घर में घूमती छिपकलियॉं क्या कम हैं कि वैज्ञानिकों को एक नई मशीनी छिपकली बनाने की जरूरत आन पड़ी है? अमेरिका के रॉबर्ट फुल को छिपकली, गिरगिट और काकरोच पसंद हैं और मार्क कटकोस्की को खास नापसंद भी नहीं। दोनों की जिज्ञासा थी कि किस तरह ये प्राणी खड़ी दीवारों पर आसानी से चढ़ जाते हैं।
कुछ वर्ष इसी खोज में भिड़े रहने के बाद उन्होंने इन प्राणियों के पैरों पर उगे खास बालों या “सीटी’ की कार्यशैली का पता लगा लिया। इस जानकारी के आधार पर उन्होंने एक रोबोट छिपकली का आविष्कार किया है।यह 1.5 इंच प्रति सेकंड की रफ्तार से कॉंच और दीवारों पर चढ़ सकती है। इसका नाम है, “स्टिकीबोट’ और इसे पिछले वर्ष के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में से एक माना गया है। अब सवाल ये है कि जो मच्छर नहीं खा सकती, उस नकली छिपकली का क्या उपयोग हो सकता है? ़जवाब है, ऊँचे पुलों और इमारतों पर बारीक दरारों को खोजने के लिए। और हॉं, डरने वालों को डराने के लिए भी।
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