पिछले दिनों जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति का यह कहना कि विश्र्वविद्यालय अपने उन छात्रों को अपनी ओर से कानूनी मदद देगा जिन्हें पुलिस ने बटाला हाउस से गिरफ्तापर किया है तथा जिन पर आतंकवादी घटनाओं में लिप्त होने का आरोप है, भाजपा सहित कई “हिन्दू’ वादी संगठनों को बहुत नागवार गुजरा है। वे उनके इस वक्तव्य की यह कह कर आलोचना कर रहे हैं कि यह सीधे-सीधे आतंकवाद को प्रश्रय और संरक्षण देने में शुमार किया जाना चाहिये। इन संगठनों के अलावा मीडिया का एक तबका भी जामिया मिलिया इस्लामिया के राष्टीय चरित्र को कठघरे में खड़ा करने से चूक नहीं रहा है। मशीरुल हसन के इस वक्तव्य का प्रतिवाद करते हुए कहा जा रहा है कि उनका यह वक्तव्य न सिर्फ आतंकवादियों को प्रोत्साहित करेगा बल्कि आम मुसलमानों में यह संदेश प्रसारित करेगा कि अकारण उस समुदाय के युवकों को पुलिस आतंकवादी करार देकर उन्हें प्रताड़ित कर रही है।
इस शिक्षा संस्थान के कुलपति मशीरुल हसन का यह बयान सही मायने में उनका नहीं है, यह विश्र्वविद्यालय के विद्वत परिषद का प्रस्ताव है जिसे उन्होंने सार्वजनिक रूप से पढ़ा है। वैसे भी इस शिक्षा संस्थान का चरित्र आज तक राष्टवादी माना जाता रहा है, जिसकी स्थापना ही 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्र्वविद्यालय के संप्रदायवादी चरित्र के मुकाबले धर्मनिरपेक्षता को अल्पसंख्यक समुदाय में प्रतिष्ठित करने के उद्देश्य से की गई थी। इस संस्थान को 1925 में दिल्ली लाया गया और 1988 में इसे केन्द्रीय विश्र्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। अपना अल्पसंख्यक चरित्र बनाये रखने के बावजूद विश्र्वविद्यालय सांप्रदायिक स्तर पर कभी विवादित भी नहीं हुआ। कुलपति प्रो. मशीरुल हसन की गणना बौद्घिक स्तर पर एक शीर्षस्थ विद्वान के तौर पर होती है। समय-समय पर उन्होंने अपने राष्टप्रेम को कई कथित राष्टप्रेमियों के मुकाबले ज्यादा मजबूत साबित किया है। लेकिन वर्तमान आलोचनाएं उनके इस राष्टप्रेम पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सवाल उठाती समझ में आ रही हैं। जबकि उनके समर्थन में देश का एक बड़ा बौद्घिक तबका तो है ही, मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह और रसायन मंत्री राम विलास पासवान ने भी उनका समर्थन किया है।
अब समझने की बात यह है कि अपने इस कथन में हसन साहब ने ऐसा क्या गलत कह दिया है कि उनका वक्तव्य कुछ लोगों को नागवार गुजरा है। उन्होंने अपनी पत्रकार वार्ता में एक भी तर्क ऐसा नहीं दिया जिससे लगता हो कि वे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष पुलिस द्वारा पकड़े गये कथित तौर पर आतंकवादी छात्रों की हिमायत कर रहे हों अथवा उन्हें निर्दोष बता रहे हों। उनके आरोपित होने के बाद उन्होंने विश्र्वविद्यालय से निलंबित भी किया है। ध्यान में रखने की एक बात यह भी है कि आतंकवाद के आरोप के साथ छात्रों की गिरफ्तारी ने इस शिक्षा संस्थान की छवि को धूमिल भी किया है। ऐसा इस संस्थान के इतिहास में कभी नहीं हुआ और यह कुलपति को तथा संस्थान से जुड़े अन्य लोगों को मर्माहत नहीं करेगा, यह भी नहीं माना जा सकता। वैसे भी बस इतना ही कहा गया है कि संस्थान आरोपित छात्रों को कानूनी मदद भर पहुँचायेगा। यह तो प्राकृतिक न्याय का तका़जा है। जघन्य से जघन्य अपराधी को अपने बचाव में न्याय व्यवस्था अपना पक्ष प्रस्तुत करने का भरपूर अवसर प्रदान करती है। अगर किसी आरोपी के पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती तो संवैधानिक तौर पर उसे न्यायालय की ओर से यह सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। न्यायालय स्वयं किसी आरोपी को अपने को निर्दोष सिद्घ करने के लिए अगर यह कानूनी सुविधा उपलब्ध कराता है तो क्या यह मान लिया जाएगा कि न्यायालय उस कथित अपराधी का पक्ष ले रहा है? छोटी अदालतों से लेकर बड़ी अदालतों तक वकील विभिन्न आरोपियों को निर्दोष सिद्घ करने के लिए बहस करते हैं, तो क्या यह मान लिया जाना चाहिये कि ये सभी अधिवक्ता अपराधी की नहीं, अपराध की पैरवी कर रहे हैं? अगर ऐसा नहीं माना जा सकता तो सिर्फ अपने विश्र्वविद्यालय के इन आरोपी छात्रों की कानूनी मदद की पेशकश करने वाले मशीरुल हसन किस आधार पर आतंकवाद के पैरोकार माने जा रहे हैं?
मशीरुल हसन को कटघरे में खड़ा करने वाले लोग ़खुद भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि जब तक न्यायालय किसी को अंतिम रूप से गुनहगार न साबित कर दे तब तक वह गुनहगार नहीं है। ़खुद अपने बचाव में संसद तक में इन लोगों ने इसी तर्क का सहारा लिया है। फिर क्या सिर्फ पुलिस के यह कहने से कि ये आतंकवादी हैं, न्यायालय यह मान लेगा कि ये आतंकवादी हैं? वह पुलिस से अपने कथन को संपुष्ट करने के लिए सबूत नहीं मांगेगा? अगर ऐसा न्यायालय का दृष्टिकोण हो सकता है तो यह मशीरुल हसन का या देश के किसी सामान्य नागरिक का दृष्टिकोण क्यों नहीं हो सकता? आतंकवाद की और मानवता के दुश्मन आतंकवादियों की जितनी भर्त्सना की जाये, वह कम है। वह हर स्तर पर होनी चाहिए लेकिन इसके चलते प्राकृतिक न्याय की अवहेलना भी नहीं की जा सकती। मशीरुल हसन ने अपने शिक्षा संस्थान के छात्रों को, जो आतंकवादी गतिविधियों में पुलिस द्वारा आरोपित हैं, सिर्फ कानूनी सहायता देने की बात कही है। उन्होंने अपने पैड पर उनके उत्तम चरित्र का प्रमाण पत्र नहीं जारी किया है।
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