कहने को तो महंगाई की मार चारों तरफ से पड़ रही है। साल भर में ही इसकी दर तिगुनी हो गई है। अतः अब इसे लेकर राजनीतिक परांठे भी सेंके जाने लगे हैं। महंगाई को लेकर जनता चाहे बेहाल हो जाए पर विरोधी पार्टियों की लाटरी निकल आती है। ऐसे समय में तो कई मरणासन्न पार्टियों में भी जान आ जाती है। बैठे-बिठाए एक ऐसा मुद्दा मिल जाता है जिससे छिनी हुई कुर्सी के हसीन सपने फिर से आने लगते हैं। इसे लेकर सत्ता पक्ष की खूब बखिया उधेड़ी जाती है और जनता तक यह बात पहुँचाने की पुरजोर कोशिश होती है कि सारा किया-कराया मौजूदा सरकार का है। हम होते तो ऐसा नहीं होता। सो, इस बार इसी के चलते सरकार भी सचेत हो गई है। वह महंगाई के कारणों को विज्ञापित करनेे की जुगाड़ में है ताकि लोगों को समझाया-बुझाया जा सके कि महंगाई के लिए वे जिम्मेदार नहीं बल्कि कोई और है।
बहरहाल, एक तरह से देखा जाए तो महंगाई अभिशाप नहीं बल्कि एक वरदान है। अतः खुलकर इसका स्वागत करना चाहिए। इसके उछलते ही चहुंओर आत्मचिंतन की बयार बहने लगती है। जिन लोगों में अंधाधुंध खर्च करने की आदत होती है, उन्हें भी अकल आने लगती है। बाहर जाकर पैसे उड़ाने की बजाय घर पर ही मनोरंजन किया जाए, खुद का पकाया-खाया जाए तो न सिर्फ पैसे बचते हैं बल्कि स्वस्थ रहते हैं और आपसी प्यार भी बढ़ता है। महंगाई हमें विदेशी संस्कृति का मोह त्याग कर स्वदेशी बनने के प्रति उकसाती है। विदेशी ब्रांड के महंगे कपड़ों के बजाय हमें देसी कपड़ों से प्यार होने लगता है। जिम में जाकर पैसे की सेहत बिगाड़ने के बजाय सुबह-सुबह पार्क या झील के किनारे जॉगिंग की जाय तो न सिर्फ पैसे बचेंगे बल्कि शरीर में स्फूर्ति आएगी, मुफ्त में प्राणवायु का सुख मिलेगा और लोगों से मेलजोल भी बढ़ेगा।
पेटोल की कीमत पर हाय-तौबा मचाने से अच्छा है कि अधिक से अधिक पैदल चला जाए। यह बताने की आवश्यकता नहीं कि इसके कितने लाभ हैं। वल्लाह! कई बीमारियों से बचे रहेंगे। उस पर प्रकृति-प्रदत्त प्राणदायिनी हवा में जहर घोलने के पाप से भी मुक्त हो जाएंगे। इस तरह देखा जाए तो महंगाई के फायदे ही फायदे हैं। मंगाई से त्रस्त हैं तो शराब, सिगरेट, बीड़ी, तंबाकू से कन्नी काटकर देखें? जीवन में आऩंद की सरिता बहने लगेगी। यही तो पल है जीवन को सफल बनाने का। टीवी-केबल पर नजरें खराब करने और बिजली का बिल अदा करने से अच्छा है कि पुस्तकालय जाइए। वहॉं बैठ कर पुस्तकें, अखबार, पत्रिकाएं बांचिए। पैसे बचाइए, ज्ञान बढ़ाइए। महंगाई इसी तरह बढ़ती गई तो जरा कल्पना कीजिए उस सांझा चूल्हे की जिसमें मोहल्ले भर का खाना भी पकेगा और महिलाओं की किटी पार्टी भी हो जाएगी। तब रसोई गैस के चलते बजट भी खराब नहीं हो पाएगा। वैसे कम खाया जाए तो और भी अच्छा है। हमारे खाने को लेकर पहले ही अमेरिका वाले बौखलाए हुए हैं।
अब तो पीजीआई, चंडीगढ़ के एक हृदयरोग विशेषज्ञ ने अपने एक शोध से ही यह सिद्घ कर दिया है कि भूख के लिए एक ही रोटी काफी है, बशर्ते उसे अच्छी तरह चबा-चबाकर खाया जाए। इससे न सिर्फ दिल के रोगों से बचा जा सकता है बल्कि मोटापा भी नहीं घेरेगा। महंगाई में यह शोध देशवासियों के लिए वरदान की तरह सामने आया है।
चलते-चलते : अपच के शिकार एक व्यक्ति को डॉक्टर ने कहा कि वह चार की जगह एक बार में दो ही रोटियां खाया करे। उसने ऐसा ही किया पर कोई फर्क नहीं पड़ा। इस पर डॉक्टर ने सलाह दी कि वह कुछ दिन एक ही रोटी खाकर देखे। इस पर मरीज बोला, “डॉक्टर साहब, यह असंभव है। चार की जगह दो रोटियां तो किसी तरह पक गईं पर उतने आटे से एक ही रोटी पकाना-नामुमकिन!’
– रतनचंद “रत्नेश’
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