याद करिए, भारतीय क्रिकेट टीम का पिछला ऑस्टेलिया दौरा। ऑस्टेलियाई टीम अपने आक्रमक खेल, प्रतिद्वंदी को कुचल देने वाले मनोविज्ञान, अम्पायरों का मिलने वाला दुर्भाग्यपूर्ण साथ तथा मीडिया की राष्टभक्ति के कारण भारतीय टीम पर बहुत भारी थी। हालांकि दो टेस्ट बुरी तरह से हारने के बाद भारतीय टीम ने अपना जबरदस्त जुझारूपन दिखाते हुए, पर्थ का वह टेस्ट मैच जीता, जहां उसे निश्र्चित रूप से हारा माना जा रहा था। कहा जा रहा था कि पर्थ की पिच आग उगलेगी और भारतीय खिलाड़ी वहां असहाय नजर आएंगे। लेकिन हुआ उल्टा। पर्थ में ही भारतीय टीम अपने रंग में दिखी और सिडनी में हुए अपने अपमान का जबरदस्त तरीके से बदला ले लिया। बावजूद इसके भारत ऑस्टेलिया से टेस्ट सीरीज 2-1 से हार गया।
टेस्ट सीरीज खत्म होते ही भारत के कई नामी-गिरामी खिलाड़ी ऑस्टेलिया से भारत लौट आए। एकदिवसीय सीबी सीरीज के लिए टीम की रंगत बदली और कप्तान भी बदला। मगर किसी को यह उम्मीद नहीं थी कि नतीजा भी बदलेगा। टेस्ट टीम ने जुझारू अनिल कुंबले के नेतृत्व में संघर्ष किया था और बीच-बीच में अपना चमकदार खेल भी दिखाया था, लेकिन नतीजा वही रहा, जो हमेशा रहता आया था यानी भारत ने ऑस्टेलिया में एक और सीरीज गंवा दी थी। वनडे-टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी थे। हालांकि धोनी भारत में पाकिस्तान से एक श्रृंखला जीत चुके थे। लेकिन किसी को किसी भी तरह के चमत्कार या मिरैकल की उम्मीद नहीं थी। ऑस्टेलिया मीडिया न सिर्फ ऑस्टेलिया को विजेता घोषित कर रही थी, बल्कि वह इस त्रिदेशीय सीबी सीरीज का फाइनल ऑस्टेलिया और श्रीलंका के बीच होने की भविष्यवाणी भी कर रही थी। ऐसे में महेन्द्र सिंह धोनी के विश्र्वास से भरे और साहसी नेतृत्व ने कमाल कर दिया। पहले भारतीय टीम ने श्रीलंका को सीरीज से बाहर किया और एक मैच में ऑस्टेलिया को भी हराया। लेकिन कई मैचों में बुरी तरह हारी भी। फिर भी ऑस्टेलिया मीडिया की आधी भविष्यवाणी तो भारतीय टीम ने गलत कर ही दी थी। मगर अब भी ऑस्टेलिया मीडिया की भविष्यवाणी के अंतिम नतीजे में कोई बदलाव नहीं हुआ था। ऑस्टेलिया मीडिया अभी भी जरा भी किसी संकोच के ऑस्टेलिया को विजेता घोषित कर रही थी। यहां तक कि ऑस्टेलियाई टीम के कप्तान रिकी पोंटिंग ने फाइनल मैचों के शुरू होने के पहले औपचारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में व्यंग्य और हिकारत की मुस्कान के साथ कहा था, “”तीसरे मैच की तो जरूरत ही नहीं पड़ेगी।”
