अगर मीडिया की सुर्खियों और उसके विश्लेषणों को देश का मन टटोलने का जरिया मानें तो मानना पड़ेगा कि भारत का मून-मिशन यानी चन्द्रयान अभियान दुनिया के अलग-अलग देशों में चर्चा, चिंता और चौंकने का सबब बन चुका है।
शुरूआत अपने पड़ोस से ही करते हैं। भारत के चंद्रयान अभियान को लेकर पाकिस्तान के सभी प्रमुख अखबारों और टीवी चैनलों में प्रमुखता से न सिर्फ इसकी खबर छपी व प्रमुखता से प्राइम टाइम में कवर किया गया बल्कि इसपर विभिन्न कोणों से विस्तृत विश्लेषण भी किये गए हैं। यह कहना गलत न होगा कि भारत की इस वैज्ञानिक कामयाबी पर पाकिस्तानी मीडिया चकित हुई है और अपनी तरफ से सरकार को चौंकन्ना होने की सलाह दी है। “डॉन’ और “दि नेशन’ जैसे पाकिस्तान के प्रमुख अंग्रेजी दैनिकों ने भारत की इस उपलब्धि पर चकित होते हुए पाकिस्तान की सरकार को सुझावों की एक लम्बी फेहरिस्त सौंपी है। डॉन ने विस्तार से चन्द्रयान-1 की कामयाब उड़ान की खबर छापते हुए पाकिस्तानी सरकार को आगाह किया है कि अब वह नींद से जाग जाए वरना हिन्दुस्तान विज्ञान और तकनीक के मामले में इतना आगे निकल जायेगा कि पाकिस्तान घुटनों के बल बैठा, देखता रह जायेगा। दि नेशन ने भी कुछ ऐसी ही पाक सरकार को नींद से जगाने वाली सलाह दी है। दि नेशन के मुताबिक भारत अंतरिक्ष होड़ में श्रेष्ठता कायम करके पाकिस्तान से सैन्य होड़ में भी बहुत आगे निकल जायेगा। इसलिए पाक सरकार को जल्दी से जल्दी अंतरिक्ष के क्षेत्र में हिन्दुस्तान की इस कामयाबी की काट के लिए रास्ता तय करना होगा।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत के चन्द्रयान-1 अभियान के सफलतापूर्वक शुरू होने पर दुनिया के ज्यादातर देशों ने हिन्दुस्तान को बधाइयां दी हैं। अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस, चीन और जापान सहित दुनिया के सभी विज्ञान व तकनीकी के मामले में सशक्त देशों ने हिन्दुस्तान की इस कामयाबी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। लेकिन इस प्रशंसा के साथ ही कई देशों ने नींद से जागते हुए भारत के इस अभियान को सबक सिखाने वाला भी माना है। अमेरिका में राष्टपति पद के सशक्त दावेदार डेमोोटिक पार्टी के उम्मीदवार बराक ओबामा ने एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि अमेरिका 4 दशक पहले चांद फतह कर चुका है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिस तरह से भारत ने अपने कामयाब मिशन की शुरूआत की है, उससे यह गौर करने का विषय है कि कहीं अमेरिका चांद के बारे में अपनी जानकारियों और भविष्य की योजनाओं को लेकर पिछड़ तो नहीं जायेगा। उन्होंने यह भी अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि राष्टपति बनने के बाद वह कोशिश करेंगे कि चांद मिशन को फिर से शुरू किया जाए।
चीन और जापान ने भी भारत को कामयाब चांद मिशन के लिए बधाइयां तो दी हैं, साथ ही साथ उन्हें भारत की इस कामयाबी से चिंता भी हुई है और एक तरह से चौंकते हुए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वे अपनी योजनाओं को नये सिरे से व्यवस्थित करने की सोचने लगे हैं। वास्तव में भारत की कामयाबी भरी मिशन मून की शुरूआत ने कई दोस्तों-दुश्मनों और प्रतिद्वंदियों को चौंका दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत ने अभी तक ऐसी कोई उपलब्धि हासिल नहीं की है जैसी उपलब्धि दुनिया में इससे पहले किसी और ने न हासिल की हो और न ही अभी तक हमारा मून-मिशन पूरा ही हुआ है। इस मिशन की, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक, हमने आधी कामयाबी भी हासिल नहीं की है; बावजूद इसके हमने अपनी इस सफल शुरूआत से दुनिया का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के साथ-साथ कई देशों को चौंकाया है और कइयों की छाती पर सांप लोटने के हालात बना दिये हैं। इसकी कई साफ वजहें हैं।
