मालिक रिझ्या हरं कोई रिझे आ दूनियाँ रिझेली मीठा बोल
भरम गाँव को जाय, दर दर डोली या सूँ। मालिक रिझ्या॥ टेर ॥
आदर आप गुणा को मोटो, तुरत पुरत लेवे लेखो।
दुश्मन झुके वीर के आगे, नहीं किया तो कर देखो॥
विष अमृत बन जाय, मीठा बोल्या सुं ॥ 1 ॥
मिलत्र किया तो रहो मित्र संग, मित्र फलां ने चाखो हो।
भली बुरी सब बात मित्र की, हिरदां मांहि राखो॥
दुनियाँ खुब हँसेली, परदो खोल्याँ सूँ॥ 2 ॥
पर हाथा में धन देकर जो, चीज अधूरी मँगवावे है।
केवन वाला सच कह गया, बिन मरीया स्वर्ग नहीं पावे।
मन का विश्वास घटे, जिकाने तोल्या सूँ॥ 3 ॥
भरम भरम में दुनियाँ रह गई, भरम भेद नहीं पावे है।
हरी भक्ति में लीन होय कर, शिव देखो यूँ गावे है।
नर थारोे कल्याण है, साँची बोल्या सूँ॥ 4 ॥
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