08-08-08। यह तारीख। पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से चीन में रोमांच का पर्याय बनी थी। क्षेत्र कोई हो, बात कोई हो, हर कोई अपने आपको इस तारीख के साथ किसी न किसी तरह से जोड़ने की हर संभव कोशिश में लगा था। ऐसा होना स्वाभाविक था। चीन के लिए यह ऐतिहासिक तारीख साबित होने जा रही थी। इस दिन बीजिंग ओलंपिक खेलों की शुरूआत होनी थी। जिसे चीन ने अपनी आन, बान और शान का प्रतीक बना लिया था।
यही वजह है कि हर चीनी किसी न किसी रूप में इस तारीख के साथ अपनी जिंदगी का कोई न कोई यादगार लम्हा जोड़ने के लिए बेकरार था ताकि जब भी बीजिंग ओलंपिक की याद की जाए, तो उन लम्हों की बरबस याद आए जाए या उन लम्हों को याद किया जाए तो बीजिंग ओलंपिक याद आ जाए। डेढ़ लाख से ज्यादा चीनी युवकों ने इस दिन अपने आपको शादी के बंधन में बंधने के लिए नामांकन करा रखा था।
लेकिन यह सब तो ज्यादा हैरानी वाली कोशिशें नहीं थीं। असली कोशिश थी, इस दिन अपने बच्चे के पैदा होने की तारीख निश्र्चित करना। अगर चीन के सरकारी मेडिकल बुलेटिन की बात मानें, तो 8 अगस्त को चीन में 2 लाख से ज्यादा बच्चे पैदा हुए। दरअसल इन दम्पत्तियों ने पहले से ही अपने बच्चों के पैदा होने की इस तरह से प्रोग्रामिंग कर ली थी कि वह इस दिन पैदा हों। मनचाही बर्थ-डेट लेना अब एक आम चलन बन चुका है। सिर्फ चीन में ही नहीं, पूरी दुनिया में यह चलन जोर पकड़ रहा है। भारत में भी अब इसका चलन जोर पकड़ रहा है। हजारों युवा दंपत्ति अपने बच्चे के पैदा होने को किसी न किसी यादगार दिन, तारीख या समारोह से जोड़ना चाहते हैं। यह भी एक किस्म का फन हो गया है, जिसे युवा दंपत्ति ज्यादा से ज्यादा इंज्वॉय करना चाहते हैं। इसलिए वह मनचाही तारीखों में बच्चा पैदा करने की जुगत में डॉक्टरों से मिलकर इसकी व्यवस्था करते रहते हैं।
भारत में यह चलन एक और नये रूझान की तरफ संकेत करता है। पिछले कुछ सालों में घर, दुकान, नया कारोबार, कोई खास यात्रा और शादी की तरह लोग अब बच्चे की डिलिवरी को भी किसी खास या शुभ-लगन में चाहते हैं। इस वजह से बच्चों की निश्र्चित तारीख को डिलिवरी के लिए पहले से ही योजना बनाई जा रही है। हाल के एक सर्वे से पता चला कि कम से कम 35 से 40 फीसदी नये उम्र के दंपत्ति ऐसा चाहते हैं। लेकिन ऐसा चाहने वाले ज्यादातर दंपत्ति बड़े शहरों यानी महानगरों में ही रह रहे हैं। कुछ मझोले शहरों में भी हैं, जो ऐसा चाहते हैं। लेकिन अभी गांवों या कस्बों तक इस तरह का रूझान नहीं पहुंचा। एक और बात भी देखने में आयी है कि आमतौर पर व्हाइट कॉलर या ब्ल्यू कॉलर जॉब वाले उनमें भी विशेष तौर पर आईटी और दूसरे सर्विस सेक्टर से जुड़े दंपत्ति इस तरह की तमन्ना ज्यादा पालते हैं।