सबसे पहली बात तो भारत का यह चांद मिशन अब तक का दुनिया का सबसे सस्ता और सर्वाधिक सटीक शुरूआत करने वाला मिशन है। जापान ने जहां इसी तरह के अपने मिशन हेतु 48 करोड़ रुपये खर्च किये थे, चीन ने 19 करोड़ रुपये, यूरोप ने 14 करोड़ 50 लाख रुपये की धनराशि खर्च की, वहीं भारत इन सबकी तुलना में महज 8 करोड़ रुपये की लागत में ही चंद्रयान-1 मिशन को शुरू करने में कामयाब रहा है। रूस और अमेरिका के चांद अभियानों की जान-बूझकर यहां लागत पर चर्चा नहीं की जा रही है। क्योंकि इन दोनों देशों ने तो चांद पर पहुंचने की न सिर्फ शुरूआती जद्दोजहद की है बल्कि इसकी कल्पना तक में निवेश किया है। इस लिहाज से इनकी कीमत की किसी दूसरे के साथ तुलना करना बेईमानी होगी।
लेकिन महज चंद्रयान-1 की लागत कम होना ही प्रतिद्वंदियों और शुभचिंतकों की दिलचस्पी का कारण नहीं है। इसकी कई दूसरी वजहें भी हैं। इंसान चांद पर पहुंचने के बाद लगता है, चांद को लेकर अपनी उत्तेजना और महत्वाकांक्षा खो चुका है। अगर ऐसा न होता तो लगभग 4 दशक पहले चांद पर पहुंचने के बावजूद इंसान अभी तक चांद की वास्तविकता को लेकर इस कदर ऊहा-पोह की स्थिति में, इस तरह भ्रम की स्थिति में नहीं रहता। इसे चाहे चांद पर पहुंचने के बाद इंसान की जिज्ञासा और महत्वाकांक्षा का शिथिल होना कहें या कुछ और, लेकिन हकीकत यही है कि पिछले 3 दशकों से यह तो कहा जा रहा है कि चांद पर बस्तियां बनेंगी, चांद पर बड़ी-बड़ी ब्रह्मांडीय प्रयोगशालाएं बनेंगी। लेकिन अभी तक किसी भी वैज्ञानिक के पास इस बुनियादी सवाल का जवाब नहीं है कि यह सब होगा तो कैसे? अभी तक वैज्ञानिक यह भी नहीं जानते कि चांद पर पानी या बर्फ है भी या नहीं।
कुल मिलाकर चांद के बारे में हमें कल्पनाएं करने की भले कितनी ही छूट हो लेकिन हकीकत यही है कि इन कल्पनाओं को अमली-जामा पहनाने के लिए हमारे पास ठोस जानकारियों का अभाव है। अगर हमारा मून मिशन चंद्रयान-1 अपनी योजनाओं के हिसाब से सफल रहता है तो यह पहली बार हमें यानी समुची दुनिया को चांद पर बस्ती बनाने के लिए ठोस-आधारभूत जानकारियां उपलब्ध करायेगा। अगर चांद पर जमी बर्फ या पानी के चिन्ह मिलते हैं तो पहली बार इस जानकारी को वास्तव में स्पष्ट तरीके से बताने का श्रेय भारत के चंद्रयान-1 अभियान को ही मिलेगा। क्योंकि चंद्रयान-1 का जो गंतव्य है वह सैकल्टन ोटर के अंदर जमी हुई बर्फ की ठोस जानकारी हासिल करना है। अभी तक किसी भी मिशन का इतना सटीक लक्ष्य नहीं रहा।
कुल मिलाकर भारत के चंद्रयान-1 अभियान ने पूरी दुनिया को चौंकाया है। बस यह देखने की बात है कि यह चौंकाहट दूसरे देशों को सकारात्मक रूप में सिाय करती है या ईर्ष्या और तनाव का सबब बनती है। अगर भारत के इस चंद्रयान अभियान से दुनिया सकारात्मक रूप से प्रेरित होती है और दुनिया भर के विज्ञान कार्यामों को एक नई दिशा और शुरूआत मिलती है तो यह मानवता के हित में होगा। यह प्रेरणा दुनिया को सफलता के शिखर तक पहुंचा देगी। लेकिन अगर प्रेरणा हासिल करने की बजाय इससे कुछ देश चिंतित और ईर्ष्याग्रस्त हुए तो एक बेवजह की होड़ शुरू हो जायेगी जो धन और विद्या दोनों की ही बर्बादी का कारण बनेगी।
लोकमित्र
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