महंगाई – संतोष कुमार मिश्र

महंगाई, महंगाई

हाय! कहॉं से आई

खुशियॉं छीनी ग़रीबों की

जान लेने आई….।

दाल, चावल, तेल, शक्कर

सब्जी बड़ी महंगी

खाऊँ भला तो क्या खाऊँ

हर चीज़ महंगी

भूखे पेट होत भजन न

ये आफत कहॉं से आई….।

रोटी, कपड़ा और मकान

दे दे ग़रीबों को भगवान

नेता बड़े बेईमान

हाथ जोड़ते, विनती करते

घर-घर जाकर “वोट’ मांगते

न सुनते फरियाद ग़रीबों की

भ्रष्ट नेताओं के ही कारण

देश में मची तबाही…।।

पेट्रोल-डीज़ल, गैस महंगी

आसमान छूती महंगाई।

आम जनता परेशान है

मार न सह पाई…. बाढ़-सी आई…।

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