मन चिन्तन होने नहीं, प्रभु चिन्त्या तत्काल।
बली चाहयो, आकाश ने भेज दियो पाताल॥
ब्राह्मण बन गये कृष्ण मुरार पधारे बली राजा के द्वार।
पधारे बली राजा के द्वार, पधारे राजा बली के द्वार॥
हो पधारे बली राजा के द्वार॥ टेर ॥
बन्या है बावन अँगूल भगवान।
विप्र ने देख, छूप्यो है भांन॥
लगायो माला में हरी ध्यान॥
चरण खडाऊँ पहन के, चूटियों लिनों हाथ।
गीता पुस्तक बगल में, धरी जनेऊ घाल॥
दरबान से कही, खबर तुम, करों राजदरबार॥ 1 ॥
कचेरियाँ जा पहुँच्यो, दरबान।
अरज कर किनो, सकल बयान॥
विप्र एक आयो, चतूर सुजान॥
छोड छल्यो दरबार को, भूप हुयो हर्षाय।
दर्शन करने नाथ का, नैन रहे अकूलाय॥
जो माँगो सो देऊँ ब्राह्मण, मुख से दो फरमाय॥ 2 ॥
दूर से सुनकर, आयो तोय।
जमी तूँ तीन पाँव, दे मोय॥
लेवूं ठाकूर की, रसोई बनोय॥
तीन पाँव की क्या कहो गुरुं, लिजो साडा तीन।
गँगा जल झारी भरी, गुरु ने लिनो बुलाय॥
देख विप्र की ओर मुख से बोले शुक्राचार॥ 3 ॥
फँसियो रे इन छंलिया के फन्द।
छलिया इसने, राजा हरिश्चन्द्र॥
बिक्या राजा रानी, फरजन्ग॥
दान जमीं को मति करे, राजा कहनो मान।
बली राजा कहने लगे, गुरु वचन न खाली जाय।
झारी में गये बैठ गुरुजी, रोक लिवी जलधारे॥ 4 ॥
प्रभु ने जान लियो है चोर।
कूशा से दियो, नैन एक फोड॥
भूप संकल्प, कियो कर जोड॥
तीन पाँव में सब नप्यो आँधी देऊँ दयाल।
आधी में आप ही नप्यो, भेज दियो पाताल॥
द्विज है घासी राम, बने प्रभु आप ही पहरेदार॥ 5 ॥
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