महाभारत युग की परिकल्पना

panch-kedarउत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में हिन्दुओं के प्रसिद्घ तीर्थ गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ के पॉंच-पॉंच स्वरूप और भी हैं, जो पंच केदार और पंच बद्री के रूप में पहाड़ों पर अवस्थित हैं। पंच केदारों की परिकल्पना महाभारत युग की है। जब भगवान शंकर गुरु-हंता, कुल-हंता पांडवों से रुष्ट होकर भैंसे का रूप धारण कर भागे, तब भीम ने उन्हें पहचान कर उनका पृष्ठ भाग पकड़ लिया। वही पृष्ठ भाग केदारनाथ जी में आज पूजित हो रहा है, लेकिन मध्य भाग मदमहेश्र्वर, कंधे एवं बहुभाग तुंगनाथ, चेहरा रुद्रनाथ और जटाएँ कल्पेश्र्वर तक चली गईं और कालांतर में वहॉं भी मंदिर का निर्माण कर आराधना की जाने लगी। ये सभी स्थल दुरुह चढ़ाइयों वाले पर्वतों की चोटियों पर स्थित हैं और वहां पहुँचना असंभव तो नहीं, किंतु दुष्कर अवश्य है। रुद्रनाथ जी का मंदिर जनपद चमोली में 2280 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। चमोली जनपद के मुख्यालय, गोपेश्र्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर भगवान शिव के मुखारविन्द रुद्रनाथ जी की शीतकालीन पूजा स्थली है, जहां नवंबर में मुख्य मंदिर के पट बंद होने पर रुद्रनाथ जी की उत्सव-मूर्ति गाजे-बाजे के साथ लाई जाती है एवं मई में पट खुलने पर पुनः ऊपर मुख्य मंदिर ले जाई जाती है। इस बीच पूरा पर्वत शिखर बर्फ से ढक जाता है। गोपीनाथ मंदिर के पुजारी बताते हैं कि गोपीनाथ मंदिर भगवान शिव के मुख की शीतकालीन पूजा स्थली होने के कारण उतनी ही महत्ता रखता है, जितनी रुद्रनाथ महादेव का मंदिर। गोपेश्र्वर मंदिर परिसर में कभी 360 मंदिर हुआ करते थे, जिनके भग्नावशेष अभी भी इधर-उधर मिल जाते हैं। अनेक शिवलिंग तथा छत्र मंदिर के परिामा मार्ग में रखे हुए हैं।

इस मंदिर को भगवान रुद्रनाथ जी की मूल गद्दी बताते हुए, गोपीनाथ मंदिर के पुजारी श्री भट्ट ने बताया कि यहॉं अवस्थित शिवलिंग भगवान शिव की ही मुखाकृति है। शिवरात्रि और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर पिंड को मुकुट धारण कराया जाता है और वैष्णव प्रथा के अनुसार पूजा होती है, लिंगायत प्रथा के अनुसार नहीं। यहॉं के पुजारी शैव नहीं हैं, स्नात हैं, जो सनातन धर्म के मानने वाले हैं। इसलिए शिव के साथ विष्णु, राम, कृष्ण सबको मानते हैं।

गोपेश्र्वर से चार कि.मी. गोपेश्र्वर-चोपला मार्ग पर है ग्राम सगर। यहॉं से रुद्रनाथ का 18 कि.मी. पैदल पथ प्रारंभ होता है। पहले कुछ ऊँचे-नीचे पर्वतीय खेत फिर जंगल और झरनों के बीच से होते हुए खड़ी चढ़ाई। चढ़ाई चढ़ने के बाद 10,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है पनार गॉंव। इस गॉंव से चढ़ाई काफी आसान और सुखद हो जाती है। रंग-बिरंगे फूलों के बीच है गुफानुमा मंदिर, जहां शिला पर भगवान की मूर्ति बनी हुई है।

बद्रीनाथ जी की मूर्ति स्वयं-भू बताई जाती है। ऐसा ही है भगवान शंकर का मुखारविंदु, जो शिला पर स्पष्ट उभार लिए हुए है। चाहे यह स्वयं-भू हो या किसी के द्वारा बनाई गई, लेकिन मूर्ति में एक-एक अंग स्पष्ट है। मूर्ति की दायीं ओर माथे के ऊपर एक छेद तक साफ दिखता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि जब दक्ष के यज्ञ में सती की आत्माहुति के बारे में शिवजी ने सुना, तो ाोधित हो अपनी जटा से एक बाल उखाड़कर वीरभद्र का आहवान किया, जिन्होंने दक्ष के यज्ञ को विध्वंस किया था।

– कीर्ति निर्विकल्प

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