देश में भ्रष्टाचार पर कराए गए एक सर्वेक्षण में यह तथ्य खुलकर आया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और असम सहित सात राज्यों में भ्रष्टाचार का स्तर चिन्ताजनक है। यह सर्वे उपराष्टपति हामिद अंसारी द्वारा दिल्ली में जारी किया गया, जो “द टांसपेरेन्सी इंटरनेशनल इंडिया’ तथा “सेंटर फॉर मैनेजमेंट स्टडीज’ द्वारा कराया गया था। इससे पहले विश्र्व भर में भारत की भ्रष्टाचार के संबंध में स्थिति का खुलासा भी हुआ था, जिसमें भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार ने बढ़त बनाई है, यानी पहले से अधिक भ्रष्टाचार लक्षित हुआ है।
कहना गलत न होगा कि भ्रष्टाचार के संबंध में जितने भी सर्वे भारत में कराए जाते हैं, वे दिनोंदिन बढ़ रहे भ्रष्टाचार की तुलना में बौने ही प्रतीत होने लगते हैं, क्योंकि भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं। किसी भी क्षेत्र में जाइए, वहीं भ्रष्टाचार जनमानस की योग्यता एवं कौशल को मुंह चिढ़ाता हुआ दिखाई देता है। अधिकांश विभागों में भ्रष्टाचार इतना सिर चढ़ कर बोल रहा है कि भ्रष्टाचार को सामान्य कामकाज से इतर परिभाषित करना भी कठिन है, क्योंकि वह समूची व्यवस्था व कार्यप्रणाली का अभिन्न अंग बन चुका है। देश में जनमानस को लाभ पहुँचाने के लिए प्रारंभ की जाने वाली कल्याणकारी योजनाएं हों अथवा अन्य योजनाएं, चहुँओर भ्रष्टाचार के पांव फैले हुए प्रतीत होते हैं। बिना भ्रष्टाचार के योजनाएं कारगर नहीं हो सकतीं, जिसकी जानकारी हर किसी को है। भ्रष्टाचार को समय-समय पर राजनीति के शीर्ष द्वारा भी स्वीकार किया गया है किन्तु उससे लड़ने का किंचित प्रयास किसी के द्वारा भी सही तरह से नहीं किया गया।
जिसका दुष्परिणाम यही हुआ कि भ्रष्टाचार का सफाया नहीं हो सका तथा भ्रष्टाचार विश्र्व भर में भारत की पहचान बनकर अपना अस्तित्व दर्शा रहा है। देश के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार के संबंध में उक्त सर्वे को नकारा नहीं जा सकता। मात्र समाचार-पत्रों में लम्बी-चौड़ी दलीलें देकर तथा शासन को भ्रष्टाचार-मुक्त का नारा देकर किस प्रकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा रहा है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। उत्तर प्रदेश, बिहार और असम का भ्रष्टाचार तो जगजाहिर है ही, किन्तु अन्य प्रदेश भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं, क्योंकि जब व्यक्तियों को भ्रष्टाचार की कृपा से भरपेट खाने और अघाने को मिले, तब भ्रष्टाचार से तौबा कैसे की जा सकती है? निःसंदेह जब तक भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सच्चे प्रयास नहीं किए जाएंगे तब तक इस बुराई को मिटाना असंभव ही है।
– डॉ. सुधाकर आशावादी
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