीए का भी बड़ा ोज हो गया है। लखनऊ में आसपास के तमाम जिलों के कई हजार छात्र बेहतर भविष्य के लिए तैयारी करने आते हैं। इसलिए यहां कोचिंग कारोबार दिन पर दिन समृद्घ हो रहा है।
इन पारंपरिक कोचिंग कारोबार वाले शहरों के अलावा हाल के कुछ सालों में मध्य प्रदेश में इंदौर, पंजाब और हरियाणा में चंडीगढ़ तथा पटियाला और कुछ हद तक अमृतसर, हिमाचल प्रदेश में शिमला, महाराष्ट में पुणे, तमिलनाडु में विशाखापट्टनम, केरल में कोच्चि, बिहार में पटना, कर्नाटक में बेंगलूर और मंगलौर तथा कुछ हद तक बीदर, गुजरात में अहमदाबाद और गांधी नगर, छत्तीसगढ़ में रायपुर, उत्तरांचल में देहरादून और महाराष्ट में ही नासिक व नागपुर नये कोचिंग कारोबार वाले शहरों के रूप में अपनी पहचान बनायी है। एसोचैम के हालिया अध्ययन के मुताबिक कोचिंग सेंटर्स का व्यवस्थित कारोबार 10 हजार करोड़ रुपये से ऊपर है और असंगठित तौर पर फैले इस पूरे उद्योग का आकार तकरीबन 1 लाख करोड़ रुपये का हो सकता है।
हालांकि देश के बड़े कोचिंग सेंटर्स के रूप में अभी भी दिल्ली और चेन्नई जैसे शहरों का कोई मुकाबला नहीं है। लेकिन ये इतने बड़े शहर हैं और यहां इतने बड़े और विविधता वाले उद्योग हैं कि उन सबके बीच कोचिंग एक प्रमुख उद्योग के रूप में अपनी पहचान नहीं बना पाता। जबकि हकीकत यही है कि देश के कोचिंग कारोबार की राजधानी दिल्ली ही है। क्वालिटी के लिहाज से भी और क्वांटिटी के लिहाज से भी।
जिस तरह से दिनोंदिन कोचिंग का यह कारोबार भारी-भरकम आकार ग्रहण करता जा रहा है, उसको देखते हुए बड़े कार्पोरेट खिलाड़ियों का इसकी तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक ही है। वैसे सत्यम कंप्यूटर्स और एनआईआईटी जैसी बड़ी कार्पोरेट कंपनियां पहले से ही एक क्षेत्र विशेष में मौजूद हैं। अब जो खबर है उसके मुताबिक रिलायंस, विप्रो जैसी कंपनियां भी इस क्षेत्र में एक बड़ी रूपरेखा के साथ कूदने जा रही हैं। हालांकि यह अभी शुरुआती दौर की ही खबरें हैं, लेकिन इस उद्योग में भविष्य के लिए जो शानदार संभावनाएं दिख रही हैं, उसके चलते यह तय है कि आज नहीं तो कल कोचिंग कारोबार में बड़े कार्पोरेट खिलाड़ी अवश्य दिखायी देंगे।
– निनाद गौतम
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यहां भी आसान नहीं है दाखिला
भले कोचिंग केन्द्र पैसा कमाने का जरिया हों, भले यह सपना दिखाकर अच्छी-खासी कमाई कर रहे हों, लेकिन यह भी तय है कि प्रतिष्ठित कोचिंग केन्द्रों में हर किसी का दाखिला आसान नहीं है। दिल्ली, कोटा यहां तक कि बनारस और इलाहाबाद में भी कई प्रतिष्ठित कोचिंग सेंटर हैं, जहां हर छात्र एडमिशन पाना चाहता है भले ही इनकी फीस दूसरे सेंटर्स के मुकाबले दोगुनी ही क्यों न हो। लेकिन ये सेंटर सभी छात्रों को एडमिशन नहीं दे पाते। एक तो व्यवस्थागत मजबूरी है और दूसरी बात साख का भी सवाल है। ये प्रतिष्ठित कोचिंग सेंटर अपने यहां अच्छे छात्रों को ही एडमिशन देते हैं ताकि वे सफल हों और इससे इन केन्द्रों की प्रसिद्घि भी बरकरार रहे। इसके लिए ये कोचिंग सेंटर प्रवेश हेतु एंटेंस एग्जाम लेते हैं और उसमें सफल छात्रों को ही एडमिशन देते हैं।
कोचिंग केन्द्रों की फीस अलग-अलग पाठ्यामों, परीक्षाओं और शहरों पर निर्भर करती है। साथ ही कोचिंग सेंटर के नाम और प्रतिष्ठा से भी फीस में फर्क पड़ता है। बहरहाल, दिल्ली में जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कराने वाले औसत कोचिंग सेंटर सालाना 75 से 80 हजार रुपये फीस लेते हैं, वहीं इलाहाबाद में यह फीस 40 हजार, कोटा में 45 से 50 हजार, इंदौर में 30 से 35 हजार और कानपुर तथा लखनऊ में 35 से 40 हजार के बीच रह जाती है। इसी तरह अलग-अलग परीक्षाओं की तैयारी और पाठ्यामों के लिए औसत फीस ली जाती है। सबसे ज्यादा आईआईटी, पीएमटी, सीपीएमटी, एमसीए, एमबीए, सिविल सर्विसेज, यूजीसी नेट, एमएसजी/सीपीओ/ एमएससी/रेलवे तथा हाईस्कूल और इंटरमीडिएट (10जमा2) के बोर्ड एग़्जाम्स की कोचिंग होती है। कोचिंग का कारोबार दिखने में तो सिर्फ परीक्षाओं और शिक्षा से जुड़ा कारोबार ही लगता है, लेकिन हकीकत यह है कि यह बहुउद्देश्यीय और बहुस्तरीय कारोबार की नींव रखता है। जिन भी शहरों में बड़े पैमाने पर कोचिंग केन्द्र खुले हैं, वहां खाने-पीने के सामानों की बिाी, किराये के आवासों की मांग और इसी तरह की दूसरी तमाम जरूरत की चीजों की मांग बढ़ जाती है जिससे कोचिंग के साथ टिफिन बॉक्स और हॉस्टल उद्योग भी तेजी से फलता-फूलता है।
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