उत्साह और कुछ कर गुजरने के जुनून से तो महेन्द्र सिंह धोनी भी भरे हुए थे, लेकिन माही ने कोई बड़बोलापन नहीं दिखाया। हां, यह उन्होंने जरूर कहा कि वनडे िाकेट में कोई भी टीम कभी भी उलटफेर कर सकती है। अंत में ऐसा ही हुआ। वाकई तीसरे मैच की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन ऑस्टेलिया को नहीं, बल्कि भारत को। सीबी सीरीज का फाइनल बेस्ट ऑफ थ्री के फार्मेट पर सम्पन्न होता है। दो मैच जीतने वाली टीम वास्तविक विजेता घोषित होती है। तीसरा मैच तभी होता है जब पहले 2 मैचों में दोनों टीमें 1-1 मैच जीतकर बराबरी में हों। भारत ने इस सीरीज के फाइनल में वह कर दिखाया, जिसकी भविष्यवाणी रिकी पोंटिंग ने की थी। फर्क सिर्फ इतना था कि रिकी पोंटिंग ने भारत को पहले दोनों मैचों में हराने की भविष्यवाणी की थी, मगर हकीकत इसके विपरीत रही। भारतीय टीम ने पहले दोनों ही मैचों में ऑस्टेलिया को जबरदस्त तरीके से मात दी। ऑस्टेलिया की ये पराजय इतनी चौंकाने वाली थी कि ऑस्टेलियार्ई मीडिया ही नहीं खिलाड़ी भी इस लगातार 2 हार से स्तब्ध रह गए और धोनी ने वह कर दिखाया, जिसकी भारतीयों को सपने में भी उम्मीद नहीं थी।
एकदिवसीय िाकेट टीम के कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी इसके पहले भी धमाका कर चुके थे, जब ढाई महीने तक इंग्लैंड में खेलते रहने के बाद वह ट्वेंटी-20 वर्ल्ड कप में हिस्सा लेने के लिए वहीं से दक्षिण अफ्रीका रवाना हुए और ट्वेंटी-20 के इस पहले ही विश्र्वकप को भारत ने पूरे विश्र्व को आश्र्चर्यचकित करते हुए जीत लिया। वहां भी धोनी की नेतृत्व क्षमता और किलर इंस्ंिटक्ट की जमकर तारीफ हुई थी। िाकेट के बड़े-बड़े पंडितों ने धोनी को एक ऐसा सेनापति बताया, जो अपने मामूली सिपाहियों से भी बड़े-बड़े मोर्चे फतह करवा लेता है। विश्र्वकप के फाइनल में यह देखने को मिला था, जब अंतिम ओवर जोगिन्दर शर्मा को दे दिया, जो उसके पहले काफी पिट चुका था। भारत और पाकिस्तान के बीच जब मैच होता है तो वैसे भी लोग सॉंसें थामकर देखते हैं। उसमें भी जब धोनी ने यह दांव चला और अंतिम ओवर अनुभवी गेंदबाजों की बजाय नये और लगातार पिट रहे जोगिन्दर शर्मा को दे दिया तो लोगों के दिल में धक् से हुआ। ऐसा नहीं है कि माही पर भरोसा करने वाले लोग कम थे, लेकिन बात पाकिस्तान के साथ मैच की थी और सामने ाीज में मिस्बाह उल हक जैसा तेज-तर्रार बल्लेबाज मौजूद था, जो अंतिम ओवर के पहले ओवर में ताबड़तोड़ बल्लेबाजी का नमूना पेश कर चुका था। स्टैंड के ऊपर मारे गए मिस्बाह उल हक के 2 लंबे छक्के स्टेडियम में मौजूद हिन्दुस्तानी समर्थकों के गले से आवाज छीन ली थी और आंखों में भय की परछाइयां ला दी थीं।
लेकिन कहते हैं, असली योद्घा की पहचान रणभूमि के निर्णायक मौकों पर ही होती है। धोनी ने बॉल जोगिन्दर शर्मा को देते हुए कहा हार-जीत की फिा मत करो। अपनी तरफ से तुम जितना बढ़िया हो सके बॉलिंग करो। जोगिन्दर शर्मा ने वही किया …और इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास है। भारत ने पहला टी-20 विश्र्वकप जीत लिया। मिस्बाह उल हक ाीज में ही जार-जार रोने लगे और श्रीसंथ का कैच