जिस मनु ने समाज में वर्ण व्यवस्था के बीज रोपे थे और जिस मनु को वर्ण व्यवस्था की स्थापना के कारण शताब्दियों से कोसा जा रहा है वह मनु अभी मरा नहीं है। बल्कि सच्चाई तो यह है कि वह मनु घर-घर में है। मनु ने तो अपने युग के अनुरूप कर्म के आधार पर समाज को वर्णों में बांटा था, पर उन्हें आज भी इस बंटवारे के बदले में करोड़ों लोगों की गालियां सुननी पड़ रही हैं। राजनेताओं से लेकर आम आदमी तक मनु को गाली दे-दे कर घायल करने में जुटा है। दरअसल मनु को गाली देना सबसे आसान काम है। जो आदमी गाली दे रहा है, वह यह भूल ही गया है कि वह स्वयं भी मनु ही है। मनु ने तो समय और समाज की ़जरूरत के हिसाब से समाज को वर्णों में बांटा था, पर घर-घर में पुरुषों ने अपनी सुविधा के कायदे से काम को बांट रखा है। इस बंटवारे की तरफ उसका आज तक ध्यान नहीं गया है। जिन कामों को नौकर, दास, आया, कामवाली बाई करती आई हैं, उसने वे सारे काम औरत के खाते में डाल दिये हैं। जिन कामों को समाज ने शूद्र कार्यों की श्रेणी में गिना, वे सारे औरत के कंधे पर लादकर वह स्वयं “सवर्ण’ बना रहा। मसलन, चौका-चूल्हा और पानी भरने से लेकर झाड़ू, पोंछा, बर्तन की सफाई, कपड़े की धुलाई, घर के शौचालय एवं नालियों की सफाई, छोटे बच्चों के मल-मूत्र की सफाई आदि। एक वर्ग विशेष द्वारा सिर पर मैला ढोने की रीत को वह निकृष्ट बताता रहा पर ़जरूरत पड़ने पर उसने अपने ही छोटे बच्चे के मल को कभी साफ नहीं किया। जिस बात के लिये आदमी ने मनु को धिक्कारा, वही काम घर-घर के हर आदमी ने अपने ही घर में कर दिया। मानो उनमें मनु की आत्मा का प्रवेश हो गया हो। उस आदमी को फटकारने वाला कोई नहीं है। उसने औरत नाम के वर्ग को उन कामों के बोझ तले दबा दिया, जिनके लिये वह मनु को कोसता रहा। मनु की वर्ण व्यवस्था में शूद्र कहलाये जाने वालों के लिये तो उत्थान की योजनाएं बन रही हैं, उनके सहारे वोट बैंकों की रचना हो रही है, पर क्या घरों में हुए काम के बंटवारे और सामाजिक भेद-भाव के प्रति भी किसी का ध्यान जाएगा? औरत के लिये काम का आरक्षण तो शताब्दियों से कर दिया गया है पर जिस आरक्षण की उसे ़जरूरत है, उस पर लोगों का ध्यान कम ही है।
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रामप्यारी की सास कुछ ज्यादा ही खोटी थी। एक दिन रामप्यारी शौच के लिये अंधेरे मुंह उठकर खेतों में गई तो उसने देखा, कोई कम्बल की बुक्कल मारे आगे-आगे जा रही थी। उसने सोचा कि नत्थू की बहू होगी। फिर क्या था, रामप्यारी ने मौका ताड़ कर अपनी सास की रामकथा चालू कर दी। उस दूसरी लुगाई ने सोचा कि आज तो सवेरे-सवेरे किसके मुंह लग गई। झूठमूठ का तरस दिखाते हुए वो उसकी रामकहानी चुपचाप सुनती रही। रामप्यारी बोली, “बेब्बे, तुझे क्या बताऊं इस बार तो मेरी सास ने मुझे पूरा घी भी नहीं खुवाया जबकि उसे अच्छी तरह पता था कि मेरा जाप्पा होया है।’ वो लुगाई सांस खींचे सारी बात सुनती रही अर समझ गई कि ये तो उसकी ही बहू रामप्यारी है, पर बोली कुछ नहीं। अब रामप्यारी बोली, “हैं ए, तूं बोलती क्यूं नहीं?’ हारकर वो उसकी चुगली सुन-सुन कर पागल होने को हुई तो घूंघट उठा कर बोली, “यहॉं क्या मैं तेरे खात्तर घी के कनस्तर ले री हूँ?’
– शमीम शर्मा
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