सवाल है, यह चलन आया कहां से और भारत में इसका रंग-ढंग कैसा है? पूरी दुनिया में यह चलन वास्तव में अमेरिका से आया है। वहां पिछली सदी के 80 और 90 के दशकों में देशभक्ति का जज्बा दिखाने के लिए तमाम युवा दंपत्ति 4 जुलाई के दिन अपनी डिलिवरी की प्रोग्रामिंग करते थे। 4 जुलाई अमेरिका का स्वतंत्रता-दिवस है और युवा दंपत्ति इस दिन अपने बच्चे पैदा करके अपने आपको देशभक्त दर्शाने की कोशिश करते थे। धीरे-धीरे अमेरिका से यह चलन यूरोप पहुंचा और फिर वहां से पूरी दुनिया में फैला।
भारत में यह पिछले कुछ सालों से जोर पकड़ रहा है, लेकिन भारत में पहुंचते-पहुंचते यह फैशन अपने कई आयाम ग्रहण कर चुका है। जैसे हमारे यहां मनचाही तारीखों, दिनों और नक्षत्रों में बच्चे की पैदाइश के पीछे सिर्फ अपनी खास खुशी जोड़ना भर नहीं है, बल्कि ज्योतिषीय आंकलन और धार्मिक मुहूर्त भी इसके पीछे एक महत्वपूर्ण वजह है। हमारे यहां ज्यादातर मनचाही बर्थ-डेट पर पैदा होने वाले बच्चे किसी शुभ धार्मिक दिन और ज्योतिषीय लग्न गणना के बायस होते हैं। हमारे यहां आमतौर पर जन्माष्टमी, शिवरात्रि, राम नवमी, दीपावली या शुभ ग्रह-नक्षत्रों पर बच्चों को पैदा करवाने की ख्वाहिश देखी जा रही है। इसके अलावा शादी की सालगिरह, अपना जन्मदिन जैसी तिथियां भी इसके लिए प्राथमिकता में मानी जाती हैं।
स्त्री रोग विशेषज्ञों के मुताबिक मां के गर्भ में 36 हफ्ते तक रहने वाले बच्चे का विकास परिपूर्ण हो जाता है यानी 36 हफ्ते के बाद बच्चे का जन्म किसी भी मनचाही तारीख को कराया जा सकता है। इसमें किसी तरह की बड़ी मेडिकल समस्या नहीं आती। लेकिन सीजेरियन केसों में तो यह आसान होता है, पर नॉर्मल डिलिवरी में थोड़ी आशंका रहती है। कई बार यह कोशिश असफल भी हो जाती है, लेकिन अगर मामला सीजेरियन हो तब कोई दिक्कत नहीं है।
आमतौर पर माना जाता है कि मूल नक्षत्र पर पैदा हुआ बच्चा पिता पर भारी पड़ता है। इसलिए जब बच्चा मूल नक्षत्र पर पैदा होता है तो काफी चिंता जताई जाती है। लेकिन अब जब विज्ञान ने समय से आगे-पीछे बच्चे की पैदाइश को संभव बना दिया है तो लोग मूल नक्षत्र से बचना चाहते हैं। यहां तक कि अगर मूल नक्षत्र से पहले बच्चा पैदा होना न संभव हुआ तो लोग डिलिवरी की तारीख आगे बढ़वा देते हैं, पर मूल नक्षत्र से बचते हैं।
सीजेरियन डिलिवरी होनी हो तब तो डॉक्टरों के लिए ज्यादा प्लानिंग की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन जब डिलिवरी नॉर्मल होनी हो तो थोड़ी अनिश्र्चितता रहती है। लेकिन यह अनिश्र्चितता बामुश्किल 5 से 10 फीसदी होती है। क्योंकि 36 हफ्तों के बाद नॉर्मल डिलिवरी को भी कुछ निश्र्चित दवाइयों व इंजेक्शन के प्रयोग से निर्देशित किया जा सकता है। हालांकि डॉक्टरों का सुझाव यही होता है कि अगर सब कुछ नॉर्मल हो तो डिलिवरी के साथ छेड़छाड़ करना स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं है, यह एक किस्म का खतरा है। इसलिए इससे बचना चाहिए। लेकिन जिन्हें किसी खास तारीख का जुनून होता है तो वह इस तरह के खतरों से नहीं डरते हैं।
– राजकुमार दिनकर
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