भगत सिंह की लोकप्रियता बढ़ती चली गयी थी। आखिर भगत सिंह की लोकप्रियता का रहस्य क्या रहा होगा?
हर देश का एक सामूहिक स्वभाव होता है, रुचि होती है, रुझान होता है, हमारे देश के स्वभाव, रुचि और रुझान के अनुसार हमारे मन में पूजित होता है सन्त, आदर पाता है वीर और लोकप्रिय होता है नेता। सन्त की शक्ति उसका आचरण है, वीर की शक्ति उसका आामण और नेता की शक्ति उसका निर्देशन है। भगतसिंह का मृत्यु के प्रति समर्पण था, सो वे सन्त सिद्घ हुए, शत्रु पर आामण करने में वे वीर सिद्घ हुए और जनता को प्रबुद्घ एवं प्रशिक्षित करने में नेता सिद्घ हुए।
उनकी असाधारण लोकप्रियता का यही रहस्य है। भगतसिंह के व्यक्तित्व को हम एक और दृष्टि से भी देखें। बड़े आदमी शिष्ट को पसन्द करते हैं, युवक वीर को और युवतियां संजीव हंसमुख को। भगतसिंह शिष्ट थे, वीर थे, हंसमुख थे, इसलिए उन्हें व्यापक रूप में उस श्रेणी की लोकप्रियता मिली, जिसमें एक प्रकार का देवत्व आ जाता है या जिसे हम चालू भाषा में हीरो शब्द से प्रकट करते हैं।
एक प्रश्र्न्न बार-बार यह भी उठाया जाता है कि समस्त वीरों में भगतसिंह को बलिदान का प्रतीक क्यों माना जाता है? महान वीरों की पंक्ति में वे ही क्यों सबसे अधिक सम्मान, सबसे अधिक स्नेह और सबसे अधिक प्रेम के पात्र समझते जाते हैं?
दूसरे क्रान्तिकारियों की अपेक्षा भगतसिंह ने एक असाधारण रीति से इस बात की घोषणा की कि भारत को गुलामी के विरुद्घ विद्रोह करने का अधिकार प्राप्त है। उनका शौर्य एवं बलिदान हमारे लिए एक प्रेरक उदाहरण है। दीर्घकाल से पराधीन हमारा राष्ट जिसमें राष्टीय सत्व शेष नहीं रह गया था, ब्रिटिश साम्राज्य से बुरी तरह भयभीत था। भगतसिंह का नाम सुनते ही हृदय में बिजली-सी कौंध जाती है, कुछ पलों के लिए मानवीय दुर्बलताएं दूर हो जाती हैं। आखिर राष्ट के लिए शूर-वीरता के ऐसे उदाहरण प्रिय क्यों ना हों। भगतसिंह एक वीर-पुरुष थे और नई समाज-व्यवस्था के स्वप्न दृष्टा थे।
स्वामी विवेकानन्द 39 वर्ष की उम्र में अपना काम कर गये थे और महापुरुष शंकराचार्य 30 वर्ष की उम्र में। लेकिन भगतसिंह सिर्फ 23 वर्ष की उम्र में ही दुश्मन को बेहाल और देश को निहाल कर गये। इतिहास का एक पृष्ठ लिख गये, इतिहास का एक पृष्ठ हो गये।
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