माँ

बूढ़ी माँ के कंपकंपाते हाथों से चाय का प्याला गिरा और छन्-न्-न् की आवाज से टूट गया। गर्म चाय मां के पैर पर गिर पड़ी और वह दर्द से चीख उठी। आवाज सुनकर बेटा-बहू तमतमाते हुए फौरन कमरे से बाहर आये। इससे पहले कि उसे बहू के कोप का भाजन बनना पड़े, बेटा दहाड़ा, “”देख कर नहीं चल सकती क्या? जरा-सा भी काम नहीं होता। जीवन नरक बना दिया है हमारा।” वह बड़बड़ाता हुआ आगे बढ़ा और कप के टूटे टुकडे समेटने लगा। अचानक एक नुकीला टुकड़ा उसकी उंगली में चुभा और खून का फव्वारा फूट पड़ा। बूढ़ी मां ने आव देखा न ताव, अपनी धोती से कपड़ा फाड़कर बेटे की उंगली में बांध दिया और अपने पांव की जलन भूलकर बेटे का हाथ सहलाने लगी।

– विजय रानी बंसल

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