वक्त गुजरता है और चेहरे से जवानी छीन लेता है। फिर आज का तनावपूर्ण जीवन भी बुढ़ापे को जल्दी आमंत्रित कर देता है। इसलिए उम्र प्रबंधन की जानकारी आवश्यक हो जाती है। इस भूमिका के साथ हम अपनी बात का सिलसिला शुरू करते हैं। त्वचा में बुढ़ापा आहिस्ता-आहिस्ता आता है, जो आखिरकार दिखायी देने लगता है और जो बातें बुढ़ापे से जोड़ी जाती हैं, वह भी नजर आने लगती हैं। त्वचा पर बुढ़ापा दोनों अंदरूनी व बाहर तत्वों के कारण आता है।
अंदरूनी तत्वों में शामिल हैं-
- त्वचा की गुणवत्ता में परिवर्तन
- त्वचा की निचली परत का क्षय होना
- त्वचा के खिंचाव में कमी आना
- ग्रेविटी त्वचा के फोल्ड्स को नीचे की ओर खींचती है
- रजोनिवृत्ति के दौरान हार्मोनल परिवर्तन
जबकि बाहरी तत्वों में शामिल है –
- धूप से नुकसान। अल्ट्रावायलेट किरणों से कुछ परिवर्तन आते हैं जैसे चित्ती, सनस्पॉट, वेन्स का चौड़ा होना और लेन्टी जीन्स। धूप की वजह से कोलजिन और इलास्टिन नामक प्रोटीन भी नष्ट हो जाते हैं जिनकी वजह से त्वचा में लचीलापन आता है।
- बहुत ज्यादा गर्मी या बहुत ज्यादा ठंड भी त्वचा को प्रभावित करती है।
- मेकअप के कुछ रसायन भी हानिकारक होते हैं।
- धूम्रपान करने से त्वचा का सर्कुलेशन कम हो जाता है जिससे झुर्रियां, त्वचा का लटकना और आयु संबंधी पिगमेंटेशन तेजी से आ जाते हैं।
बुढ़ापे का अर्थ है आत्म-प्रबंधन की शक्ति का पतन, रोगों का खतरा बढ़ना और क्षमता में कमी आना। बुढ़ापे की आयु आधुनिक थ्यौरियों के अन्तर्गत दो श्रेणियों में आती हैं, जो दर्शन के एतबार से देखी जायें तो विपरीत दिशाओं से शुरू होती हैं।
- एक थ्यौरी के अनुसार बुढ़ापा एक नियोजित प्रिाया है जिसे जीन्स ने प्रोग्राम किया हुआ है।
- दूसरी थ्यौरी के अनुसार सोमेटिक कोशिकाओं में जब जेनेटिक जानकारी के दोहराव में ठहरने और बढ़ने की गड़बड़ होने लगती है तो बुढ़ापा आ जाता है।
हमारे सामाजिक और सेक्सुअल संपर्कों में त्वचा की मुख्य भूमिका होती है। इसलिए आवश्यक हो जाता है कि ऐसी त्वचा और बाल हों जो अच्छे लगें, अच्छे महसूस हों और उनमें से अच्छी गंध आये। बूढ़ी त्वचा के बहुत स्पष्ट लक्षण है क्षय, झुर्रियां, लटकना, खिंचाव का कम होना, सूखापन, पीलापन, विभिन्न किस्म के धब्बे, सनस्पॉट आदि और कम व सफेद बाल।
त्वचा की दो परतें होती हैं एपिडर्मिस और डर्मिस। उम्र के साथ डर्मिस अधिक या कम हो जाती है। इसका अर्थ यह हुआ कि त्वचा के प्रति इकाई क्षेत्र में उम्र के साथ कोलाजिन कम हो जाता है। साथ ही बहुत सी कोशिकाओं की संख्या व साइज में भी कमी आती है और फाइब्रोब्लास्ट में भी। कोलाजिन के बंडल टूटकर दिग्भ्रमित हो जाते हैं और इलास्टिन फाइबर में निरंतर कमी आती रहती है और उम्र के साथ नष्ट होने लगते हैं।
एपिडर्मिस भी प्रभावित होती है। वह पतली हो जाती है और कोशिकाएं एक के बाद एक पंक्तिबद्ध हो जाती हैं। उम्र के साथ एपिडर्मल रिपेयर और जख्म भरने के दर में कमी आ जाती है, साथ ही त्वचा का सर्कुलेशन भी कम हो जाता है।
बुढ़ापे की त्वचा में पिगमैंटरी बदलाव भी आते हैं जिनमें चेहरे पर काले धब्बे, मेलेस्मा, पीले या ब्राउन स्पॉट (जिन्हें लिवर स्पॉट कहते हैं।) उभर जाते हैं। ये हाथों के पिछले हिस्से पर भी विकसित हो जाते हैं और चेहरे के एक्सपोज्ड हिस्से पर भी। गोरे लोगों में यह विशेष रूप से दिखायी देते हैं। यह देखा गया है कि पुरुषों में यह धब्बे महिलाओं से ज्यादा पड़ते हैं।
पहले लगभग 50 वर्ष की आयु के आसपास बालों का सफेद होना शुरू होता था, लेकिन आजकल कम उम्र में ही लोगों के बाल सफेद हो जाते हैं। रसायनों के इस्तेमाल, जैसे- हेयर डाई, स्प्रे, मौस, जैल और हेयर कलर ने बालों को सफेद करने में तेजी ला दी है।
उम्र के साथ सिर पर हेयर फोलिकल्स का घनत्व धीरे-धीरे कम होने लगता है। साथ ही फोलिकल्स में लम्बे बाल विकसित करने की क्षमता में भी कमी आती है, खासकर पुरुषों में। अक्सर देखा गया है कि उम्र के साथ महिलाओं में चिन और चेहरे के साइड पर अतिरिक्त बाल आने लगते हैं, जो कि मोनोपोज के कारण आये हार्मोनल परिवर्तन की वजह होती है।
– नीलोफर
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