भये प्रगट कृपाला

महाराज दशरथ द्वारा किया गया पुत्रकामेष्टि यज्ञ सफल हुआ। स्वर्ण पात्र में दिव्य हबि (पायस) लेकर अग्नि देव प्रकट हुए। महाराज दशरथ ने पायस को रानियों में उनकी योग्यतानुसार न्यायपूर्वक वितरित कर दिया। पायस का प्रसाद खाते ही रानियां गर्भवती हो गयीं। मानो इस प्रकार गर्भाधान की प्रिाया सम्पन्न हो गयी हो –

एहि बिधि गर्भ सहित सब नारी।

भई हृदय हरषित सुख भारी।।

तुलसी दास जी ने लिखा है- गर्भाधान की अनुभूति होने से रानियों को हर्ष है, दशरथजी हर्षित हैं कि उन्हें पुत्र (पुत्रों) की प्राप्ति होगी। राजा-रानी को हर्षित देखकर स्वजन-परिजन, प्रजा आनन्दमग्न हैं। देवता हर्षित हैं कि शीघ्र ही ब्रह्म अवतरित होकर उनके कष्ट दूर करेंगे। दशानन के आतंक से धराधाम को मुक्ति मिल जायेगी। सर्वत्र हर्षोल्लास छाया है। सब अपने-अपने कारणों से अनुपम बालकों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

सुख जुत कछुक काल चलि गयऊ।

गोस्वामी जी काल विशेष के प्रति सावधान रहते हैं। प्रभु कितने दिन, माह, गर्भ में रहे, इसका स्पष्ट उल्लेख न कर मात्र इतना कहकर छुट्टी पा लेते हैं – कछुक काल। “यह कछुक’ काल 8 माह, 10 माह, 12 माह कुछ भी हो सकता है। हॉं, इतना अवश्य है कि बालक-बालिका के जन्म का जो अनुमानित समय होता है, वह पूरा हो चुका था।

ब्रह्मा की सृष्टि में ब्रह्म को अवतरित होना है। ब्रह्म, ब्रह्मा की माया से परे होता है – “”माया गुन गो पार” क्योंकि वह स्वयं मायापति है। सांसारिक जीवों की रचना में तो ब्रह्मा जी समर्थ हैं, पर उस ब्रह्म की रचना वे कैसे कर सकते हैं, जिसने स्वयं उनकी रचना की है। तभी गोस्वामी जी को लिखना पड़ा – निज इच्छित निर्मित तनु। अब यह निज इच्छित निर्मित तनु जब चाहेगा, अपनी इच्छा से ही इस धराधाम (ब्रह्मा की सृष्टि) में आयेगा (अवतरित होगा)। ब्रह्मा जी भी विवश हैं, वे भी प्रतीक्षा कर रहे हैं। कैसे कहें प्रभु। हम सभी आपके शुभागमन की, दर्शन की बड़ी अधीरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। अतः अब अधिक विलम्ब न करें।

“”अहंकार सिव बुद्घि अज” – ब्रह्माजी बुद्घि के देवता हैं। भाग्य विधाता हैं। रात-दिन, ग्रह-नक्षत्र की गणना कर देखते रहते हैं, कोई न कोई दोष प्रकट हो जाता था। विचार कीजिये – जब दोष प्रकट हो रहे हों, तब निर्दोष ब्रह्म कैसे प्रकट होता है। किन्तु एक दिन शास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी को, ब्रह्मा जी ने जैसे ही गणना प्रारंभ की, चमत्कृत हो गये, सब कुछ ब्रह्म के प्राकट्य के अनुकूल था। “चराचर’ प्रभु के स्वागत के लिए आतुर-प्रस्तुत था। चर की (चैतन्य) प्रसन्नता तो ब्रह्माजी प्रतिदिन-प्रतिक्षण ब्रह्मलोक से देखते रहते थे, पर आज (नवमी) विलक्षण दृश्य था- चर से अधिक अचर (जड़) प्रफुल्लित हो रहे थे। पंच तत्व “छिति-जल-पावक – गगन-समीर’ अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार प्रभु आगमन की सूचना दे रहे थे। “सो अक्सर बिरंचि जब जाना’ – ब्रह्माजी सावधान हो गये। एक बार फिर से अपनी सृष्टि पर दृष्टि डाली, सब कुछ ब्रह्म के प्राकट्य के अनुकूल था। गोस्वामी जी के शब्दों में इस अनुकूलता का आनन्द लें –

