अब मां-बाप की सेवा करना न केवल बच्चों का कर्त्तव्य है, बल्कि भारतीय संविधान द्वारा लागू कानून के अंतर्गत उनकी बाध्यता भी है। देश के अधिकांश वरिष्ठ नागरिक या मां-बाप शायद इस बात से अंजान हैं कि सरकार ने उनकी देखरेख का पुख्ता इंतजाम करते हुए “मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस एक्ट 2007 नंबर 56′ कानून बनाया है। इसे 29 दिसंबर, 2007 को संसद में पास किया गया। इसके अंतर्गत यदि मां-बाप या वरिष्ठ नागरिक स्वयं की आय से भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, तो वे अपने बालिग बच्चों या रिश्तेदारों के विरुद्घ अपनी देखभाल न करने की शिकायत कर सकते हैं। यदि वे स्वयं आवेदन भेजने में समर्थ नहीं हैं तो उनकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति भी यह काम कर सकता है। यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के सभी राज्यों में लागू है।
इसके बाद कोर्ट की ओर से बच्चों या रिश्तेदारों को नोटिस भेजा जाएगा। यदि इसके बावजूद वे मेंटेनेंस अलाउंस देने से इनकार करते हैं तो कोर्ट जुर्माने के साथ-साथ उन्हें सलाखों के पीछे भी धकेल सकता है। जेल में कैद रखने की समयावधि को एक माह अथवा तब तक के लिए बढ़ाया जा सकता है, जब तक कि वे भुगतान करने के लिए रा़जी न हो जायें। इस नियम की खास बात यह है कि यदि बच्चे या रिश्तेदार देश से बाहर रह रहे हैं तो भी वे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकते। कोर्ट द्वारा न्यूनतम और अधिकतम मासिक मेंटेनेंस अलाउंस का निर्धारण राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित राशि के आधार पर ही किया जाएगा, लेकिन यह राशि दस हजार रुपये से अधिक नहीं होगी। वरिष्ठ नागरिक की मृत्यु के बाद जो रिश्तेदार उनकी संपत्ति का वारिस होगा, उसी को देखरेख की जिम्मेदारी उठानी होगी। यदि एक से अधिक दावेदार हैं तो सभी को मिलकर समान रूप से वरिष्ठ नागरिक को इतनी राशि देनी होगी ताकि वह सामान्य जीवनयापन कर सके। इसके अलावा यदि वरिष्ठ नागरिक को समय पर भुगतान नहीं किया जाता है तो 5 प्रतिशत से अधिक और 18 प्रतिशत से कम की ब्याज दर पर राशि का भुगतान करना अनिवार्य होगा। इसके ठीक तरह से पालन के लिए राज्य सरकार ने मेंटेनेंस ऑफिसर भी नियुक्त किया है। हालांकि जहां तक मासिक मेंटेनेंस अलाउंस देकर आयकर में किसी तरह की छूट का सवाल है तो आयकर अधिनियम में इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया गया है। मेरा मानना है कि यह अलाउंस वरिष्ठ नागरिक की आयु में जुड़कर उसे इस पर टैक्स का भुगतान करना होगा। सरकार को चाहिए कि इस संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करे। इसमें कोई दोराय नहीं है कि यह नया कानून सरकार द्वारा मां-बाप और वरिष्ठ नागरिकों को दिया गया बेहतरीन तोहफा है, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि इसे प्रोत्साहित करने के लिए कुछ खास कदम उठाये जायें।
– सुभाष लखोटिया
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