माया का गुलाम बन्दा, तुँ काँई जानें बन्दगी रे।
माया का गुलाम॥ टेर ॥
गर्भ मांहि वास कियो उन्दो लटकाय दियो।
हरी को ना नाम लियो, धोवता है गन्दगी रे॥ 1 ॥
बालपनों खेल खोयो, तरुण भयो त्रिया बस होयो।
नाम को ना बीज बोयो, कैसे व्यापे बन्दगी रे॥ 2 ॥
रूम झूम एठयो डोले, कबहू ना साँच बोले।
पाप पुण्य नहीं तोले, कैसे खोवे बन्दगी रे॥ 3 ॥
सामने बुढापो आवे, शोभा ने थनें खाट चाहे।
घर का थारी मौत चाहे, तुं तो चाहे जीन्दगी रे॥ 4 ॥
यम का दूत लेवा आसी, डालेगा गल बैय्यां फाँसी।
मीरा भोगनी पडे चौरासी, चेते क्यूं न अन्धगीरे॥ 5 ॥
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