लेने के बाद किया गया हिप ब्रेक डांस पूरे हिन्दुस्तान को आह्लादित कर दिया। महेन्द्र सिंह धोनी सफलता का दूसरा नाम बनते जा रहे हैं। पिछले डेढ़ सालों के भीतर दूसरी बार बल्लेबाजी की विश्र्व रैंकिंग के शिखर में पहुंचने वाले धोनी का मतलब अब सिर्फ धमाल मचाना ही नहीं है, बल्कि धोनी के नेतृत्व का मतलब जीत की गारंटी बनती जा रही है। दुनिया के बड़े-बड़े िाकेट विशेषज्ञों का धोनी ने दिल जीत लिया है। टोनी ग्रेग, सुनील गावस्कर, इयान चैपल, रंजीत फर्नांडो, महेन्दर अमरनाथ और कपिलदेव जैसे अपने जमाने के धुरंधर खिलाड़ियों ने माना है कि महेन्द्र सिंह धोनी में नेतृत्व की अद्भुत कुशलता है।
इसको भारत के हालिया श्रीलंका दौरे से भी देखा जा सकता है। भारतीय टीम जब श्रीलंका जा रही थी तो सबका यही मानना था कि भारत पहली बार टेस्ट सीरीज जीतकर आएगा। लेकिन जीतने की बात तो दूर भारत बराबरी करके भी नहीं आ सका। पहला मैच जैसा कि अक्सर भारतीय हारते हैं, यहां भी बुरी तरह से हारे। दूसरे में वापसी की और सीरीज 1-1 से बराबर हो गई। लेकिन तीसरे और निर्णायक टेस्ट मैच में भारत एक बार फिर बुरी तरह से हारा। मेंडिस इस सीरीज में श्रीलंका के लिए खोज रहे और भारत के लिए बहुत बड़े हौव्वा। महेन्द्र सिंह धोनी ने इस टेस्ट श्रृंखला में आराम करने का फैसला लिया था। मगर टेस्ट खत्म होने के बाद एक बार फिर भारतीय टीम की कमान उनके हाथ में थी और हमेशा की तरह धोनी ने पूरे आत्मविश्र्वास के साथ कहा कि जीतकर लौटेंगे। लेकिन लोगों को यकीन नहीं था। जिस टीम में सचिन, गांगुली, लक्ष्मण, द्रविड़ और वीरेन्द्र सहवाग जैसे महान खिलाड़ी और लगभग 50 हजार रनों के मालिक हों, अगर वह टीम नहीं जीत सकी तो क्या यह टीम जीत सकती है? लोग धोनी की देशवासियों से किए गए वायदे को महज स्पोट्र्समैनशिप के नजरिए से देख रहे थे। करेले में नीम वाली बात यह हुई कि भारतीय टीम पहला एकदिवसीय मैच बुरी तरह से हार गई। तब तो लोगों को पूरा यकीन हो गया कि टेस्ट टीम की तरह वनडे टीम भी हारकर आएगी। लेकिन बाद के 3 लगातार मैच धोनी ने अपनी कमाल की कैप्टेन्सी अपितु अपने जबरदस्त परफॉर्मेंस की बदौलत भी जिता दिया था और एकदिवसीय टीम ने वह करिश्मा कर दिखाया जिसकी उम्मीद टेस्ट टीम से की गई थी और जो वह नहीं कर सकी थी।
हाल के दिनों में माही लगातार एक के बाद एक श्रृंखलाएं जीतकर तेजी से अपने आपको दुनिया के सफलतम एकदिवसीय कप्तानों में शुमार करवाया है। भारतीय टीम के कोच गैरी कर्स्टन का कहना है कि धोनी एकदिवसीय िाकेट के दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कप्तान हैं और उनमें टेस्ट टीम का नेतृत्व भी संभालने की अद्भुत क्षमता है, क्योंकि माही वे का मतलब है हर हाल में सफलता।
– नितिन के. गौर
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