जोग लगन ग्रह बार तिथि,

सकल भये अनुकूल।

“चर’ अरु “अचर’ हर्षजुत,

राम जनम सुख मूल।।

नौमी तिथि मधुमास पुनीता।

सुकल पच्छ अभिजित हरि प्रीता।।

चर, चैतन्य की प्रसन्नता, ज्योतिष की गणना तो समझी जा सकती है अर्थात् सब कुछ प्रभु प्राकट्य के अनुकूल था, पर अचर-(जड़), ने प्रभु का स्वागत किस प्रकार अपनी प्रकृति के अनुरूप किया, वही दर्शनीय है।

अग्नि तत्व – मध्य दिवस अति सीत न घामा पावन काल लोक विश्रामा। सुखद समशोतोष्ण वातावरण उत्पन्न हो गया। इसके बाद पवन देव की सेवा प्रारंभ हुई।

वायुतत्व – सीतल मंद सुरभि बह बाऊ। हरषित सुर संतन मन चाऊ।।

अर्थात् ऐसी पवन, जो भक्ति-भाव उत्पन्न करे न कि काम – भाव। समशीतोष्ण वातावरण के साथ-साथ शीतल-मंद-सुगंधित पवन। पवन सुगंधित कैसे हो गयी? बोले – यह सेवा पृथ्वी तत्व कर रही है।

बिनु महि गंध कि पावइ कोई

पृथ्वी तत्व – बन कुसुमित – (गिरिगन मनियारा)। मंदता, तीव्रता पवन के प्राकृतिक गुण हैं। पवन मंद थी, सुरभि-सुगंध पृथ्वी से प्राप्त हो गयी। आइये देखें, पवन शीतल कैसे हुई? जल तत्व के कारण।

जल तत्व – स्नवहिं सकल सरिता ऽ मृत धारा।

आज सरिताओं में जल के स्थान पर अमृत प्रवाह हो रहा है। अभी गगन तत्व की सेवा शेष है। गगन ने क्या किया?

गगन तत्व – गगन बिमल (संकुल सुर जूथा)

आकाश निर्मल हो गया – धरती से अम्बर तक एक ही दृश्य दृष्टिगोचर हो रहा था। नीलाम्बर मानो नील सरोरुह नीलमनि नील नीरधर स्याम-राम का स्वागत कर रहा हो।

सो अवसर बिरंचि जब जाना – बुद्घिमान ब्रह्मा ने देवताओं को संकेत किया। देवगण तो कब से इस आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे। आदेश प्राप्त होते ही स्तुति-प्रार्थना, प्रभु के गुणगान प्रारंभ हो गये। पुष्प-वृष्टि प्रारंभ हो गयी। ब्रह्माजी ने अन्तर्यामी की स्तुति-वन्दना कर संकेत कर दिया – प्रभु! ब्रह्मा की सृष्टि में आपका स्वागत है। हम लोग अपने-अपने धाम जा रहे हैं, आप दशरथ के धाम पधारो। गोस्वामी जी की विलक्षण काव्य रचना देखिये। लिखते हैं –

सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम।

ब्रह्मादि देवगण प्रभु की स्तुति-प्रार्थना कर अपने-अपने धाम को चल पड़े। उधर देवता गये, इधर प्रभु इस धराधाम में प्रकट हो गये। एक क्षण का भी विलम्ब नहीं हुआ। कौन प्रकटे? जग निवास। कहां प्रकटे? अवध के महल के एक कक्ष में –

जग निवास प्रभु प्रकटे, अखिल लोक बिश्राम।

कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड का स्वामी माता कौशल्या के गर्भ से निकलकर उनके समक्ष चतुर्भुज रूप में प्रकट हो गया – भए प्रगट कृपाला।

– अश्र्विनी कुमार अवस्थी

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